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बिहार में बढ़ रहा नेचुरोपैथी का क्रेज, किडनी.. लीवर.. हार्ट समेत असाध्य बीमारियों का अचूक इलाज

बिहार में नेचुरोपैथी (Naturopathy) एक बेहतर विकल्प बनता जा रहा है. कोरोना काल के बाद से इस पद्धति से इलाज कराने वालों का रुझान भी तेजी से बढ़ा है. इस थेरेपी के कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं. इस चिकित्सा पद्धति में पंचतत्व के सिद्धांत पर इलाज किया जाता है. पढ़ें पूरी खबर-

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Published : Nov 28, 2022, 4:01 PM IST

पटना: बिहार में नेचुरोपैथी(Naturopathy in Bihar) का क्रेज बढ़ गया है. दरअसल, कोरोना के समय लोगों ने प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के महत्व को समझा और उसके बाद से लोगों में अब नेचुरोपैथी की ओर झुकाव बढ़ा है. चाहे पटना के नेचुरोपैथी सेंटर हो या भागलपुर के, सभी जगह अपॉइंटमेंट की लिस्ट महीनों वेटिंग में चल रही है. नेचुरोपैथी के लिए केरल बेंगलुरु या हैदराबाद जाने के बजाए अब बिहार के लोग बिहार में ही नेचुरोपैथी का लाभ ले रहे हैं.

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प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति की बढ़ती डिमांड: नेचुरोपैथी चिकित्सा से जुड़े चिकित्सक बताते हैं कि नेचुरोपैथी में पंच तत्व के सिद्धांत (Principles of Five Elements) पर काम होता है. किडनी, हृदय, लीवर समेत शरीर के सभी प्रकार के असाध्य रोगों का समुचित इलाज इस चिकित्सा पद्धति से होता है. नेचुरोपैथी के लिए बिहार के भागलपुर का तपोवर्धन प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र का भी बड़ा नाम है. साल 1955 में जयप्रकाश नारायण ने किराए के एक मकान में इसका उद्घाटन किया था. जिसके बाद 1962 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसके नए भवन का शिलान्यास किया.

पंचतत्व के सिद्धांत पर इलाज: नेचुरोपैथी चिकित्सा से जुड़े चिकित्सक डॉ जेता सिंह बताते हैं यह शरीर पंचतत्व मिट्टी, पानी, अग्नि, हवा, और आकाश से मिलकर बना है. इसी को आधार मानकर इस चिकित्सा पद्धति में उपचार किया जाता है. इस चिकित्सा पद्धति में आहार चिकित्सा और उपचार चिकित्सा के माध्यम से इलाज किया जाता है. कई प्रकार की थेरेपी दी जाती है. जिसमें मरीज को बाहर से कोई भी दवाई नहीं खिलाई जाती.

पंचतत्व के सिद्धांत पर इलाज

''कोरोना के समय जब लोग परहेज से रहे, घर का खाना खाए, बीमारी से बचने के लिए काढ़ा का सेवन किए और आयुर्वेदिक पद्धति को अपनाए, उस समय देखने को मिला कि लोग काफी कम संख्या में बीमार पड़े और यह बात लोगों को जेहन में घर कर गयी कि दूसरी चिकित्सा पद्धति में दवा का शरीर पर दुष्प्रभाव है. लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति सबसे कारगर है. इसके बाद अब उपचार के लिए मरीजों का वेटिंग लिस्ट एक महीना लंबा चल रही है. यही नहीं, जो अभी नया नंबर लगा रहे हैं उन्हें 20 दिन से 30 दिन का समय लग रहा है तब उनका अपॉइंटमेंट आ रहा है.''- डॉ जेता सिंह, नेचुरोपैथी चिकित्सक


केरल या हरिद्वार जाने की जरूरत नहीं: जेता सिंह बताते हैं कि उनके यहां आउटडोर में प्रतिदिन 100 मरीज और इनडोर में 15 मरीज देखे जाते हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस केंद्र को विश्व स्तरीय केंद्र बनाने का सपना देखते हैं. इसी क्रम में वह यहां 80 बेड का इनडोर तैयार करा रहे हैं. जो जल्द बनकर तैयार हो जाएगा. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सपना है कि नेचुरोपैथी के लिए लोगों को केरल हरिद्वार और बेंगलुरु जैसे जगह पर ना जाना पड़े और उन्हें बिहार में ही इलाज मिले इसके अलावा देश के कोने-कोने से लोग नेचुरोपैथी चिकित्सा के लिए बिहार आकर इलाज कराएं.

