पटना: जेल से बाहर आने के बाद एक बार फिर से आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) चर्चा में हैं. वजह उनके वो दावे हैं, जिनमें वो बिहार में बदलाव की बात करते हैं. लालू की पहचान सामाजिक न्याय के 'पुरोधा' के साथ ही संघ और बीजेपी के कट्टर विरोधी के तौर पर भी रही है. हालांकि कभी वो 'भगवा' के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बने थे.
आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव अक्सर धर्मनिरपेक्ष राजनीति का दावा करते हैं. सेकुलरिज्म की बदौलत वो बीजेपी विरोधी ताकतों को एक फोरम पर लाने की कोशिश करते रहे हैं. जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर आते ही उनकी ओर से बिहार में धर्मनिरपेक्ष दलों को एकजुट करने की कवायद तेज हो गई है.
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पहले मुलायम अब सख्त
1990 से पहले बीजेपी और संघ को लेकर लालू थोड़े नरम हुआ करते थे, लेकिन साल 1990 के बाद से लालू यादव ने बीजेपी विरोध की राजनीति की राह पकड़ी और वह कांग्रेस और दूसरे दलों के समर्थन से सरकार चलाते रहे. जबकि 1990 से पहले लालू को बीजेपी या जनसंघ से कोई बैर नहीं था.
जेपी आंदोलन से करियर की शुरुआत
लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत जेपी आंदोलन से हुई. आंदोलन में लालू काफी सक्रिय रहे थे. जब आंदोलन के बाद जन संघ और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को मिलाकर जनता पार्टी का गठन किया गया, तब पहली बार 1977 में लालू यादव सांसद बने.
बीजेपी की मदद से बने सांसद!
वहीं, साल 1989 में भी लालू प्रसाद यादव छपरा से लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुए. लालू को इस चुनाव में भी बीजेपी का साथ मिला और कांग्रेस के विरोध में कई सीटों पर बीजेपी और जनता पार्टी का 'टैक्टिकल' गठबंधन रहा.
लालू सरकार को बीजेपी का समर्थन
लालू की राजनीति के लिहाज से साल 1990 बेहद अहम रहा था. उस साल पहली बार लालू प्रसाद यादव बीजेपी के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री बने. वक्त बदला और उन्होंने भगवा विरोध का फैसला कर लिया.
लालू ने कराया आडवाणी को गिरफ्तार
याद करिए 23 अक्टूबर 1990 का दिन, जब बीजेपी के फायर ब्रांड नेता लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया गया था. तब आडवाणी ने 25 सितंबर को गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अपनी रथ यात्रा की शुरुआत की थी. ये यात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी. उस दौरान वे समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके हुए थे. लालू ने आडवाणी को तुरंत गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया.
गिरफ्तारी के बाद समर्थन वापस
आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने जनता दल की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. बीजेपी के इस कदम से केंद्र की वीपी सिंह की सरकार तो गिर गई, लेकिन बिहार में लालू प्रसाद यादव अपना किला बचाने में कामयाब रहे. क्योंकि इंदर सिंह नामधारी लालू के समर्थन में आ गए और बीजेपी में टूट हो गई.
पहले कांग्रेस विरोध, फिर बीजेपी विरोध
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव की राजनीति को दो कार्यकाल में बांटना होगा. 1990 के पहले जहां वो कांग्रेस विरोध की राजनीति करते थे और उसी क्रम में उन्होंने जनसंघ और बीजेपी का समर्थन भी लिया. वहीं, 1990 के बाद लालू बीजेपी विरोध की राजनीति करने लगे और बाद के दिनों में कांग्रेस को अपने खेमे में ले लिया.