आकस्मिकता निधि का दुरुपयोग कर रही नीतीश सरकार, आपदा से अधिक अन्य मदों में खर्च - बिहार आकस्मिकता निधि दुरुपयोग
बिहार में आकस्मिकता निधि का दुरुपयोग किया जा रहा है. सीएजी ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि वित्त विभाग को आकस्मिकता निधि कोष में ऐसी वार्षिक वृद्धि की प्रथा की समीक्षा करनी चाहिए.
misuse of Contingency Fund
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Published : Apr 14, 2021, 7:29 PM IST
पटना: बिहार में नीतीश सरकारआकस्मिकता निधि की राशि का दुरुपयोग कर रही है. आकस्मिकता निधि में जो राशि खर्च की जा रही है, वह प्राकृतिक आपदाओं से अधिक अन्य मदों में ज्यादा है. इसको लेकर सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में भी सरकार पर सवाल खड़े किए हैं. सीएजी ने तो अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि आकस्मिकता निधि का इस्तेमाल विभागों की गाड़ियों को खरीदने तक में किया गया.
बिहार की आकस्मिकता निधि सबसे अधिक बिहार देश का इकलौता राज्य है, जिसकी आकस्मिकता निधि 7000 करोड़ से अधिक का है. बिहार सरकार ने बिहार आकस्मिकता निधि संशोधन अधिनियम 2015 के द्वारा 1 अप्रैल 2018 से 30 मार्च 2019 की अवधि के लिए निधि के कोष को अस्थाई रूप से 350 करोड़ से बढ़ाकर 7079.61 करोड़ कर दिया. जो प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, भूकंप और भारत सरकार द्वारा प्रायोजित परियोजनाओं के राज्यांश को पूरा करने के लिए है. जिसके लिए बजट प्रावधान न किया गया हो और व्यय को तत्काल किया जाना हो, के लिए था.
मोटर वाहन खरीदने में खर्च बढ़ाई गई कुल राशि के 50% का उपयोग केवल प्राकृतिक आपदाओं के राहत और पुनर्वास उपायों के लिए किया जाना था. लेकिन सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 12 विभागों में 64.10 करोड़ की राशि का केवल मोटर वाहन खरीदने में खर्च कर दिया गया. आकस्मिकता निधि से 318 करोड़ की राशि विधायकों के स्थानीय क्षेत्र विकास निधि में राज योजना और मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के लिए किया गया. सीएजी ने यह भी कहा कि विभाग ने सामान्य बजट के द्वारा व्यय नहीं किये जाने के पीछे बजह भी नहीं बताया.
पिछले कुछ सालों के दौरान आकस्मिकता निधि की राशि किस प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं में खर्च हुई है, आंकड़ा से ही पता चलता है----
वर्ष
आकस्मिकता प्राकृतिक कुल व्यय
कुल व्यय
आपदाओं पर व्यय
2014- 15
1875.84
204.52
10.90%
2015- 16
6117.60
2200 5.00
36.04%
2016- 17
4416.63
1524.42
34.52%
2017 -18
4949.21
3898.33
39.62%
2018- 19
4353.49
1725.00
39.62%
सरकार पूरी तरह से विफल आंकड़ों से ही स्पष्ट है कि बिहार में 2014-15 में आकस्मिकता निधि से कुल व्यय 1875 करोड़ से अधिक की गई और उसमें से प्राकृतिक आपदाओं पर व्यय केवल 10.90% था. तो वहीं 2015- 16 में आकस्मिकता निधि में जो कुल व्यय किया गया, उसमें प्राकृतिक आपदाओं पर केवल 36.04% था. 2016-17 में भी कुल व्यय का प्राकृतिक आपदाओं पर व्यय केवल 34.52% था. 2017-18 में बढ़कर 78% से अधिक हुआ. लेकिन फिर 2018-19 में घटकर 39% के आस पास रह गया. जबकि यह प्रावधान है कि कुल व्यय में कम से कम 50% राशि आपदा पर खर्च करना है. इसमें सरकार पूरी तरह से विफल दिख रही है.
आपदा के लिए बिहार का आकस्मिकता निधि
7079.61 करोड़
भारत सरकार कामध्य प्रदेश सरकार का आकस्मिकता निधि आकस्मिकता निधि
500 करोड़
झारखंड सरकार का आकस्मिकता निधि
500 करोड़
झारखंड सरकार का आकस्मिकता निधि
500 करोड़
उत्तर प्रदेश सरकार का आकस्मिकता निधि
600 करोड़
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 267(दो) और 283 (दो) के प्रावधानों के अंतर्गत बिहार में आकस्मिकता निधि अधिनियम 1950 के द्वारा राज्य की आकस्मिकता निधि को स्थापित किया गया है.
वित्त विभाग को बजट में करनी चाहिए थी व्यवस्था सबसे दिलचस्प है कि सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 12 विभागों में 64.10 करोड़ की राशि मोटर वाहन क्रय के लिए समान बजट से खर्च करने के बजाय निधि से कर दिया गया है.
सीएजी ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि वित्त विभाग को आकस्मिकता निधि कोष में ऐसी वार्षिक वृद्धि की प्रथा की समीक्षा करनी चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आकस्मिकता निधि से अग्रिम केवल उन्हीं योजनाओं के लिए किया जाना चाहिए. जैसा कि संविधान और बिहार आकस्मिकता निधि अधिनियम में परिकल्पित है.
हालांकि सीएजी की आपत्ति के बाद वित्त विभाग की तरफ से यह जरूर कहा गया कि संबंधित प्रशासनिक विभागों द्वारा मोटर वाहन के क्रय के मुद्दे पर कार्रवाई की जाएगी. लेकिन सीएजी ने साफ कहा है कि वित्त विभाग नियमित व्यय के लिए बजटीय प्रावधान करना और वार्षिक बजट प्रक्रिया में व्यय को पूर्व में पारित कराना वित्त विभाग पर निर्भर करता है. जैसा कि संविधान में व्यवस्था है और इसमें वित्त विभाग विफल रहा है.