बिहार में बढ़ गया है नेचुरोपैथी का क्रेज

डायबिटीज का भी नेचुरोपैथी में इलाज: डॉक्टर जेता सिंह ने बताया कि नेचुरोपैथी चिकित्सा में मधुमेह का भी परमानेंट इलाज है. क्योंकि, मधुमेह कोई बीमारी नहीं है. बल्कि, एक शरीर की परिस्थिति है और इस परिस्थिति को बदला जा सकता है. उन्होंने बताया कि इसके अलावा यदि किसी का 90% किडनी डैमेज है तो 1 साल की थेरेपी में उसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है. किडनी, हृदय, लीवर जैसे शरीर के सभी प्रकार के असाध्य रोगों (Better treatment of incurable diseases) को इससे ठीक किया जा सकता है.

युवाओं का भी बढ़ा रुझान: पटना के नाला रोड स्थित पतंजलि नेचुरोपैथी वैलनेस सेंटर (Patanjali Naturopathy Wellness Center) में अपने चर्म रोग की समस्या का इलाज करा रहे 22 वर्षीय आदित्य प्रकाश ने बताया कि उनके स्किन में सिरोसिस की समस्या थी. खुजली से वह परेशान रहते थे. पटना के कई एलोपैथिक चिकित्सा सेंटर पर वह जाकर इलाज करा चुके थे. लेकिन समस्या का निदान नहीं हो रहा था. वह इस समस्या से काफी परेशान थे. इसके निदान के लिए नेट पर तरीके ढूंढ रहे थे, तभी उन्हें नेचुरोपैथी चिकित्सा पद्धति के बारे में जानकारी मिली. उसके बाद जब वह यहां पहुंचे तो अब तक 5 सेशन उन्होंने नेचुरोपैथी थेरेपी कर लिया है. इससे उन्हें बहुत लाभ मिला है. शरीर में जहां खुजली हो रही थी दाने निकले हुए थे दाग हुए थे वह अब पूरी तरह से ठीक हो रहे हैं.

''मेरे स्किन में प्रॉब्लम थी. मुझे सिरोसिस की बीमारी थी. खुजली से अक्सर परेशान रहते थे. मैने पहले इसके इलाज के लिए नेट पर सर्च किया बेहतर ऑप्शन के तौर पर मैने नेचुरोपैथी चिकित्सा पद्धति से इलाज करवाना शुरू किया. 5 सेशन में बहुत फायदा मिला है. खुजली और दाने से अब राहत मिल रही है.''- आदित्य प्रकाश, मरीज

जल्द ही दिखने लगता है इलाज का असर: नेचुरोपैथी ले रही 65 वर्षीय महिला कल्याणी देवी ने बताया कि उनके कमर से उठना बैठना नहीं हो रहा था. दोनों कंधे में काफी दर्द रहते थे. उनका ये चौथा दिन है. उन्हें काफी फायदा मिला है. प्रतिदिन 4 से 5 घंटे का थेरेपी चलती है.अब वह उठ बैठ पा रही हैं. यहां का इलाज शरीर को सूट कर रहा है और वह अब पहले से अधिक स्वस्थ हैं.


क्या कहते हैं स्पेशलिस्ट: नेचुरोपैथी थैरेपिस्ट राहुल कश्यप बताते हैं कि प्रतिदिन वह 16 से 20 पेशेंट को थेरेपी देते हैं. पेट की समस्या को लेकर जो मरीज पहुंचते हैं उन्हें मिट्टी पट्टी दिया जाता है. इसके अलावा दर्द की शिकायत लेकर पहुंचने वाले को ठंडा गरम सेंक दिया जाता है. सेंटर को खुले अभी 3 से 4 महीने हो रहे हैं. लेकिन पेशेंट की संख्या काफी बढ़ गई है. लोगों को 15 दिन पहले तक नंबर लगाना पड़ रहा है. जोड़ों में दर्द की शिकायत, लीवर और किडनी की शिकायत, माइग्रेन की शिकायत, अस्थमा की शिकायत जैसे कई प्रकार की समस्या लेकर मरीज पहुंचते हैं और उनकी समस्या के अनुसार चिकित्सक थेरेपी देते हैं.

