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हिंदी पढ़ाते हैं ये मुस्लिम प्रोफेसर, कहा- मैं हिंदी ओढ़ता हूं, बिछाता हूं - हिंदी पढ़ाने वाले मुस्लिम प्रोफेसर

प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर राजधानी के टीपीएस कॉलेज में लगभग ढाई दशक से हिंदी पढ़ा रहे हैं. उनका मानना है कि भाषा का कोई धर्म नहीं होता है.

प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर

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Published : Nov 25, 2019, 8:12 PM IST

पटना:बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में मुस्लिम प्रोफेसर के संस्कृत पढ़ाने को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है. तो वहीं पटना में एक मुसलमान शिक्षक हैं, जो अपने मजहब को दरकिनार कर हिंदी पढ़ाते हैं. ईटीवी भारत ने उनसे बीएचयू के संग्राम को लेकर उनकी मनोदशा जानने की कोशिश की है.

प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर राजधानी के टीपीएस कॉलेज में लगभग ढाई दशक से हिंदी पढ़ा रहे हैं. उनका मानना है कि भाषा का कोई धर्म नहीं होता है. अपने अनुभव के आधार पर वह कहते हैं कि मुझे तो बिहार में छात्रों से बड़ा प्यार-दुलार मिला है. उन्हें कभी नहीं लगा कि वह अपने धर्म से अलग विषय पढ़ा रहे हैं.

बीएचयू मामले पर रखी राय
बीएचयू में मुस्लिम प्रोफेसर के संस्कृत पढ़ाने को लेकर चल रहे हंगामे पर प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर कहते हैं कि ज्ञान किसी धर्म में बंधा हुआ नहीं है. मदन मोहन मालवीय जी ने जिस उद्देश्य से बीएचयू की स्थापना की थी, आज वह उद्देश्य कहीं भटक गया है. भारत में सभी धर्मों के लोग एकसाथ रहते हैं. ऐेसे में धर्म के आधार पर ज्ञान का बंटवारा करना गलत है.

प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर का बयान

कौन है डॉ. जावेद अख्तर?
प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर यूपी के गोरखपुर के रहने वाले हैं. वह टीपीएस कॉलेज में साल 2003 से हिंदी पढ़ा रहे हैं. वह बताते हैं कि उन्हें साल1990 में विश्वविद्यालय सेवा आयोग से नियुक्ति हिंदी के व्याख्याता के रूप में मिली. उसके बाद से ही लगभग 25 वर्षों से वह हिंदी का ज्ञान छात्रों में बांट रहे हैं. वे वर्तमान में हिंदी के अध्यक्ष भी हैं.

'ज्ञान की भूमि है बिहार'
बिहार में अपने अनुभव के बारे में प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर कहते हैं कि बिहार ज्ञान की भूमि है. यहां उन्हें किसी तरह की कोई समस्या नहीं है. प्रोफेसर जावेद कहते हैं कि प्रोफेसर फिरोज खान ने कहा कि पढ़ते समय उन्हें कभी यह नहीं लगा कि वह मुसलमान हैं. लेकिन, पढ़ाते समय लोगों ने बताया कि वह मुसलमान हैं.

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मैं हिंदी ओढ़ता हूं, बिछाता हूं- डॉ. जावेद अख्तर
बता दें कि प्रोफेसर डॉ. जावेद अख्तर हिंदी के प्रोफेसर के अलावे रंगमंच में भी रूचि रखते हैं. उन्होंने अपने घर में हिंदी की लाइब्रेरी बना रखी है. जहां अनेकों हिंदी के किताबें मौजूद हैं. डॉ. जावेद अख्तर कहते हैं कि हिंदी केवल उनकी कमाई का जरिए मात्र नहीं है. हिंदी के लिए अपने प्रेम को उन्होंने दुष्यंत कुमार की पंक्तियों में बयां किया. उन्होंने कहा कि जिसे मैं ओढ़ता हूं, बिछाता हूं...वह गजल आपको सुनाता हूं.
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