पटना:बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बिहार में बनने वाली एनडीए की सरकार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना, भाजपा और नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा का विषय बन गया है. भाजपा को इस बात का डर भी सता रहा है कि कम सीट आने के बाद नीतीश कुमार ने अगर राजनैतिक शुचिता के आधार पर यह कहकर मुख्यमंत्री पद लेने से मना कर देते हैं कि मैं मुख्यमंत्री नहीं बनूंगा तो बीजेपी के लिए नरेंद्र मोदी की पूरी प्रतिष्ठा ही दांव पर लग जाएगी. यह सिर्फ इसलिए बिहार में एनडीए गठबंधन पर प्रभाव डालेगा अपितु आगे की सियासत के लिए नरेन्द्र मोदी और भाजपा की राजनीति पर कई तरह के सवाल भी खड़ा कर देगी.
2020 की चुनाव में पहली पर जब नरेंद्र मोदी बिहार आए तो अपने पहले ही भाषण में उन्होंने यह कह दिया था कि नीतीश कुमार बिहार को आगे ले जा रहे हैं और उन्हीं के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बिहार में विकास के हर पहलू को आगे ले जाएगी. पहले चरण के चुनावी रैली में ही उन्होंने कह दिया था कि नीतीश ही बिहार में एनडीए के चेहरा हैं. सीटों के आधार पर भाजपा के नेता अगर बार-बार दिल्ली और पद छोड़ने को लेकर बात करते रहे और अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने से इनकार कर देते हैं तो बीजेपी और मोदी के लिए पूरी स्थित ही उलट पलट जैसी हो जाएगी. बीजेपी के नेताओं को भाजपा आलाकमान के तरफ से किसी तरह के बयान देने को लेकर मना कर दिया गया है.
बिहार में मोदी के मान का सवाल
बिहार में नरेन्द्र मोदी ने यह कह दिया है कि नीतीश कुमार ही सीएम होंगे. कम सीट होने पर जिस तरह से बीजेपी के नेता बयान दे रहे हैं, ऐसे में नरेन्द्र मोदी के बयान और उनके वादे पर तरह-तरह के सवाल उठने लगेंगे. बीजेपी के लिए यह प्रतिष्ठा का विषय बन गया है कि नीतीश हर हाल में मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठें. बिहार में मोदी के बयान का मान रखना भी बीजेपी के चुनौती है. 2019 के चुनाव में 40 में से 39 सीटें जीतने वाली एनडीए में नीतीश के चेहरे और उनके विकास को नरेन्द्र मोदी ने खूब भंजाया है. बिहार में जिस जोड़ी के भरोसे विकास की बात नरेन्द्र मोदी ने कही है, बीजेपी अगर उससे अलग जाती है तो मादी का पूरा मान ही चौपट हो जाएगा.
पश्चिम बंगाल और यूपी चुनाव में भी होगी दिक्कत
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की राजनीति के लिए एक मजबूत चेहरा हैं. बीजेपी के साथ उनकी पार्टी जदयू का गठबंधन है. यह इन राज्यों के सियासत दानों के साथ ही जनता को खूब बेहतर तरीके से पता है. नीतीश कुमार भले ही इन राज्यों की राजनीति में बहुत मजबूत दखल न रखते हों लेकिन राजनीतिक दखल रखने वालों के लिए मोदी के भरोसे और दावों को लेकर सियासी मुददा जरूर बन जाऐंगे. 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव और 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव मोदी के वादे और भरोसे पर सवाल उठाने के लिए विपक्ष को बहुत बड़ा मुददा मिल जाएगा. इन चुनावों में नरेंद्र मोदी की अपनी बातों पर सच्चाई की मुहर और राजनीति में वादों पर खरा उतरने की नेताओं की जुबान इसकी कीमत को लेकर भी विपक्ष मुददा भंजा ले जाएगा. बीजेपी मोदी के चेहरे के बदौलत देश में राज करने की हालत में है. ऐसे में अगर मोदी के वादे और जुबान को हर राज्य में कहने और तोड़ने की परिपाटी चली तो मोदी की सियासत कई सवालों के कटघरे में खड़ी हो जाएगी.