पटना:पिछले साल जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी थी, तब उस समय बीजेपी के साथ केवल पशुपति पारस की आरएलजेपी ही गठबंधन में बची थी, विधानसभा में तो बीजेपी पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गई थी. चिराग पासवान जरूर बीजेपी के साथ दिखते रहे हैं लेकिन उनके साथ गठबंधन नहीं हो पाया. अब लोकसभा चुनाव 2024को लेकर बीजेपी चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, नागमणि और मुकेश सहनी को अपने साथ जोड़ने का मन बना चुकी है. मुकेश सहनी को छोड़कर सभी एनडीए के साथ भी हो गए हैं. हालांकि इन नेताओं का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो चुनाव के समय डिमांड के अनुरूप सीट नहीं मिलने पर गठबंधन को छोड़ते रहे हैं.
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पाला बदलने में माहिर हैं मांझी:सबसे पहले बात जीतनराम मांझी की. हम के संरक्षक मांझी अपने राजनीतिक जीवन में कई बार पार्टियां बदल चुके हैं. उन्होंने कांग्रेस, जनता दल, आरजेडी और जेडीयू सबके साथ किया है. मांझी 9 महीने तक बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे हैं और कई मुख्यमंत्रियों के साथ मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं. महागठबंधन के साथ भी रहे और एनडीए के साथ भी काम किया है. 2015 में इन्होंने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का गठन किया था. पिछले महीने महागठबंधन से अलग होने के बाद एक बार फिर से बीजेपी के साथ आ गए हैं.
क्या है मांझी की ताकत?: मांझी मुसहर समाज से आते हैं. मुसहर समाज के 3 से 4% वोट पर अपनी दावेदारी कर रहे हैं. मगध क्षेत्र में इनकी विशेष रूप से पकड़ है. इनकी खासियत रही है कि सत्ता के साथ ही रहे हैं. इनके बेटे संतोष सुमन फिलहाल एमएलसी हैं और लोकसभा चुनाव 2024 में इनकी भी नजर लोकसभा की कुछ सीटों पर है. बेटे संतोष सुमन को चुनाव लड़ाना चाहते हैं. खुद राज्यपाल भी बनना चाहते हैं. शर्त पूरा नहीं होने पर मांझी पार्टी और गठबंधन छोड़ते रहे हैं, ऐसे में उनको संभालकर रखना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है.
महत्वाकांक्षी नेता माने जाते हैं उपेंद्र कुशवाहा:आरएलजेडी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा बिहार के महत्वाकांक्षी नेताओं में से एक हैं. लंबे समय तक नीतीश कुमार के साथ रहे हैं. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी नीतीश कुमार ने ही इन्हें बनाया. केंद्र में मंत्री भी बने हैं तीन बार पार्टी बना चुके हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन में थे. 3 सीटों पर जीत भी मिली थी. उसी दौरान केंद्र में राज्यमंत्री भी बनाये गए लेकिन 2019 में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़े, तब कोई सफलता नहीं मिली. महागठबंधन से अलग होकर 2020 में विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन खाता भी नहीं खुला. फिर नीतीश के साथ गए और इसी साल जेडीयू से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनायी है.
कुशवाहा वोट बैंक पर मजबूत पकड़: उपेंद्र कुशवाहा के बारे में कहा जाता है कि कुशवाहा समाज पर उनकी मजबूत पकड़ है. बिहार में 6% के करीब कुशवाहा वोट बैंक है और उसके बड़े नेताओं में से एक माने जाते हैं. उपेंद्र कुशवाहा इस बार भी लोकसभा की तीन सीटों की मांग कर रहे हैं. इनका भी ट्रैक रिकॉर्ड ऐसा रहा है, जिसमें मांग पूरी नहीं होने पर गठबंधन छोड़ते रहे हैं. इसलिए बीजेपी के लिए वह भी बड़ी चुनौती हैं.
मुकेश सहनी भी एक जगह नहीं टिकते: मुकेश सहनी सन ऑफ मल्लाह के नाम से बिहार में जाने जाते हैं. कभी महागठबंधन के साथ तो कभी बीजेपी के साथ इनका नाता रहा है. 2024 चुनाव में इनके बीजेपी के साथ जाने की चर्चा है. मुकेश साहनी जिस समाज से आते हैं, उसका 4-5% वोट है. सहनी मल्लाह समाज के बड़े नेता बनकर उभरे हैं लेकिन वह भी अपने शर्तों के कारण कहीं टिक नहीं पाए हैं. 2020 में महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव जब सीट बंटवारे की घोषणा कर रहे थे, तब वह बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर निकल गए थे और पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगाया था.
हर दल में रह चुके हैं नागमणि!:पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि लंबे समय तक नीतीश कुमार के साथ रहे हैं. अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह दल बदलते रहे हैं. आरजेडी के साथ भी रहे तो उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी काम किया है. अब फिर से अमित शाह से मुलाकात कर एनडीए में शामिल होने की बात कही है. नागमणि भी लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं. वह कुशवाहा जाति से आते हैं, उनका दावा है कि आज भी वह इस समाज के सबसे बड़े नेता हैं.
मोदी के स्वघोषित 'हनुमान' हैं चिराग पासवान:पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की बात करें तो चिराग हमेशा बीजेपी के साथ दिखते रहे हैं, लेकिन इन दिनों एलजेपी दो भागों में बंट चुकी है. आरएलजेपी का नेतृत्व चाचा पशुपति पारस करते हैं तो एलजेपीआर की अगुवाई चिराग करते हैं. 2014 में एनडीए के साथ रामविलास पासवान की पार्टी ने चुनाव लड़ा था. 7 में से 6 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में भी 6 सीटों पर एलजेपी ने चुनाव लड़ा और सभी सीटों पर जीत हासिल हुई थी लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच मतभेद हो गया.