पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है. बुधवार को कैवर्त समाज व अत्यंत पिछड़े वर्गों ने विकास, कल्याण और विधानसभा चुनाव में अनुपातिक भागीदारी की मांग को लेकर बैठक की. अखिल भारतीय कैवर्त कल्याण समिति के अध्यक्ष ने कहा कि अगर राजनीतिक दल उनकी अनदेखी करेंगे तो वे लोग स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ेंगे.
समुदाय की हालत चिंताजनक
अखिल भारतीय कैवर्त कल्याण समिति के अध्यक्ष चूल्हाई कामत ने कहा कि बिहार में कृषि कार्य से युक्त केवट समुदाय की जनसंख्या लगभग 75 लाख है. उन्होंने कहा कि आजादी के 73 साल के बाद आर्थिक, शैक्षणिक, राजनैतिक, व्यवसायिक, सामाजिक क्षेत्रों में इतने विशाल जनसंख्या वाले समुदाय की हालत अत्यंत चिंताजनक है.
साकारात्मक पहल का मिला भरोसा
चूल्हाई कामत ने कहा कि 2 अगस्त 2018 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हुई वार्ता में समिति के प्रतिनिधि मंडल को राजनैतिक भागीदारी, विकास, सम्मान और कल्याण हेतु कई महत्वपूर्ण मुद्दों साकारात्मक पहल का भरोसा मिला था. लेकिन अभी तक सरकार की ओर से आवश्यक कदम नहीं उठाया गया है.
उचित भागीदारी देने की मांग
समिति के अध्यक्ष ने कहा कि बिहार राज्य में केवट समुदाय की राजनीति में भागीदारी नगण्य है. राजनीतिक दल इस समाज की उपेक्षा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सभी पार्टियों से विधान सभा चुनाव में केवट समाज को उचित भागीदारी देने की मांग की गई है. बिहार में दो दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में बहुलता है. जिसमें आसानी इस समाज के उम्मीदवार को सफलता मिल सकती है.
केवट समुदाय की जनसंख्या
चूल्हाई कामत ने कहा कि लगभग दो दर्जन क्षेत्रों में हमारी संख्या अच्छी है, जो किस भी उम्मीदवार के लिए निर्णायक होगी. मधुबनी - झंझारपुर, बाबूबरही, फुलपरास इसके अतिरिक्त राजनगर (एस सी ) विस्फी और बेनीपट्टी क्षेत्र में जनसंख्या निर्णायक है.
सुपौल - पिपरा, सुपौल, निर्मली में बहुलता है. त्रिवेणीगंज(एससी), छातापुर व अन्य क्षेत्रों में भी निर्णायक भूमिका में है.
कटिहार- वरारी, कदवा, प्राणपुर, कोढा में बहुलता व अन्य क्षेत्रों में भी निर्णायक भूमिका में है.
पूर्णिया - कसबा, रुपौली, अमौर बहुलता व कई विधान सभा में निर्णायक भूमिका में है.