पटना:बिहार में पूर्ण शराबबंदी अप्रैल 2016 में लागू की (liquor ban in bihar) गई थी. लेकिन, शराबबंदी को लेकर लगातार सवाल खड़ा होते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भी शराबबंदी कानून को लेकर सवाल खड़ा किया था. शराब पीने वालों की गिरफ्तारी के कारण जेलों पर भी काफी दबाव है.शराब से संबंधित चार लाख के आसपास अब तक गिरफ्तारियां हो चुकी हैं. गिरफ्तारी कम हो इसको लेकर इसी साल नीतीश कुमार ने शराब पीकर पहली बार पकड़े जाने पर जुर्माना देकर छोड़ने का प्रावधान किया और इसके अलावा भी कई तरह के संशोधन किए गए. लेकिन इसके बाद भी गिरफ्तारी कम नहीं हो रही है.
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शराबबंदी पर रारः जब एनडीए की सरकार बिहार में थी तो उस समय बीजेपी के कई नेता शराबबंदी कानून को सही ढंग से लागू नहीं करने को लेकर पुलिस पर आरोप लगाते थे. विपक्ष में आरजेडी और कांग्रेस के नेता शराबबंदी को फेल बताते रहे थे. अब नीतीश कुमार महागठबंधन में हैं. आरजेडी और कांग्रेस भी सत्ता में है इसलिए चुप्पी साध ली है. लेकिन जीतन राम मांझी लगातार बोल रहे हैं. जदयू के नेता भी यह मानने लगे हैं कि शराबबंदी सफल नहीं है. पार्टी के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष और विधान पार्षद उपेंद्र कुशवाहा ने भी कहा कि शराबबंदी सफल नहीं है. इसके कारण नीतीश कुमार की चुनौतियां बढ़ती दिख रही है.
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बैकफुट पर नीतीशः मुख्यमंत्री को दबाव में लगातार शराबबंदी कानून के पुराने फैसलों में बदलाव करने पड़ रहे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का कहना है कि नीतीश कुमार ने जिस तेवर के साथ शराब बंदी लागू किए थे अब वह तेवर दिख नहीं रहा है. कहीं ना कहीं कोर्ट का भी दबाव है. पार्टियों का भी दबाव दिख रहा है और इसलिए बैकफुट पर नजर आ रहे हैं. अक्टूबर में 20000 गिरफ्तारियां हुई थी. 90 शराब माफिया की गिरफ्तारियां बिहार के बाहर हुई. मुख्यमंत्री ने अभी 2 दिन पहले मद्य निषेध विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्य सचिव और विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिया था कि शराब पीने वाले के बजाय अब शराब सप्लायर को पकड़ने पर विशेष ध्यान दें.