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जेपी आंदोलन ने बदली राजनीति की तस्वीर, लेकिन क्रांति के लक्ष्य से आज भी हम दूर - Complete revolution

18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी. जो देश भर में जेपी आंदोलन के रूप में जाना गया. इस आंदोलन के चलते ही देश को लोकतंत्र के सबसे काले समय यानी आपातकाल का सामना करना पड़ा. जानिए ऐसा क्या हुआ था जिसने बिहार से लेकर देश तक की राजनीति को बदल दिया...

JP andolan in bihar
JP andolan in bihar

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Published : Mar 23, 2021, 5:02 PM IST

Updated : Mar 23, 2021, 6:26 PM IST

पटना:यह आंदोलन पूरे देश में ऐसा फैल गया कि देखते ही देखते राजनीति का चेहरा ही पूरी तरह बदल गया. ये आंदोलन करीब एक साल चला. देश ने जेपी आंदोलन के साथ ही आपातकाल का बुरा दौर देखा भी और उसे झेला भी. लेकिन आपातकाल के 46 साल बीत जाने के बाद भी बीजेपी के सपने सच नहीं हो पाए. बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और शिक्षा में सुधार आज भी मुद्दा है. और इसी के इर्द-गिर्द देश की राजनीति भी घूम रही है.

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क्या थी संपूर्ण क्रांति
संपूर्ण क्रांति, जयप्रकाश नारायण का विचार और नारा था जिसका आह्वान उन्होंने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था. पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था. मैदान में मौजूद लाखों लोगों ने जात-पात, भेद-भाव छोड़ने का संकल्प लिया था. भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई इस क्रांति में बाद में बहुत सी चीजें जुड़ गई. और इसका परिवर्तित रुप देखने को मिला. संपूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केंद्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था. बिहार से उठी संपूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने कोने में फैलकर आग बनकर भड़क रही थी. लालू यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी समेत आज के नेता उसी छात्र युवा संघ वाहिनी के सदस्य थे.

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन

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आपातकाल के 46 साल
शिक्षा में सुधार, बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार आज भी चुनावी मुद्दा है. देश की राजनीति भी इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है. 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 देश में आपातकाल लागू था. 21 महीने तक जनता को आपातकाल झेलना पड़ा था. आपातकाल के 46 साल बीत जाने के बाद भी देश और बिहार जैसे राज्य की समस्या जस की तस है. बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्या मुंह बाए खड़ी हैं.

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जेपी आंदोलन से डर गई थीं इंदिरा गांधी
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जगह जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के विरुद्ध फैसला दिया और उसमें कहा गया कि उनका सांसद चुना जाना अवैध है क्योंकि उन्होंने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया था. साथ ही अगले 6 साल तक के लिए उनके कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी. कोर्ट की उठापटक के बीच बिहार, गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ छात्रों का आंदोलन उग्र हो रहा था. बिहार में इस आंदोलन को जयप्रकाश नारायण हवा दे रहे थे.

जेपी आंदोलन ने बदली राजनीति की तस्वीर

लोकतंत्र का गला घोंटने का इंदिरा पर आरोप
कोर्ट के फैसले के अगले दिन यानी कि 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की रैली थी. जब प्रकाश ने इंदिरा गांधी के ऊपर देश में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया था. और सिंहासन खाली करो कि जनता आती है का नारा बुलंद किया.

हम लोगों ने शिक्षा में सुधार, महंगाई, भ्रष्टाचार और रोजगार को लेकर आंदोलन किया था. आज भी समस्या जस की तस है और शिक्षा के लिए छात्र पलायन को मजबूर हैं. छात्रों को एक बार फिर आगे आकर आंदोलन करने की जरूरत है.- विक्रम कुमार, जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले

विक्रम कुमार, जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले

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इंदिरा गांधी चाहती थी कि जेपी आंदोलन को बिहार से बाहर ना ले जाएं लेकिन जेपी यह मानने को तैयार नहीं थे. दरअसल इंदिरा गांधी जेपी के शर्तों को मानने को तैयार नहीं हुई जिसके चलते जेपी ने आंदोलन की कमान संभाली.- रामाकांत पांडे, जयप्रकाश नारायण के सहयोगी

रामाकांत पांडे, जयप्रकाश नारायण के सहयोगी

'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'
जेपी ने विद्यार्थियों सैनिकों और पुलिस से अनुरोध किया कि दमनकारी निरंकुश सरकार के आदेशों को ना माने क्योंकि कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री पद से हटने को बोल दिया था.सुप्रीम कोर्ट के फैसले और कोर्ट की उठापटक के बीच बिहार, गुजरात में कांग्रेस के खिलाफ छात्रों का आंदोलन उग्र हो रहा था. अपनी सरकार के तख्तापलट से डरी इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल की घोषणा कर दी. जेपी सहित 600 से भी ज्यादा नेताओं को बंदी बना लिया गया.

जेपी छात्रों की समस्या को लेकर आगे बढ़े थे. शिक्षा में सुधार उनका मकसद था लेकिन जेपी आंदोलन से निकले नेता आज उनके सपनों का बिहार नहीं बना सके हैं.- तारा सिन्हा, पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की पौत्री

तारा सिन्हा, पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की पौत्री

इंंदिरा गांधी को करना पड़ा हार का सामना
कुछ दिनों में जेपी की तबीयत ज्यादा खराब होने लगी. जिसकी वजह से सात महीने बाद उन्हें छोड़ दिया गया लेकिन जेपी ने हार नहीं मानी. 1977 में सत्ता विरोधी लहर के कारण इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा.

Last Updated : Mar 23, 2021, 6:26 PM IST

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