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भगवान विष्णु ने लिया था श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार

30 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) पर ठीक वैसे ही संयोग बन रहे हैं, जैसे द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय थे. ऐसे में श्रद्धालुओं में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का खासा उत्साह है.

पटना
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Published : Aug 30, 2021, 7:01 AM IST

पटना:30 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) पर दुर्लभ संयोग बन रहे हैं. इस बार जन्माष्टमी पर ठीक वैसे ही संयोग बन रहे हैं, जैसे द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय थे. ऐसे में श्रद्धालुओं में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का खासा उत्साह है. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव और देवकी के आठवें पुत्र के रूप में पालनहार विष्णु के पूर्ण अवतार के रूप में श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था.

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श्री कृष्ण भगवान विष्णु का आठवां अवतार थे. श्री कृष्ण 16 कलाओं के साथ कंस की जेल मथुरा में प्रकट हुए थे. पौराणिक मान्यता के अनुसार मथुरा नगरी में धर्म परायण राजा उग्रसेन राज करते थे उनके पुत्र का नाम कंस था. कंस बहुत क्रूर और अधर्मी था. उसने अपने पिता उग्रसेन को गद्दी से उतार कर स्वयं राजा बन बैठा. कंस की एक छोटी बहन थी जिसका नाम देवकी था. कंस देवकी से अति स्नेह करता था, उसने देवकी का विवाह वसुदेव नामक यादव शिरोमणि से करने का निर्णय लिया.

शादी करने के बाद देवकी और वसुदेव को अपने रथ में बिठा कर उन्हें छोड़ने के लिए जा रहा था कि तभी आकाशवाणी होती है कि ''कंस तेरे पाप का घड़ा भर चुका है, तू जिस बहन को विदा करने जा रहा है, उसी की आठवीं संतान तेरा वध करेगी. कंस अति क्रोध में आ गया उसने देवकी और वसुदेव को मारने की नियत से अपनी तलवार को निकाला, तभी देवकी और वसुदेव ने कहा कि भैया आपको हम दोनों से क्या भय है. हम आपको अपनी आठवीं संतान सौंप देंगे.

इस पर कंस मान गया और उसने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया. तभी नारद जी प्रकट हुए और उन्होंने कंस से कहा कि यह कैसे पता चलेगा कि वसुदेव की पहली संतान आठवीं है या आठवीं संतान ही आठवीं है. कंस को नारद मुनि की यह बात समझ में आ गई और एक-एक करके देवकी और वसुदेव की 6 संतानों को उसने निर्ममता से हत्या कर दी. जब देवकी के गर्भ में सातवीं संतान आई तो वसुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में देवकी के भ्रूण को बहुत ही समझदारी से स्थापित कर दिया गया. जिससे सातवीं संतान बलराम के रूप में गोकुल में पैदा हुई.

अब बारी आई आठवीं संतान की भगवान विष्णु कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में ठीक 12 बजे चतुर्भुज रूप में प्रकट होते हैं और उन्होंने वसुदेव और देवकी को दर्शन दिया. भगवान विष्णु के दर्शन पाकर देवकी और वसुदेव निहाल हो गए. विष्णु भगवान ने उनको कहा कि आपके कई जन्मों के पुण्य से मेरा ये दिव्य रूप का दर्शन आपको मिल रहा है. मैं आपकी आठवीं संतान के रूप में प्रकट हो रहा हूं. योग माया ने यशोदा और नंद बाबा के घर में कन्या के रूप में जन्म ले लिया है.

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आप मुझे गोकुल में नंद बाबा के घर पहुंचा दो और कन्या को जेल में ले आओ. भगवान विष्णु बालक रूप में आ गए. चमत्कार होता है जितने भी पहरेदार थे, सब गहरी नींद में सो गए. वसुदेव और देवकी की बेड़ियां अपने आप खुल गई. जेल के सभी ताले अपने आप खुल गए और घोर अंधेरी रात में वसुदेव भगवान कृष्ण के बाल रूप को लेकर के गोकुल की तरफ बढ़ते हैं. यमुना जी अपने उफान पर थी, भगवान विष्णु के आशीर्वाद से वसुदेव गोकुल पहुंचे और कन्या संतान को लेकर के जेल में आए. फिर पहले की तरह सब कुछ वैसा ही हो गया. जेल के सभी दरवाजे बंद हो गए और पहरेदार जग गए.

देवकी की आठवीं संतान कन्या के रूप में हुई है, जब कंस को पता चला तो कंस दौड़ा हुआ आया और वध करने के नियत से देवकी से उसकी आठवीं संतान को मांगा. देवकी ने कहा भैया आठवीं संतान तो कन्या रूप में है, यह आपका भला क्या बिगाड़ेगी. फिर कंस ने कहा कि चाहे कन्या हो, चाहे पुत्र हो. मुझे इससे कोई मतलब नहीं है. मैं इसका वध करूंगा. उस नीयत से देवकी के आंचल से कन्या को जैसे ही वह छीनने की कोशिश करता है.

ऐसे में कन्या उसके हाथ से छूट जाती है और योग माया के रूप में प्रकट होती है और कहती हैं कि ''अरे मूर्ख मेरा वध करके तू क्या करेगा, तेरा वध करने वाला तो गोकुल में पैदा हो चुका है.'' इस प्रकार से भगवान कृष्ण बचपन से ही तमाम बाल लीलाएं करते हैं. कंस अनेक प्रकार के राक्षसों को भगवान कृष्ण को मारने की पूरी कोशिश करता है. लेकिन, हर प्रकार से वह विफल हो जाता है और भगवान कृष्ण उन राक्षसों का वध कर देते हैं.

अंत में वह समय भी आ जाता है, जब भगवान कृष्ण कंस का वध कर देते हैं और मथुरा नगर में फिर से उग्रसेन को राजा बना देते हैं और वहां पर धर्म की स्थापना करते हैं. इस प्रकार से भगवान के जन्म उत्सव को हम लोग बहुत ही धूमधाम से श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं.

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