पटना : बिहार में नीतीश की नई कैबिनेट में उस समय विवाद उठ गया, जब बिहार में जेडीयू कोटे से विधायक मेवालाल चौधरी ने शपथ ली. मेवालाल चौधरी के शपथ के बाद से ही बिहार में यह सवाल उठने लगा था कि नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक मजबूरी के तहत मेवालाल चौधरी को मंत्री बनाया.
मेवालाल चौधरी पर कई गंभीर आरोपों के तहत मामले दर्ज हैं, जिसमें वाइस चांसलर रहते हुए भवन निर्माण और नियुक्ति में अनियमितता को लेकर उन पर आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471 और 120(बी) के तहत मामला (केस नं 35/2017) दर्ज किया गया. शपथ के बाद बढ़े राजनीतिक दबाव ने मेवालाल को पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया. मेवालाल चौधरी के इस्तीफे के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या मेवालाल नीतीश की मर्यादित राजनीति की प्रतिष्ठा बन गए या फिर बीजपी के दबाव में नीतीश कुमार ने मेवालाल से इस्तीफा ले लिया.
नीतीश पर बना दबाव?
मेवालाल ने इस्तीफा देने के बाद खुद को अपने घर में कैद कर लिया. बाद में मीडिया से मुखातिब होते हुए जेडीयू विधायक ने कहा कि उन्होंने सीएम नीतीश कुमार की क्षवि को लेकर ही यह फैसला लिया है. मेवालाल के इस बयान से ये बात साफ हो गई कि खुद उनके ऊपर भी दबाव बन गया था. दूसरी ओर उन्हें जिस विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, इस चुनाव उसे मुद्दा बनाया गया था.
बिहार की लचर शिक्षा व्यवस्था के हाल किसी से छिपे नहीं हैं. प्रदेश में छात्र-शिक्षक अनुपात, छात्र-स्कूल अनुपात में सटीक संतुलन नहीं है. सूबे में तकरीबन 2 लाख 85 हजार शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं. 2019 में निकली शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया आज तक पूरी नहीं हो पाई है. बता दें 1 लाख 25 हजार शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया कई कारणों से ठंडे बस्ते में है. ऐसे में मेवालाल की एंट्री ने शिक्षक अभ्यर्थियों के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी. शिक्षकों के मामले को लेकर तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को जिस तरह से घेरा था, उसके बाद इस विभाग के लिए साफ सुधरी छवि के लोगों को रखना एक चुनौती थी.
बीजेपी सख्त!
स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा को लेकर विपक्ष चुनाव के पहले से अब तक हमलावर है. 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' का नारा देने वाली बीजेपी आज बिहार में जेडीयू के साथ सरकार में है. सेकेंड लार्जेस्ट पार्टी बीजेपी के 74 विधायकों के साथ बिहार के विकास को लेकर तमाम दावे कर रही है. खुद पीएम मोदी ने केंद्र की ओर से बिहार के विकास के लिए मदद का आश्वासन भी दिया है. ऐसे में दागी चेहरे पर शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौंपना. मतलब मोदी के नेतृत्व पर भी चोट पहुंचाने जैसा रहा. सवाल बीजेपी पर भी उठने लगे कि जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ शपथ लेते हुए उनके जीते हुए विधायकों ने पार्टी कार्यालय में शपथ लेते हुए विधानसभा में एंट्री ली. वो क्या मेवालाल जैसे मंत्री के साथ काम करेंगे. यह भी नीतीश कुमार को मनोवैज्ञानिक दबाव रहा है.