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फिर याद आए आइंस्टीन को चैलेंज करने वाले बिहार के गौरव वशिष्ठ बाबू, ऐसा था सफर

देश के महान गणितज्ञ और बिहार की शान डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह का आज जन्मदिन है. इनका जन्म भोजपुर के बसंतपुर में सन 2 अप्रैल 1942 में हुआ था. इनके गणित के ज्ञान की कायल पूरी दुनिया थी.

बिहार के गौरव वशिष्ठ बाबू
बिहार के गौरव वशिष्ठ बाबू

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Published : Apr 2, 2021, 1:33 PM IST

पटना: बिहार के एक साधारण परिवार में जन्मे वशिष्ठ नारायण सिंह का आज जन्मदिन है. देश के महान गणितज्ञ और बिहार की शान डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म भोजपुर के बसंतपुर में सन 2 अप्रैल 1942 में हुआ था. इनके गणित के ज्ञान की कायल पूरी दुनिया थी. उन्होंने आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी. उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि ली थी. इसके बाद नासा में सेवा देने के अलावा वो देश-विदेश के कई नामचीन शिक्षण संस्थाओं में पढ़ा चुके थे. मरनोपरांत उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया.

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नासा में भी बिहार विभूति वशिष्ठ बाबू ने किया काम
बिहार विभूति ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के ही एक प्राथमिक विद्यालय से हासिल की. आगे की पढ़ाई के लिए नेतरहाट और दूसरे विद्यालयों में भी गए. जब वशिष्ठ बाबू पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई करते थे तभी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी थी. जॉन कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और वशिष्ठ नारायण ने जॉन कैली के साथ लंबे वक्त तक काम किया. 1965 में वशिष्ठ बाबू अमेरिका चले गए. 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बन गए. उन्होंने नासा में भी काम किया लेकिन मन नहीं लगा और 1971 में भारत लौट आए.

बिहार विभूति के घर में लगी उनकी तस्वीर

कमरे की दीवारों पर लिखे हैं गणित के सूत्र
1973 में वशिष्ठ नारायण सिंह की शादी वंदना रानी से की गई. उसके कुछ साल बाद से ही उनके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा और वे स्किजोफ्रेनिया बीमारी से पीड़ित हो गए. हालांकि पढ़ाई और गणित से लगाव के कारण वे तब भी वह किताब-कॉपी से दूर नहीं हुए. उनके कमरे की दीवारों पर तरह-तरह के गणित के सूत्र लिखे मिलते हैं.

1942 में हुआ था वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म
बता दें कि देश के महान गणितज्ञ और बिहार की शान डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म भोजपुर के बसंतपुर में सन 2 अप्रैल 1942 में हुआ था. पांच भाई बहनों में सबसे बड़े वशिष्ठ बाबू थे. सीता देवी,अयोध्या प्रसाद सिंह, हरिचंद्र नारायण सिंह और छोटी बहन मीरा देवी हैं. वशिष्ठ नारायण के पिताजी का नाम लाल बहादुर सिंह और मां का नाम लहासो देवी था. उनके करीबी बताते हैं जब वशिष्ट बाबू छोटे थे तो वह बसंतपुर के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाते थे. उस दौरान उन्हें पढ़ाई के अलावा खाने तक की फुर्सत नहीं मिलती थी. मां स्कूल से जबरदस्ती खींच कर घर लाती और उन्हें खाना खिलाती थी. छोटे वशिष्ठ को पढ़ाई और गणित से बचपन से ही गहरा लगाव रहा था.

वशिष्ठ नारायण सिंह का पैतृक आवास

अपने देश ने ही वशिष्ठ नारायण सिंह को कर दिया पराया
बेहद दुखद है ये कि नासा में बतौर गणितज्ञ काम करने वाले और आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती देने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह को उनके अपने देश ने ही पराया कर दिया. प्रदेश में भी निधन के बाद पीएमसीएच प्रबंधन तक तय समय पर उन्हें एंबुलेंस भी मुहैया नहीं करवा सका. काफी देर तक उनका शव खुले आसमान के नीचे यूं ही पड़ा रहा. बाद में किरकिरी होती देख अस्पताल प्रबंधन ने जांच करने का रटा-रटाया जवाब देते हुए लीपापोती करने की कोशिश की. परिजनों ने भी पूरे घटनाक्रम पर अपनी नाराजगी जाहिर की.उनके भतीजे ने तो यहां तक कह दिया कि भारत में हुनर की कोई कद्र नहीं है. पूरा विश्व जिसकी प्रतिभा का लोहा मानता है उसके अपने देश ने ही उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया.

देश के महान गणितज्ञ

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वशिष्ठ बाबू की शान में किए जा रहे वादे
वशिष्ठ नारायण सिंह के निधन के बाद उनके सम्मान में भारत रत्न और यूनिवर्सिटी की मांग उठाई गई. जिसके बाद 25 जनवरी 2020 में महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह साइंस और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया है. वशिष्ठ नारायण सिंह ने अल्बर्ट आइंस्टीन के रिलेटिविटी थ्योरी को भी चैलेंज किया था. पिछले साल 14 नवंबर को उनका निधन हो गया. लंबे समय से सिजोफ्रेनिया से जूझ रहे थे. बिहार में कोईलवर में बन रहे छह लेन का पुल उन्हीं के नाम पर रखा जा रहा है.

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