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बच्चों में बढ़ा मल्टीपल इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम का खतरा, जानिए इसके लक्षण और बचाव के तरीके

बिहार में अब मल्टीपल इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (Multiple Inflammatory Syndrome) ने दस्तक दे दी है. पटना के कई बच्चों में इसके लक्षण पाए गए हैं. कोरोना संक्रमित बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं. इस रिपोर्ट में जानिए इसके लक्षण और बचाव के तरीके...

पटना
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Published : Sep 4, 2021, 10:46 PM IST

पटना:राजधानी पटना के प्रतिष्ठित पटना एम्स (Patna AIIMS) में इन दिनों बच्चों में मल्टीपल इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (Multiple Inflammatory Syndrome) के कई मामले सामने आ रहे हैं और इस बीमारी से बीते कुछ दिनों में कई बच्चों की जान भी गई है. ऐसे में कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोगों के मन में डर बैठ गया है कि कहीं ये तीसरी लहर की सुगबुगाहट तो नहीं है.

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बीते दिनों पटना के नेहरू नगर की 11 वर्षीय बच्ची की अस्पताल में इसी बीमारी से मौत हो गई. पटना एम्स के शिशु रोग के विभागाध्यक्ष डॉ.लोकेश कुमार ने जानकारी दी कि बीते डेढ़ महीने में 16 एमआईएस के मामले सामने आए हैं, जिनमें से 4 बच्चों की जान चली गई है. इस बीमारी के मामले 2 से 12 साल के बच्चों के बीच मिले हैं.

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मल्टीपल इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम के बारे में जानकारी देते हुए पटना एम्स के वरिष्ठ चिकित्सक प्रोफेसर डॉक्टर अनिल कुमार ने बताया कि मल्टीपल इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम एक तरह का पोस्ट कोविड-19 सिंड्रोम है और अच्छी बात यह है कि इस बीमारी के मामले काफी कम मिलते हैं और यह बीमारी बच्चों में अधिक देखने को मिलती है. डॉक्टर अनिल कुमार ने बताया कि यह बीमारी उन बच्चों को होता है जिन्हें कोरोना होता है और इम्यून सिस्टम उनका लेट से काम करना शुरू होता है.

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इस बीमारी में बच्चों के शरीर में सभी ऑर्गन का एक साथ इन्फ्लेमेशन होने लगता है. बीमारी के लक्षण के बारे में बताते हुए डॉक्टर अनिल कुमार ने बताया कि इस बीमारी में शरीर में बुखार लगातार रहता है और बुखार उतरता नहीं है. इसके साथ ही बुखार के अलावा शरीर के एक या एक से अधिक ऑर्गन फेल हो जाते हैं.

''बच्चे की स्किन पर रैसेज, हाथ में सूजन या फिर स्किन पूरा लाल नजर आ सकती है. कई बार जीभ में भी सूजन आ जाती है और जीभ का रंग स्ट्रॉबेरी जैसा हो जाता है. बच्चे का हार्ट का इन्फ्लेमेशन हो जाता है और ब्लड प्रेशर लो हो जाता है. ब्लड प्रेशर लो होने की वजह से शरीर ठंडा पड़ने लगता है, लेकिन मस्तिष्क में बुखार रहता है.''- डॉक्टर अनिल कुमार, वरिष्ठ चिकित्सक, पटना एम्स

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डॉक्टर अनिल कुमार ने बताया कि इस बीमारी में बच्चे को सांस लेने में भी तकलीफ होती है और खांसी भी आती है. न्यूरोलॉजिकल सिम्टम्स इस बीमारी में ये होता है कि सिर में बहुत दर्द रहता है और चमकी यानी की थरथराहट जैसी समस्याएं होने लगती है. इस बीमारी में आंत से जुड़ा जो सिस्टम है वो ये है कि बच्चे को डायरिया, वोमेटिंग और पेट में दर्द होता है.

डॉक्टर अनिल कुमार ने कहा कि वो ईटीवी भारत के माध्यम से लोगों से अपील करना चाहेंगे कि अगर इस प्रकार के लक्षण बच्चों में नजर आते हैं, तो वो जितना जल्दी हो सकें डॉक्टर से कंसल्ट करें. डॉक्टर से भी कंसल्ट करते वक्त ये ध्यान रखें कि किसी बड़े मेडिकल कॉलेज अस्पताल या किसी बड़े अस्पताल में लेकर जाएं, जहां विभिन्न बीमारियों के चिकित्सक रहते हैं. इस बीमारी में बच्चे के इलाज के लिए समय पर पहुंचना बेहद जरूरी है, क्योंकि इस बीमारी में जैसे-जैसे लेट होता है, बच्चे का ऑर्गन फेल होता है और जान जाने का खतरा बढ़ जाता है.

डॉक्टर अनिल कुमार ने बताया कि इस बीमारी का इलाज एक डॉक्टर के बस की बात नहीं है. इस बीमारी के लिए बच्चे को अस्पताल में एडमिट करना पड़ता है. फिर पेडिट्रिशियन की जरूरत पड़ती है. इसके अलावा कार्डियोलॉजिस्ट और हेमेटोलॉजिस्ट की जरूरत पड़ती है. इसके साथ ही बच्चे के ट्रीटमेंट के लिए क्रिटिकल केयर यूनिट की आवश्यकता होती है.

उन्होंने कहा कि इस बीमारी में इलाज के लिए मल्टीपल डिसीप्लिनरी एप्रोच की जरूरत पड़ती है. किसी छोटे शहर में यह सुविधा नहीं मिल पाती है. इस बीमारी के इलाज के लिए कुछ प्रोटोकॉल निर्धारित है, जिसमें इंट्रावेनस इम्यूनोग्लोबुलीन दी जाती है, कॉर्टिकोस्टेरॉइड दी जाती है, लो डोज एस्प्रिन दी जाती है और एंटीपायरेटिक या पेरासिटामोल दी जाती है.

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डॉक्टर अनिल कुमार ने कहा कि अभी के समय आंकड़ों को देखें तो बिहार में कोरोना की तीसरी लहर की संभावना काफी कम नजर आ रही है, क्योंकि प्रतिदिन काफी कम मामले सामने आ रहे हैं. अस्पताल में मरीजों को सर्जरी के लिए एडमिट करने से पहले उनका कोरोना की आरटी-पीसीआर और एंटीजन जांच की जाती है, लेकिन पिछले डेढ़ महीने से अब तक ऐसे मामले सामने नहीं आए हैं कि मरीज को एडमिट करने के बाद उसकी जांच पॉजिटिव आई हो.

उन्होंने कहा कि अभी कोरोना काल की स्थिति है, मगर कुछ बच्चों में कोरोना के मामले मिले हैं. ऐसे में वो अभिभावकों से अपील करना चाहेंगे कि बच्चों को कोविड-19 एप्रोप्रियेट बिहेवियर फॉलो कराएं. बच्चों में एंटीबॉडी काफी बेहतर होती है और उन्हें कोरोना होता भी है तो वो जल्दी ठीक हो जाते हैं. वैक्सीनेशन ट्रायल के दौरान 30 से 40 फीसदी बच्चों में एंटीबॉडी मिला. इसका मतलब साफ है कि कोरोना के लक्षण जल्दी बच्चों में नजर नहीं आते और बच्चे एसिंप्टोमेटिक रूप से संक्रमित होकर ठीक हो जाते हैं.

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