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कानूनी पचड़े को लेकर पीछे हटे मुकेश साहनी, मंत्री अशोक चौधरी को लेकर संशय बरकरार

बिहार सरकार के पशुपालन मंत्री मुकेश साहनी विधान परिषद उपचुनाव के जरिए विधान परिषद सदस्य बनने से इंकार कर रहे थे, लेकिन कानूनी पचड़े से बचने के लिए मुकेश साहनी ने आखिरी वक्त में यू टर्न ले लिया. अब वे उपचुनाव के लिए नामांकन करेंगे. लेकिन मंत्री अशोक चौधरी को लेकर संशय बना हुआ है.

मुकेश साहनी,
मुकेश साहनी

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Published : Jan 18, 2021, 1:37 AM IST

पटना:महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद बिहार में मंत्रियों के राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. मुकेश साहनी ने मौके की नजाकत को भांपते हुए कानूनी पचड़े में पड़ने के बजाय विधान परिषद उप चुनाव में नामांकन करने का फैसला लिया, हालांकि मंत्री अशोक चौधरी को लेकर संशय बना हुआ है.

मंत्री मुकेश साहनी ने लिया यू-टर्न
बिहार सरकार के पशुपालन मंत्री मुकेश साहनी विधान परिषद उपचुनाव के जरिए विधान परिषद सदस्य बनने से इंकार कर रहे थे, लेकिन कानूनी पचड़े से बचने के लिए मुकेश साहनी ने आखिरी वक्त में यू टर्न ले लिया. अब वे उपचुनाव के लिए नामांकन करेंगे. दरअसल, मुकेश साहनी 6 साल के लिए परिषद का सदस्य बनना चाहते थे. लिहाजा उनकी मंशा राज्यपाल कोटे से जाने की थी. भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी के लिए भी अब विधान परिषद जाने का एक रास्ता ही है. वह भी राज्यपाल कोठे की आस लगाए बैठे हैं.

महाराष्ट्र में ये हुआ था
दरअसल, महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के लिए राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन को लेकर बखेड़ा खड़ा हो गया था. उद्धव ठाकरे के समक्ष तीन रास्ते थे. उन्हें या तो विधानसभा का चुनाव लड़कर सदन का सदस्य बनना था, विधान परिषद में चुनकर आना था या फिर वह पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान की तरफ पद से इस्तीफा देकर दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लें. महाराष्ट्र की घटना के बाद बिहार में भी इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई है कि क्या कैबिनेट के सदस्य अपने बारे में मनोनयन को लेकर राज्यपाल को रिकमेंडेशन भेज सकते हैं.

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अधर में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी का भविष्य
पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार का कहना है कि मुकेश साहनी और अशोक चौधरी 16 नवंबर 2020 को सीएम नीतीश कुमार के रिकमेंडेशन पर मंत्री बने हैं और दोनों कैबिनेट के सदस्य हैं. संविधान की धारा 171(5)के अंतर्गत राज्यपाल अलग-अलग क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान देने वालों का मनोनयन करते हैं. कैबिनेट के मंत्री अपने मनोनयन के बारे में प्रस्ताव राज्यपाल को नहीं भेज सकते हैं. इसके लिए सरकार को आवेदन आमंत्रित करना चाहिए.

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भाजपा नेता और विधान पार्षद नवल किशोर यादव मानते हैं कि मनोनयन में कोई विवाद नहीं है. जिन लोगों का मनोनयन होना होता है, वह उस दिन की कैबिनेट में भाग नहीं लेगा. उनके नाम के प्रस्ताव को मुख्यमंत्री कैबिनेट से पारित करवाते हैं और उसके बाद स्वीकृति के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाता है. बिहार में ऐसा होता रहा है.

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