पटना:नीतीश कुमार अब घर-घर जातीय गणना की तर्ज पर शराबबंदी का सर्वे करने का फैसला लिया है. लोकसभा चुनाव से पहले इस पर काम शुरू हो जाएगा. पहले भी 2018 और 2023 में शराबबंदी को लेकर फीडबैक लिया जा चुका है. एक सच यह भी है कि 2016 से जब से बिहार में शराबबंदी है नीतीश कुमार को अब तक इसका चुनावी लाभ नहीं मिला है. दूसरी तरफ विशेष राज के दर्जे के मुद्दे को भी जोर शोर से उठाया जा रहा है. विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार को अब तक कोई चुनावी लाभ नहीं मिला है.
...और तीसरे नंबर पर आ गया जदयूः बिहार में 2016 में पूर्ण शराबबंदी लागू की गई थी. पिछले 7 सालों में नीतीश सरकार ने दो बार शराबबंदी को लेकर लोगों से फीडबैक लिया है. वर्ष 2018 में सर्वे कराया गया तो पता चला कि एक करोड़ 64 लाख लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है. वर्ष 2023 के सर्वे से पता चला कि एक करोड़ 82 लाख लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है. सर्वे से यह भी पता चला कि 99 प्रतिशत महिलायें और 92 प्रतिशत पुरुष शराबबंदी के पक्ष में हैं. हालांकि शराबबंदी से नीतीश कुमार को अब तक कोई चुनावी लाभ नहीं मिला है. 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी तीसरे नंबर की हो गई.
अब 2024 और 2025 की तैयारीः बिहार में जितने उपचुनाव हुए उसमें भी जदयू का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा है. अब 2024 और 2025 की तैयारी हो रही है. नीतीश कुमार शराबबंदी के साथ विशेष राज्य के दर्जे की मांग को विशेष रूप से मुद्दा बना रहे हैं. विशेष राज्य के दर्जे की मांग नीतीश कुमार की पुरानी मांग है. 2010 से ही इस मांग को उठाते रहे हैं. 2013 में तो पटना और दिल्ली में बड़ी रैली भी की. पूरे बिहार में सवा करोड़ हस्ताक्षर भी कराया गया, जिसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजा गया. एक बार फिर से कैबिनेट से प्रस्ताव पास कराकर केंद्र सरकार को अनुशंसा की गई है.
मुद्दा तो बनाते हैं पर नहीं मिलता लाभः नीतीश कुमार 2013 से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई चुनावी लाभ नहीं हुआ है. 2014 लोकसभा चुनाव में जदयू को केवल दो सीटों पर जीत मिली थी, जबकि उस समय नीतीश कुमार की बिहार में लोकप्रियता शिखर पर थी. विशेष राज्य का दर्जा और शराबबंदी एक बार फिर से 2024 चुनाव में नीतीश कुमार बड़ा मुद्दा बना रहे हैं. हर जगह इसकी चर्चा कर रहे हैं और लोगों से समर्थन मांग रहे हैं. विपक्ष की तरफ से कहा जा रहा है कि जब भी चुनाव होता है नीतीश कुमार इसे मुद्दा बनाते हैं.
केंद्र सरकार को घेर रहा जदयूः जदयू नेताओं की तरफ से विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरा जा रहा है. पिछले दिनों ललन सिंह ने बयान दिया कि केंद्र ने बिहार की अपेक्षा की है. बिहार को विशेष राज्य दर्जा की जरूरत है. केंद्र को विशेष राज्य का दर्जा देना चाहिए. विजय कुमार चौधरी ने यहां तक कहा केंद्रीय योजनाओं में बिहार को जो राशि देनी पड़ती है विशेष राज्य का दर्जा मिलने से वह राशि बचेगी. बिहार में गरीबों के लिए चलाई जा रही योजना के लिए उस राशि से काम हो सकेगा. जदयू प्रवक्ता हेमराज राम का कहना है कि नीतीश कुमार हमेशा वोटरों की चिंता करते हैं.
नीतीश की ताकत घटी हैःदूसरे राज्यों में भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग का बहुत ज्यादा लाभ उन दलों को नहीं हुआ है जिन्होंने इसे उठाया था. आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. इस मुद्दे पर एनडीए से अलग होने का फैसला लिया था, लेकिन इसका लाभ उन्हें नहीं मिला. बिहार में भी अब तक नीतीश कुमार को कोई विशेष लाभ नहीं मिला है. गठबंधन में रहने के कारण भले ही सत्ता में रहे हैं, लेकिन जब से मांग शुरू हुई है और शराबबंदी लागू हुई है नीतीश कुमार की ताकत बिहार में घटी ही है.
कांग्रेस और लालू-राबड़ी पर निशानाः सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि नीतीश कुमार विशेष राज्य के दर्जे की मांग, शराबबंदी का सर्वे, आरक्षण की सीमा बढ़ाने, जातीय गणना की रिपोर्ट और शिक्षकों की बहाली जैसे मुद्दों को नीतीश कुमार और उनकी पार्टी अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में महा गठबंधन इन मुद्दों पर एक राय हो पाएगा कि नहीं एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि नीतीश कुमार कई मौकों पर कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार पर भी निशाना साध रहे हैं तो ही 2005 से पहले बिहार की स्थिति का हवाला देकर तत्कालीन लालू-राबड़ी सरकार पर बिना नाम लिये निशाना साध रहे हैं.
शराबबंदी का सही बताने की कोशिश: नीतीश कुमार इस बार विशेष राज्य के दर्जे की मांग के पीछे बिहार के 94 लाख गरीब परिवार और उसके उत्थान के लिए चलाई जाने वाले योजना के लिए ढाई लाख करोड़ की जरूरत का तर्क दे रहे हैं. तो दूसरी तरफ शराब बंदी को लेकर जो आरोप लग रहे हैं तो सर्वे के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि बिहार की कितनी आबादी शराब बंदी के पक्ष में है. 2024 और फिर विधानसभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं. अब इस बार इसका लाभ मिलता है या नहीं, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों की नजर टिकी है.
"विशेष राज्य का मुद्दा बिहार के विकास से जुड़ा हुआ मुद्दा है. शराबबंदी भी सीधे लोगों से जुड़ा हुआ मुद्दा है. दोनों जन सरोकार के मुद्दे हैं और इसका लाभ 2024 चुनाव में मिल सकता है."- विद्यार्थी विकास, राजनीतिक विशेषज्ञ, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट