पटना:गुरुकुल परंपरा भारतीय शिक्षा पद्धति (Indian education system) की पहचान है. आधुनिकता के दौर में गुरुकुल परंपरा से लोग धीरे-धीरे विमुख होते जा रहे हैं हालांकि आज भी गुरुकुल परंपरा के कदरदान हैं. विदेशों में भी रह रहे भारतीयों ने गुरुकुल परंपरा को जीवित रखा है और भारत के गौरवशाली अतीत की शिक्षा गुरुकुल (Gurukul in America) के माध्यम से दी जा रही है.
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विदेशों में है गुरुकुल परंपरा की धमक: हमारे देश में गुरुकुल परंपरा अति प्राचीन व्यवस्था है. गुरुकुल वैदिक युग से ही अस्तित्व में है. प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षा पद्धति से ही शिक्षा दी जाती थी. विशेष शिक्षा पद्धति के चलते ही भारत को विश्व गुरु माना जाता था. आधुनिकता के इस दौर में शिक्षा के लिए लोग कॉन्वेंट का रुख कर रहे हैं लेकिन बावजूद इसके हमारे देश में गुरुकुल परंपरा को जिंदा रखने वालों की कमी नहीं है. गुरुकुल परंपरा भारत ही नहीं विदेशों में भी जीवित है और वहां रह रहे भारतीय गुरुकुल में अपने बच्चों को अध्यात्म और संस्कृति की शिक्षा दिलवाते हैं.
देश की सभ्यता संस्कृति से किया जा रहा अवगत: दरअसल अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं और उन्हें इस बात का डर रहता है कि उनके बच्चे पूरे तौर पर पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति में रच बस ना जाएं. न्यूयॉर्क शहर के टोमस रिवर में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं और वह भारत के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं. भारतीय भले ही अमेरिका में रह रहे हैं लेकिन भारतीयता से उनका गहरा लगाव है. वह चाहते हैं कि उनके बच्चे भी देश की सभ्यता संस्कृति और अध्यात्म को जाने.
मुजफ्फरपुर की सौम्या का प्रयास लाया रंग:मजबूत इरादों के साथ मुजफ्फरपुर की रहने वाली पेशे से चिकित्सक डॉक्टर सौम्या दास नए साल 2016 में न्यूयॉर्क में गुरुकुल परंपरा की शुरुआत की. शुरुआती दौर में तो आधे दर्जन बच्चे थे लेकिन गुरुकुल का कारवां धीरे-धीरे बढ़ता गया और आज की तारीख में गुरुकुल में 40 से ज्यादा बच्चे अध्ययन करते हैं. न्यूयॉर्क के टोंस रिवर स्थित इंडियन कल्चरल हेरिटेज सोसायटी के तहत सिद्धिविनायक टेंपल है जहां गुरुकुल चलता है.