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बाल लीला गुरुद्वारा में खीर-मालपुआ का लंगर, सावन में श्रद्धालुओं को स्वादिष्ट पकवान परोसने की पुरानी परंपरा

बाल लीला गुरुद्वारा (Bal Leela Gurudwara) में सावन के पावन महीने में मालपुआ और खीर का लंगर लगाया गया. जहां पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए बाबा कश्मीरा सिंह भूरी बाले बाबा के निर्देश पर इस दौरान सैकड़ों श्रद्धालुओं को भोजन परोसा गया.

बाल लीला गुरुद्वारा
बाल लीला गुरुद्वारा

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Published : Aug 16, 2021, 5:35 PM IST

पटना: आज सावन की चौथी और अंतिम सोमवारी है. इस मौके पर सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह (Shri Guru Gobind Singh) की जन्मस्थली पटना साहिब गुरुद्वारा स्तिथ बाल लीला गुरुद्वारा (Bal Leela Gurudwara) में लंगर (Langar) का आयोजन किया गया. जहां लोगों को खीर और मालपुआ परोसा गया.

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पटनासिटी स्तिथ बाल लीला गुरुद्वारा में सावन के पावन महीने में खीर और मालपुआ का लंगर चलाया गया. इस मौके पर पंजाब-हरियाणा समेत कई राज्यों से आकर श्रद्धालुओं ने गुरुघर में अपनी सेवा दी.

खीर और मालपुआ के लंगर का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि भारत की प्राचीनतम पुरातन सनातनी परंपरा के अनुरूप जब सावन महीने में अमृत की वर्षा होती है, उन दिनों सभी घरों में देशी घी से मालपुआ और खीर बनाया जाता था.

कहते हैं कि उन दिनों राजा या महाराजा कोई जग या धार्मिक अनुष्ठान करते थे तो पकवान प्रधान मिष्ठान माना जाता था. जहां-जहां संतों की मंडली जाती थी, वहां खीर और मालपुआ उन्हें प्रसाद के रूप में परोसा जाता था. खासकर गुरुद्वारा में संतों के डेरो में यह स्वादिष्ट पकवान तैयार किया जाता था.

इस परंपरा को कायम रखते हुए बाबा कश्मीरा सिंह भूरी बाले बाबा के निर्देश पर बाबा सुखविंदर सिंह की देख-रेख में लंगर का आयोजन किया गया. बाललीला गुरुद्वारा में दिवान सजाकर सामूहिक अरदास की गई. जहां सैकड़ों श्रद्धालुओं के बीच खीर और पुआ का लंगर परोसा गया.

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श्रद्धालुओं के लिए यह गुरुद्वारा गुरुगोविंद सिंह की बाल लीलाओं का प्रतीक है. मान्यता है कि गुरु यहीं अपनी बाल लीलाएं किया करते थे. यहां आज भी संगतों को प्रसाद के रूप में घुघनी (चने की सब्जी) दी जाती है. बताया जाता है कि बचपन में गुरु महाराज ने यहां चमत्कार किया था.

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