पटना:आज मुंशी प्रेमचंद का जन्मदिन (Munshi Premchand Birthday) है. 31 जुलाई 1880 को प्रेमचंद्र का जन्म हुआ था. हीरा और मोती बैल की अमर कहानी हो या फिर ईदगाह का हमीद, गोदान हो या फिर नमक का दारोगा. केवल कहानियों के शीर्षक का नाम लेते ही जेहन में जिसका नाम दौड़ जाता है, वह नाम है मुंशी प्रेमचंद का. हिंदी साहित्य में वैसे तो एक से बढ़कर एक कई महान लेखक हुए लेकिन कथा सम्राट की उपलब्धि अगर किसी लेखक को मिली तो वह केवल मुंशी प्रेमचंद थे. आज हम आपको धनपत राय के बिहार आने की कहानी बताएंगे.
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प्रेमचंद्र की बिहार यात्रा: बहुत कम लोग जानते हैं कि मुंशी प्रेमचंद पटना भी आए थे और तब उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि पटना के श्रोताओं को देखकर मन खुश हो गया. यहां के श्रोता बहुत प्रबुद्ध हैं. मुंशी प्रेमचंद के पटना आने और उनके व्याख्यान को लेकर काफी रिसर्च कर चुके पटना कॉलेज के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर तरुण कुमार कहते हैं कि मुंशी प्रेमचंद जितने बड़े लेखक थे, उतने ही बड़े सादगी की मूर्ति भी थे. मुंशी प्रेमचंद 22 नवंबर 1931 को पटना कॉलेज में आए थे. तब उन्हें कॉलेज के अंदर स्थित जिम्नेजियम हॉल में पटना कॉलेज की हिंदी साहित्य परिषद की तरफ से आयोजित किए गए एक प्रोग्राम में आमंत्रित किया गया था.
पटना कॉलेज आए थे मुंशी जी: मुंशी प्रेमचंद जब इस कॉलेज में अपना व्याख्यान देने आए थे उन्हीं दिनों में इस कॉलेज में हिंदी के मूर्धन्य लेखक रामधारी सिंह दिनकर और कलेक्टर सिंह केसरी अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. मुंशी प्रेमचंद के पटना आने को लेकर काफी रिसर्च कर चुके पटना कॉलेज के हिंदी विभाग के एचओडी प्रोफेसर तरुण कुमार कहते हैं, मुंशी जी जितनी ही उच्च कोटि के लेखक थे, उससे ज्यादा वह सादगी की प्रतिमूर्ति भी थे. प्रोफेसर तरुण बताते हैं कि मुंशी प्रेमचंद 22 नवंबर 1931 को पटना कॉलेज में आए थे. उस दिन रविवार था और शाम को 6:45 बजे के करीब 1921 में बने जिम्नेशियम हॉल में व्याख्यान था.
1929 में व्याख्यान देने आए थे प्रेमचंद्र: प्रोफेसर तरुण बताते हैं कि पटना कॉलेज के हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना 1929 में हुई थी. उस दौरान के हिंदी साहित्य के छात्रों ने मुंशी प्रेमचंद को आमंत्रित किया था. जिसके बाद पहली बार और संभवत अंतिम बार मुंशी प्रेमचंद पटना आए थे. प्रोफेसर तरुणी के अनुसार मुंशी जी का जब व्याख्यान चल रहा था, तब हॉल की क्षमता बहुत कम थी. सौ डेढ़ सौ के करीब लोग उसमें आ सकते थे, लेकिन बाहर भी श्रोताओं की भीड़ लगी हुई थी. अपने संबोधन के दरमियां ही मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि यूपी में भी मीटिंग होती है लेकिन वहां ज्यादा से ज्यादा 100-200 लोग ही होते हैं, उन्होंने कहा था कि जैसी दरियादिली मैंने बिहार के लोगों में देखी वैसी दरियादिली हमने कहीं नहीं देखी.