पटना: इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत मोहमद साहब के नवासे मो. हजरत हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ कर्बला की जंग को लड़ा था. जहां मोहमद हजरत हुसैन लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. कर्बला इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर एक कस्बा है. वहीं,10 अक्टूबर 680 ई. को 123 लोग मौजूद थे. जिसमें हजरत हुसैन के साथ 72 मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे. वहीं, दूसरी तरफ 40 हजार सेना थी.
पटना: 8 सितंबर को हजरत हुसैन की याद में शिया समुदाय के लोग निकालते हैं मातमी जुलूस
8 सितम्बर के दिन से सिया समुदाय के लोग अपने कलेजा को ठोकते हुए. मातमी जुलूस हजरत हुसैन के याद में निकलते है. जहां लोग उनकी याद में उनके प्रति श्रधांजलि शोक मानते है.
इस्लाम धर्म को झुकने नहीं दिया
हजरत हुसैन की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली अपने 72 साथियों के साथ यजीदी फौज की कमान उमर इब्ने सअद से जमकर मुकाबला किया. इस्लाम धर्म को झुकने या गिरने नहीं दिया. उमर लाख बार अब्बास को धर्म परिवर्तन के लिए कहते रहे. लेकिन, उन्होंने युद्ध के लिये ललकारा और इस्लाम धर्म को बदनाम नहीं होने दिया. अब्बास लड़ते-लड़ते हजारों सेना के साथ वीरगति प्राप्त को प्राप्त हुए. उनकी मौत के बाद बच्चे, महिलाओं की बहुत बेरहमी से हत्या कर दी गई.
8 सितम्बर को शोक मनाते हैं शिया समुदाय के लोग
इस्लाम धर्म को बचाने के लिए हजरत हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद हुए थे. जिसमें महिला और बच्चे भी शहीद हुए थे. इसलिए 8 सितम्बर के दिन से शिया समुदाय के लोग अपने कलेजा को ठोकते हुए. मातमी जुलूस हजरत हुसैन के याद में निकलते है. जहां लोग उनकी याद में उनके प्रति श्रद्धांजलि देते हैं और शोक मनाते हैं.