''हर दिन 20 मरीजों को थेरेपी देते हैं. अलग अलग तरीके से उनका इलाज किया जाता है. मिट्टी-पट्टी, ठंडा गरम सेंक के माध्यम से पेशेंट का इलाज करते हैं. 4 महीने ही सेंटर को खुले हुआ है लेकिन तुरंत अपॉइंटमेंट लेना एक बड़ी समस्या है. लोगों को पंद्रह दिन पहले तक नंबर लगाना पड़ता है''-राहुल कश्यप, नेचुरोपैथी थैरेपिस्ट


नेचुरोपैथी पूरी तरह वैज्ञानिक: सेंटर के नेचुरोपैथी एक्सपर्ट डॉ नितेश कुमार ने बताया कि नेचुरोपैथी में शरीर में बाहर से कोई दवाई नहीं दी जाती. औषधि रहित चिकित्सा पद्धति के माध्यम से सकारात्मक मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जाता है. यह नेचुरोपैथी पूरी तरह वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है. हमारा शरीर पंचतत्व आकाश जल अग्नि वायु और पृथ्वी से मिलकर बना है और इन्हीं पंच तत्व के असंतुलन से रोग होते हैं. संतुलित किया जाए तो आरोग्य प्रदान होता है. प्रकृति में मौजूद चीजों का शरीर की मांग के अनुसार इस्तेमाल करने की कला ही इस पद्धति का आधार है.

''कोरोना के बाद से नेचुरोपैथी के लिए लोगों का रिस्पांस बढ़ा है. उनके पास आने वाले लगभग 90 फ़ीसदी पेशेंट ऐसे होते हैं जो एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति से थक चुके होते हैं. सभी जगह से थक-हारकर यहां पहुंचते हैं. उनका यहां उपचार किया जाता है लेकिन जिन्हें नेचुरोपैथी चल रही होती है उनके लिए दिनचर्या और आहार का संतुलन बेहद जरूरी है.''- डॉ नितेश कुमार, नेचुरोपैथी एक्सपर्ट



मड बाथ से विकार होते हैं दूर: डॉक्टर नितेश बताते हैं कि नेचुरोपैथी में कई प्रकार की थेरेपी दी जाती है. जिसमें प्रमुख है मड बाथ. जिसमें मिट्टी से मरीज को स्नान कराया जाता है, मिट्टी पट्टी जिसमें पेट पर मिट्टी का एक मोटा लेप चढ़ाया जाता है, वायु चिकित्सा जिसमें ठंडी वायु की रगड़ और व्यायाम के साथ संयुक्त रूप से शरीर को दिया जाता है. अग्नि चिकित्सा जिसमें शरीर के दर्द वाले हिस्से पर विशेष ऊर्जा देकर राहत दिलाई जाती है. मांसपेशियों और उनके विकारों का दूर किया जाता है.

अचूक है प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति: खुराक चिकित्सा जिसमें प्राकृतिक चिकित्सा के इस थेरेपी में भोजन को दवा का रूप माना जाता है. आकाश/उपवास चिकित्सा जिसमें मरीज को कुछ सीमित अवधि के लिए भोजन और फल दोनों से परहेज करना है रहता है. मालिश या थेरेपी जिसमें सात अलग-अलग तरीके से मरीज को उसके जरूरत के अनुसार मालिश की जाती है. जल चिकित्सा जिसमें पानी के विभिन्न रूपों का उपयोग शरीर के विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है.


नेचुरोपैथी का इलाज कैसे कराएं: डॉक्टर नितेश बताते हैं कि शरीर के अलग-अलग बीमारी के लिए नेचुरोपैथी थेरेपी की अवधि अलग-अलग है. अगर कोई गैस्टिक की समस्या, सर्वाइकल पेन की समस्या, अस्थमा की समस्या, स्लिप डिस्क की समस्या, स्किन सिरोसिस जैसी समस्या लेकर पहुंचता है तो 8 से 10 थेरेपी सेशन में उसे पूरी तरह राहत मिल जाएगी. इसके लिए 10 से 15 हजार रुपए ही चार्ज होगा. लोग अभी भी नेचुरोपैथी के लिए दूसरे प्रदेशों का रुख करते हैं लेकिन बिहार में भी कई जगहों पर नेचुरोपैथी उपलब्ध हो गई है.

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