पटना:सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) अब एनडीए गठबंधन के बजाय महागठबंधन ( Nitish Kumar Mahagathbandhan Government ) का हिस्सा बन चुके हैं. 9 और 10 अगस्त को बिहार की राजनीति (Bihar politics) में गहमागहमी बनी रही. पुराने रिश्ते टूटे और टूटे रिश्तों को एक बार फिर से जोड़ा गया. सियासत में मचे भूचाल के बीच सभी ने सुशील कुमार मोदी की कमी को महसूस किया. सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सुशील मोदी बिहार में सक्रिय राजनीति में होते तो एनडीए गठबंधन टूटता? शायद बीजेपी को भी ऐसा ही लगता है कि मोदी सब संभाल सकते थे, तभी तो उन्हें एक बार फिर से बिहार की सियासत में पार्टी को दिशा देने के लिए ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया है.
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साबित हुए बीजेपी के 'गेम चेंजर':साल 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी हार हुई थी. तब नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी ने कमाल दिखाते हुए बड़े बहुमत के साथ महागठबंधन की सरकार बनाई थी. मगर 2 साल बीतते-बीतते ये सरकार गिर गई और नीतीश कुमार एनडीए में लौट गए. माना जाता है कि इस मुश्किल को आसान करने वाले सुशील मोदी ही थे. भ्रष्टाचार और घोटाले को लेकर तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर आरोपों और उनसे जुड़े दस्तावेजों के जरिए उन्होंने नीतीश कुमार को बीजेपी के साथ आने को मजबूर कर दिया.
2017 में महागठबंधन को किया था धराशायी:सुशील मोदी बिहार भाजपा के चाणक्य कहे जाते हैं. 2020 विधानसभा चुनाव संपन्न होने तक सुशील मोदी की बादशाहत भाजपा के अंदर कायम थी लेकिन सरकार बनने के समय सत्ता सुशील मोदी के हाथों से फिसल गई. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इच्छा के बावजूद वह उपमुख्यमंत्री नहीं बन सके. धीरे धीरे बिहार प्रदेश की सियासत से उन्हें अलग कर दिया गया और संकट की स्थिति में एक बार फिर सुशील मोदी की वापसी हुई है. बीजेपी बिहार में सुशील कुमार मोदी को ही गेम चेंजर (BJP Game Changer Sushil Kumar Modi) मानती है.
सुशील मोदी पर बीजेपी ने जताया फिर से भरोसा:बीजेपी को सुशील मोदी से एक बार फिर से काफी उम्मीदें हैं. नीतीश कुमार और सुशील मोदी के अच्छे संबंधों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजतक जदयू के किसी नेता ने भी सुशील मोदी के खिलाफ बयान नहीं दिया. खुद ललन सिंह दोनों के अच्छे संबंध होने की बात कई बार कह चुके हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए सुशील मोदी बिहार में तारणहार की भूमिका निभा सकते हैं.
साइड लाइन हुए सुशील मोदी :2020 विधानसभा चुनाव तक सुशील मोदी नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार की बिहार प्रदेश भाजपा में बोलबाला था. इनकी इच्छा के बगैर पार्टी में कुछ नहीं होता था. सुशील मोदी का कद और पद सबसे ऊपर था. नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार सहयोगी की भूमिका में थे. 2020 चुनाव के नतीजों के बाद भूपेंद्र यादव, नित्यानंद राय और संजय जायसवाल ताकतवर हो गए. चुनाव के नतीजों के बाद सरकार के गठन में सुशील मोदी को सरकार में शामिल होने से रोक दिया गया. साथ ही नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार को भी मंत्री नहीं बनाया गया. बात यहीं नहीं रूकी सुशील मोदी को बिहार के साथ सबसे अलग-थलग करने के लिए राज्यसभा भेज दिया गया लेकिन सुशील मोदी की सियासत बिहार के इर्द-गिर्द घूमती रही. राज्यसभा में भी सुशील मोदी बिहार से जुड़े मुद्दों को उठाते रहे और वह बिहार में सुर्खियां बनी.
कई मुद्दों पर मुखर रहे सुशील मोदी:बिहार से जुड़े राजनीतिक मुद्दों पर सुशील मोदी मुखर रहे और कई बार नीतीश कुमार के खिलाफ भी आवाज उठाते दिखे. धारा 370, तीन तलाक, राम मंदिर और अग्निपथ योजना को सुशील मोदी ने प्रमुखता से उठाया था. जदयू की ओर से जब स्पेशल स्टेटस का मुद्दा उठाया जा रहा था तब सुशील मोदी ने जदयू को दो टूक जवाब दिया था. जातिगत जनगणना के मसले पर भी सुशील मोदी मुखर रहे.
अगर सुशील मोदी होते तो एनडीए गठबंधन नहीं टूटता:पार्टी ने कई नए चेहरों को आगे किया लेकिन गठबंधन लंबी नहीं चल सकी. ढाई साल पूरे होने से पहले एनडीए में दरार आ गई. आखिरकार नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया. जदयू नेता मानते हैं कि अपरिपक्व नेताओं की टीम की वजह से गठबंधन टूटा. नीतीश कुमार ने तो यहां तक कहा कि अगर सुशील मोदी सरकार में होते तो गठबंधन नहीं टूटता.