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Lockdown Effect : कोरोना से बेपटरी हुए लाइफ के इंजन में कौन सा ऑयल डालें मोटर मैकेनिक? - patna news

देशभर में लागू लॉकडाउन के बाद आम जिंदगी थम गई है. ऐसे में रोज कमाने वाले छोटे-छोटे मोटर मैकेनिकों पर भी इसका असर पड़ रहा है. ईटीवी भारत ने इन मैकेनिकों का हाल जाना, पढ़ें ये रिपोर्ट...

बिहार के मोटर मैकेनिक
बिहार के मोटर मैकेनिक

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Published : Apr 20, 2020, 8:08 PM IST

पटना: 'चारों तरफ शांति, हर तरफ वीरानी, आम इंसान को हो रही सबसे ज्यादा परेशानी'. लागू लॉकडाउन के बाद तस्वीरें कुछ ऐसी ही हैं. कोरोना वायरस के भय और जारी लॉकडाउन से हर वर्ग के लोग परेशान हैं. ऐसे में दिन में कमाने और रात में खाने वाले लोगों को ज्यादा परेशानी हो रही है. बात करें मोटर मैकेनिक की, जो हर रोज की कमाई से पाई-पाई जोड़ अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. आज कोरोना ने उनकी दुकानों पर ग्रहण लगा दिया है.

क्या करें साहब! जब सड़कों पर गाड़ियां होंगी नहीं. तो दुकानों पर लॉकडाउन न होते हुए भी लॉक लगना लाजमी हो जाएगा. ऐसे में ईटीवी भारत ने पटना के मोटर मैकेनिकों का दर्द जानने की कोशिश की. वैसे तो देशभर की कहानी कुछ ऐसी ही है. लेकिन बिहार के हाल भी कम नहीं हैं. बड़े मोटर मैकेनिक परेशान नजर आ रहे हैं क्योंकि उनके यहां काम करने वाले मैकेनिक स्थानीय नहीं होते. प्रदेश के अलग अलग जिलों से आये मोटर मिस्त्री जहां हैं, वहीं फंसे हैं और आर्थिक तंगी का शिकार हो रहे हैं.

पटना से अरविंद राठौर की रिपोर्ट

'उधारी से कट रहे दिन'
वहीं, फुटपाथ पर छोटे मोटर मैकेनिकों पर तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. बात करें, पटना की तो 3 हजार 500 से ज्यादा मोटर मैकेनिक हर रोज वाहनों की मरम्मती करते हैं. सभी परेशान हैं. उनकी मानें तो वो हर रोज 500 से 1 हजार रुपया तक कमा लेते थे. ऐसे में जारी लॉकडाउन ने उनकी जेब खाली कर दी है. लिहाजा, वो उधार मांग-मांग कर अपनी भूख मिटा रहे हैं.

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प्रदेश के होते हुए भी घर नहीं जा सकते
वहीं, दूसरी ओर कुछ मैकेनिकों ने बताया कि वो पटना के नहीं हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण सबकुछ बंद है इसलिए घर नहीं जा सकते. मोटर मैकेनिकों की मानें, तो कोरोना के खिलाफ सरकार का फैसला सही है. ये सभी पर लागू है लेकिन अगर सरकार खाने का सही से इंतजाम करा दे तो अच्छा होगा. एक सवाल के जवाब ने मैकेनिक ने बताया कि हालात ऐसे ही रहे तो ज्यादा परेशानी होगी.

इन सभी मोटर मैकेनिकों की निगाहें सड़कों पर जमी हुई हैं. आखिर इन्हीं सड़कों के गुलजार होते ही उनका धन्धा फिर से चलेगा. इन मैकेनिकों को इंतजार है अपनी दुकानों के लॉक को खोलने का. इन्हें इस बात का इंतजार है कि कोरोना जैसी महामारी से बेपटरी हुई जिंदगी कब दोबारा एक बार फिर पटरी पर लौटेगी.

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