पटनाः कोविड-19 ने मनुष्य को अंतरात्मा की आवाज सुनने पर मजबूर कर दिया है. यह बदलाव मनुष्य को अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित कर रहा है. इस नए बदलाव से सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में बदलाव देखने को मिल रहा है. यह बदलाव सबसे ज्यादा उन प्रदेशों में दिखेगा जहां मूलभूत ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का अभाव है, जिसके कारण मजबूरन पलायन करना पड़ता है.
ऐसा ही एक प्रदेश बिहार है, जहां पलायन एक संस्कृति बन गई है. उसके घर वाले, गांव वाले और खुद भी मानसिक तौर पर इसकी तैयारी बचपन से ही कर लेते हैं. जब 1991, में नई आर्थिक नीति लागू हुआ, तब उन्हीं राज्यों में निवेश दिखा जिन राज्यों में इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा थी. बिहार को नई आर्थिक नीति का फायदा नहीं मिला क्योंकि मार्केट को आकर्षित करने वाली संस्थाएं बिहार में नहीं थी. वहीं, इसका नतीजा यह हुआ कि लोग रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए पलायन करने लगे.
बिहार का स्थान खिसका
पिछले 30 सालों में बिहार जहां खड़ा था, आज भी वहीं खड़ा है. ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (विकास सूचकांक) गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, न्याय सूचकांक, शिशु मृत्यु दर, पुलिस बर्बरता, पलायन में पिछले 30 सालों से बिहार निचले स्थान पर पड़ा है. वहीं दूसरी तरफ 1991 से 2019 तक बिहार का प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का सिर्फ 40 प्रतिशत रहा है. इसका मतलब यह हुआ कि बिहार 1991 से लेकर आज तक राष्ट्रीय औसत की तुलना में जहां था, वहीं है.
नीतिगत बदलाव बिहार की आवश्यकता
कोविड-19 ने बिहार के सिविल सोसायटी (नागरिक समाज) राजनैतिक पारखियों को सोचने पर मजबूर किया है कि एक नीतिगत बदलाव बिहार की आवश्यकता है, ताकि मजबूरन पलायन को रोका जा सके. इसके लिए अल्पकालिक नीतियों और दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता है. भारत में संविधान और अंतरराष्ट्रीय कानून में भी मजदूर वर्ग को सम्मान से जीने के लिए कहा गया है.
बिहार को बनानी चाहिए अल्पकालिक नीति
अंतरराष्ट्रीय कानून आयोग 2001 के ड्राफ्ट आर्टिकल ऑन प्रिवेंशन ऑफ ट्रांस बाउंड्री हॉर्म ( DAPTH ) में प्रावधान है कि कोई भी कानून या नीति एपिडेमिक और पैनडेमिक सर्वव्यापी महामारी के रोकथाम करने की प्रक्रिया में माइग्रेंट वर्कर्स (प्रवासी कामगार) के अधिकारों का हनन नहीं कर सकता. इन बातों को ध्यान में रखते हुए बिहार को तुरंत अल्पकालिक नीति बनानी चाहिए.
प्रवासी मजदूरों का परदेस जाने से इंकार
कोविड-19 के महामारी ने प्रवासी कामगारों का मूल्य राज्य और प्रवास वाले राज्यों का अंतर समझ में आ गया है. वह वापस नहीं जाना चाहते हैं. ज्यादातर प्रवासी कामगार निर्माण, कृषि और उद्योग में काम करते हैं. इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार को श्रमिक बैंक बनाना चाहिए और वर्कर्स प्रोफाइल तैयार कर जॉब कार्ड मुहैया कराना चाहिए, ताकि प्रवासी कामगारों को काम मिले और दूसरे प्रदेशों में जाए तो सम्मान भी मिले.
वहीं, अल्पकालिक नीति के तहत मनरेगा में जो काम मिलता है उसके अंतर्गत ऐसे प्रावधान बनाए, ताकि प्रवासी कामगारों के लिए वरदान साबित हो और उन्हें सम्मान से जीवन जीने का अवसर प्रदान हो सके.
मजदूरों के लिए सरकार करें काम
बिहार सरकार अपने विभागों में अवसर तैयार करें ताकि ज्यादा से ज्यादा प्रवासी कामगार को काम मिल सके. जब आपूर्ति के क्षेत्र में तालाबों का जीर्णोद्धार, नाला जीर्णोद्धार और सोख्ता गड्ढा कार्य ठीक, इसी प्रकार शहरी विकास विभाग में स्कूलों की मरम्मत, रंग पोतन, शौचालय निर्माण, बागवानी, पौधारोपण और घेराबंदी के कार्य में कामगारों को लगाया जाए.
सरकार शुरु करें सप्लाई चेन
इसके अलावा प्रत्येक ग्राम पंचायत में अनेकों निर्माण कार्य के साथ-साथ ग्रामीण सड़कों के निर्माण, लूस बोल्डर स्ट्रक्चर का कार्य ,टड की मेडबंदी का कार्य, बाढ़ नियंत्रण के लिए बांधों का मरम्मत और उत्तर बिहार में अनेकों लैगून, झील और पोखर की ड्रैगिंग करवाकर मछली उत्पादन के क्षेत्र में आगे कदम बढ़ाना. जो लोग सप्लाई चेन के कार्य में बड़े शहरों में काम कर रहे थे. उनके लिए निजी डिपार्टमेंटल स्टोर के साथ मिलकर सरकारी सप्लाई चेन शुरू करें. सरकार के ऑनलाइन सामान खरीदने में सब्सिडी मिले.