पटनाःबिहार की सियासत (Bihar Politics) में पटना और दिल्ली की राजनीति में पिछले 24 घंटे से सियासत की गर्माहट बढ़ी हुई है. क्योंकि चर्चा दिल्ली के संसद परिसर से लेकर बिहार के विधानसभा और विधान परिषद के साथ सदन में और प्रांगण में भी है "लालू आ रहे हैं". बिहार की राजनीति में लालू (Lalu Prasad Yadav) ऐसा नाम है, जो चर्चा में आने के बाद ही सियासत की दिशा बन जाते हैं. राजनीति में मुद्दा और राजनीतिक दलों के लिए अपने-अपने तरीके से बताने वाले सवाल.
यह भी पढ़ें- अगर देश में जातीय जनगणना होगी तो JDU करेगी समर्थन : उपेंद्र कुशवाहा
लेकिन देश की राजनीति में जो सवाल उठ खड़े हुए हैं, उसमें एक बार चर्चा फिर शुरू हो गई है कि, दिल्ली और बिहार के बीच में जातीय जनगणना को लेकर जो राजनीति रेखा खिंच रही है, उसकी नई लकीर बनाने के लिए जिस जगह को राजद ने अख्तियार किया है. उसी सियासत के पीछे लालू हैं और बिहार की राजनीति जाति की राजनीति को लेकर एक बार फिर प्रासंगिक हो रही है. इसलिए चर्चा शुरू हो गई है कि "लालू आ रहे हैं".
एक बड़ी पुरानी कहावत है कि दशा 10 साल होती है और उसके बाद आम बात चलती है. 2013 में विकास के नाम पर देश में हुए बदलाव की एक राजनीति नरेंद्र मोदी के नाम पर शुरू हुई थी और नमो-नमो का राग पूरे देश में बदलाव की बयार बन गया. जिसने देश की राजनीति में कांग्रेस की जमी जमाई सियासत उखाड़ कर फेंक दी.
बिहार में 2005 में लालू यादव की सियासत भी विकास के उसी आधार पर सिमट गई थी. जिसमें सोशल इंजीनियरिंग का तमाम नारा बिहार में छोटा पड़ता दिख गया और विकास की बानगी बड़ी होती गई. लेकिन एक बार फिर देश की सियासत में जाति की राजनीति ने ऐसी जगह बनाई है, जो कई ऐसे नेताओं को नाम के उस सियासत को फिर से प्रासंगिक कर गई, जिसने देश की राजनीति में आरक्षण मंडल कमीशन और गरीबों की बात करने की राजनीति के तहत देश की गद्दी को अपनी हनक भी सुनाई थी.
देश की गद्दी पर काबिज हुक्मरानों को मजबूर भी किया था कि राज्य की राजनीति को समझें और बिहार से इसकी बानगी इतनी मजबूत रही कि जेपी ने दिल्ली को हिलाकर रख दिया था और लालू यादव की सियासत में बनाए गए मंडल कमीशन ने जाति राजनीति को वह आयाम दिया. जिसके आधार पर नए बनते भारत ने एक बार फिर जातीय गोलबंदी की खेमेबंदी शुरू कर दी है. जातीय जनगणना उसकी सबसे पहली सीढ़ी है.
यह भी पढ़ें- जातीय जनगणना पर BJP के बयान के बाद JDU नेताओं ने साधी चुप्पी, कहा- CM के फैसले को अपनाएंगे
वर्ष 1989 में बिहार के राजकीय अतिथिशाला में लालू यादव और बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की मुलाकात इस आधार को लेकर हुई थी कि बीपी सिंह ने गरीबों की राजनीति को लेकर जिस हथकंडे को अपनाने की बात कही है, उसका पूरा मजमून जनता के सामने रख दिया जाए. लालू यादव बिहार में जेपी मॉडल के एक ऐसे नेता बन गए थे, जिनको नकार पाना केंद्र की राजनीति के लिए भी मुश्किल हो रहा था.
अंत में मंडल कमीशन को अपना लिया गया. 1989 की इस घटना के बाद बिहार की राजनीति और देश की सियासत में मंडल कमीशन ने जो बदलाव किया, इसकी बानगी समय-समय पर बदलकर दिख तो जरूर गई. लेकिन सियासत को जब जाने की बारी आई, तो जाति को आगे रखकर सभी लोगों ने चुनावी वैतरणी पार की.
बिहार ही नहीं पूरे देश में जाति राजनीति की जुगलबंदी हुई. उसने क्षेत्रीय दलों को इतना मजबूत किया कि केंद्र की गद्दी पर उनकी दखल सीधे तौर पर हो गई और यह देश में 2013 तक चलती रही.
जाति से उठ चुके देश ने ही 2013 में विकास के नाम पर बदलाव की अंगड़ाई ली, तो भाजपा ने नरेंद्र मोदी का नाम आगे करके सियासी पेग पूरे देश में बढ़ा दी. बीजेपी की जो मंशा थी, परिणाम भी उसके अनुसार आ गए. 2014 में देश के विकास को शिखर पर ले जाने के नाम पर नरेंद्र मोदी की सरकार बन गई.