मसूर की फसल में सुखड़ा रोग पटना:राजधानी पटना के ग्रामीण इलाकों में मसूर में सुखड़ा रोग से किसान परेशान(Farmers worried from disease in Masoor in Patna)हैं. मसौढ़ी प्रमंडल स्थित कई गांवों के किसानों का कहना है कि मसूर की फसल में इन दिनों सूखा रोग लग गया है. जिससे किसानों के सैकड़ों एकड़ खेत में मसूर के फसल बर्बाद हो रहे हैं. किसानों के अनुसार कृषि वैज्ञानिक को इसकी जानकारी कई बार दी गई है. इसके बावजूद इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
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मसूर के फसल में सुखड़ा रोग:जिले के मसौढ़ी अंतर्गत कई गांवों, टोलों में तकरीबन सैकड़ों एकड़ में मसूर के फसल लगाए गए थे. उसके कुछ ही दिनों के बाद सभी मसूर के फसलों में सूखा रोग लग जाने से बर्बादी हो रही है. इस तरह से पौधे के रंग मुरझाने से फसल सूखकर नष्ट हो जाता है. इसके साथ ही पूरे फसल का छिलका भी भूरे रंग का हो जाता है. जानकारी मिली है कि मसौढ़ी प्रखंड के भैसवा पंचायत के जगपुरा गांव में तकरीबन सैकड़ों एकड़ में लगे हुए मसूर की फसल में इस रोग से काफी बर्वादी हुई है.
किसानों की शिकायत: किसानों का कहना है कि इस तरह की फसलों में रोग लगने के बाद कई तरह की दवाओं का छिड़काव भी किया गया. इसके बावजूद भी फसल नष्ट होने लगे हैं. कई किसानों ने बाताया है कि किसान सलाहकार को इस बारे में जानकारी दी है. इसके रोकथाम के लिए किसी भी प्रकार का कोई काम नहीं किया गया. हमलोगों के सारे फसल पूरी तरह से चौपट हो चुकी है. किसान सीताराम सिंह के अनुसार मसौढ़ी प्रखंड में न कोई कृषि वैज्ञानिक किसानों को जागरूक करने आते हैं.
कई दवाओं से बचाव संभव: किसान कोऑर्डिनेटर नवीन सिंह ने बताया कि भूमि जनित रोगों के नियंत्रण को लेकर बीज उपचार जरूरी होता है. मसूर की फसल में इन दिनों खेतों में यह बीमारी हो जाती है. इसके बुआई से पहले ट्राईक्रोमा बीड़ी 1%, डब्ल्यूपी अथवा ट्राइकोडरमा आरजीएनएम 2% डब्ल्यूपी की ढाई किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, 60 से 75 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर के खाद बनाकर मिलाई जाती है. उसके बाद हल्के पानी के छींटे से 8 से 10 दिन तक छाया में रखने के पहले आखिरी जुताई करने के बाद खेत में मिलाई जाती है. जिससे मसुर के बीज में भूमि जनित रोगों का नियंत्रण हो जाता है.
रोग की जानकारी:सुखा रोग मिट्टी में रहने वाले फ्यूजेरियम समूह के फफूंद के कारण होता है. मौसम में होने वाले बदलाव से भी इस रोग के उत्पन्न होने के मुख्य कारण है. फसल के बचाव के लिए कई दवाएं हैं. जिनमें 3 ग्राम कॉपर ऑक्सिक्लोराइड को पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. इसके साथ ही 50 डब्ल्यूपी 0.2 प्रतिशत खोल मिलाकर जड़ों में देनी चाहिए.
'भूमि जनित रोगों के नियंत्रण को लेकर बीज उपचार जरूरी होता है. मसूर की फसल में इन दिनों खेतों में यह बीमारी हो जाती है. इसके बुआई से पहले ट्राईक्रोमा बीड़ी 1%, डब्ल्यूपी अथवा ट्राइकोडरमा आरजीएनएम 2% डब्ल्यूपी की ढाई किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, 60 से 75 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर के खाद बनाकर मिलाई जाती है'- नवीन सिंह,किसान कोर्डिनेटर, मसौढी
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