पटना: बिहार में इन दिनों ऑक्सीजन की कालाबाजारी आम बात हो गई है. कोरोनाकाल में सरकार ने सारी तैयारियों का दावा किया था. लेकिन सरकार के तमाम दावों की पोल उनके अपने मेडिकल कॉलेज ही खोल रहे हैं. ऑक्सीजन की किल्लत किस कदर है ये इसी बात से समझा जा सकता है कि मरीजों की मौत की चिंता के कारण डीएमसीएच के मेडिसिन विभागाध्यक्ष ने खुद को पद से मुक्त करने की मांग तक कर डाली है. इसके पहले एनएमसीएच से भी ऐसा ही मामला सामने आया था. इन सबके बीच पीएमसीएच ने तो सारी हदें ही पारी कर दी. यहां कागजों पर मरीजों की संख्या से कहीं ज्यादा ऑक्सीजन की खपत दिखाई गई है.
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जरूरत से दोगुनी दिखाई गई खपत
मामला पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल से जुड़ा है. बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच में जितनी जरूरत ऑक्सीजन की है उससे कहीं ज्यादा खपत दिखाकर बड़े घोटाले का खेल सामने आया है.इस पूरे मामले का पर्दाफाश तब हुआ जब पटना हाईकोर्ट के निर्देश पर बनी स्पेशल टीम ने पीएमसीएच में चल रहे इस बड़े घोटाले की रिपोर्ट दी. पीएमसीएच में 127 कोरोना मरीजों पर 348 ऑक्सीजन सिलेंडर की खपत दिखाई गई जबकि अधिकतम 150 सिलेंडर की खपत होनी चाहिए थी. कुछ इसी तरह अन्य विभागों में भी सिलेंडर की खपत जरूरत से ज्यादा दिखाने का खेल सामने आया है.
जरूरत और खपत में काफी अंतर
इसके अलावा गैर कोरोना मरीजों के मामले में भी यही लापरवाही सामने आई. जांच टीम के मुताबिक पीएमसीएच के क्रिटिकल केयर वार्ड, महिला वार्ड, ईएनटी वार और टाटा वार्ड में भर्ती ऑक्सीजन सपोर्ट वाले मरीजों की वास्तविक आवश्यकता से कई गुना ज्यादा ऑक्सीजन सिलेंडर की खपत दिखाई गई है. यानी पूरे अस्पताल में जरूरत और कागजों पर दिखाई गई खपत में काफी अंतर पाया गया.
ऑक्सीजन सिलेंडर की ब्लैक मार्केटिंग
पटना में ऑक्सीजन सिलेंडर की काला बाजारी चरम पर है. 30,000 से 40,000 तक एक सिलेंडर के लिए वसूले जा रहे हैं. मरीज बगैर ऑक्सीजन के दम तोड़ रहे हैं. मरीजों के परिजन ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए मारे मारे फिर रहे हैं. दूसरी तरफ जो सिलेंडर उपलब्ध है उनकी कालाबाजारी हो रही है.
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