पटना: राज्य के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी (Minister Ashok Choudhary) और खनन एवं भूतत्व मंत्री जनक राम(Minister Janak Ram) को राज्यपाल कोटे से विधान पार्षद मनोनीत किये जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकृत कर लिया. चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ वेटेरन फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ की याचिका पर सुनवाई की.
ये भी पढ़ें-उज्ज्वल कुमार सिन्हा को पटना HC ने तत्काल प्रभाव से किया निलंबित
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने पिछ्ली सुनवाई में कोर्ट को बताया था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 171 के सब क्लॉज (3) और क्लॉज (5) के तहत उक्त मंत्रियों के मनोनयन को चुनौती दी गई है.
''अशोक चौधरी को मंत्री के तौर पर नियमों के विपरीत 6 मई 2020 से 5 नवंबर 2020 तक कार्य करने दिया गया. बाद में अशोक चौधरी और जनक राम को 16 नवंबर 2021 को कथित तौर से अवैध रूप से मंत्री बनाया गया, जबकि वे विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य नहीं थे. विधान परिषद के सदस्य के रूप में अशोक चौधरी का कार्यकाल 6 मई 2020 को ही समाप्त हो गया था. उन्होंने कोई चुनाव भी नहीं लड़ा है. उन्हें 17 मार्च 2021 को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया.''- दीनू कुमार, अधिवक्ता
ये भी पढ़ें-बैंक खातों की डिटेल्स लीक होने की आशंका से पटना हाई कोर्ट के वकील परेशान
उनका कहना था कि इस प्रकार से 6 मई 2020 से 5 नवंबर 2020 तक उनका मंत्री पद पर बने रहना असंवैधानिक है. इतना ही नहीं 16 नवंबर 2020 को मंत्री पद पर नियुक्ति और राज्यपाल कोटे से विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया जाना भारत के संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया था कि संविधान के अनुच्छेद 164(4) का लाभ दोबारा नहीं मिल सकता है, इसलिए किसी व्यक्ति को राज्य में मंत्री नियुक्त होने पर 6 महीने की अवधि के भीतर एमएलए या एमएलसी होना होगा. राज्यपाल कोटे से विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्टता प्राप्त व्यक्तियों को मनोनीत करने का संवैधानिक प्रावधान हैं. अब इस मामले पर आगे विस्तृत सुनवाई की जाएगी.