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9वें दिन कश्यप और गजकर्ण पद पर होता है पिंडदान, पूर्वजों को अक्षय लोक में मिलता है स्थान

मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान चल रहा है. पितृपक्ष के नौवें दिन यहां कश्यप पद पर पिंडदान करने का विधान है. इसके पीछे पौराणिक कथा जुड़ी हुई है.

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Published : Sep 21, 2019, 7:11 AM IST

गया:आज पितृपक्ष का नौवां दिन है. मोक्ष की नगरी गया में पिंडदान विधि विधान से चल रहा है. तीर्थ की नगरी गया जी में नौवें दिन कश्यप पद पर पिंडदान अर्पित करने का महत्व है. वहीं, पिंडदान अर्पित कर गजकर्ण पद पर तर्पण करने का विधान हैं. इस पिंडदान और तर्पण करने से पूर्वजों को अक्षय लोक की प्राप्ति होती है.

ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में भारद्वाज मुनि कश्यप पद पर श्राद्ध करने के लिए उद्यत हुए. उस समय पद को उद्भेदन से कृष्ण और शुक्ल दो हाथ निकले. उनको देखकर मुनि को संशय हुआ और अपनी माता शान्ता से पूछा कि कश्यप दिव्य से कृष्ण और शुक्ल दो हाथ निकले हैं. मैं किसको पिंड दूं. तुम ही बताओ कि मेरा पिता कौन है. उसी दौरान मां ने जवाब देते हुए कहा, 'महाप्रज्ञ भारद्वाज कृष्ण हाथ वाले को पिंडदान दो.

कर्मकांड करते पिंडदानी

सोंच में डूबे मुनि ने कश्यप पद पर किया पिंडदान
जब भारद्वाज कृष्ण को पिंड देने के लिए उद्दत, तब शुक्ल ने कहा कि कहा कि तुम हमारे ओरस पुत्र हो. कृष्ण ने कहा तुम हमारे क्षेत्रज हो मुझे पिंड दो. तब सवेरिणी ने कहा कि क्षेत्रज और वीर्यज दोनों को पिंड दो. इसके बाद भारद्वाज मुनि ने कश्यप पद पर पिंड दिया. ऐसा करने से दोनों हंसयुक्त विमान से ब्रह्मलोक चले गए.

देखिए, गया जी से खास रिपोर्ट

यहां हमेशा के लिए बस गए देवता...
नौवें दिन का श्राद्ध 16 वेदी नामक तीर्थ से करें. यह तीर्थ विष्णुपद मंदिर प्रांगण में छोटे अक्षयवट से उत्तर में है. विष्णुपद से पूर्व दिशा में है 16 वेदी गयासुर के सिर पर रखी गई धर्मशिला पर हैं. ब्रह्मा जी के किए गए यज्ञ में गयासुर के सिर पर परम पावन धर्मशिला रखी गई थी. धर्मशिला पहले मरीचि ऋषि की पत्नी धर्मव्रता थीं. जो पति के श्राप से धर्मशिला हो गई. गयासुर और धर्मशिला को वरदान प्राप्त हैं कि उसके ऊपर श्राद्ध करने वाले के पितरों का उद्धार होगा. यहां सभी तीर्थों पर देवता हमेशा निवास करेंगे.

जगह-जगह लगी हैं दुकानें
  • पिंडदान अर्पित कर कण्वपद, दधीचि पद, कार्तिक पद, गणेश पद तथा गजकर्ण पद पर दूध ,गंगा जल या फल्गू नदी के पानी से तर्पण करना चाहिए.
  • अंत में कश्यप पद पर श्राद्ध करके कनकेश, केदार और वामन की ओर उत्तर मुख हो कर पूजा करने मात्र से पितर तर जाते हैं.

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