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Bihar Politics: '..तो मांझी की बीजेपी से हो गई है डील!' सवाल- लालू नीतीश का कितना करेंगे नुकसान? - ETV BHARAT

नीतीश कैबिनेट से संतोष सुमन के इस्तीफे के बाद से इस बात के जोर शोर से कयास लगाए जा रहे हैं कि जीतन राम मांझी की बीजेपी से बड़ी डील हुई है. सूत्रों के अनुसार मांझी बीजेपी से राज्यपाल का पद और बिहार में एमएलसी की सीट चाहते हैं. साथ ही 78 साल के मांझी रिटायरमेंट से पहले बेटे संतोष को पॉलिटिक्स में संतोषजनक स्थिति में देखना चाहते हैं. पढ़ें पूरी खबर..

Jitan Ram Manjhi deal with BJP
Jitan Ram Manjhi deal with BJP

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Published : Jun 14, 2023, 8:05 PM IST

क्या एनडीए में मांझी की होगी वापसी?

पटना: 13 अप्रैल को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की थी और ठीक दो महीने बाद 13 जून को उनके बेटे संतोष सुमन ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि नीतीश कुमार की ओर से पार्टी के विलय का दबाव था, बयान चाहे जो भी हो लेकिन बिहार की राजनीति में इस इस्तीफे के पीछे का कारण जीतन राम मांझी की अमित शाह से डील को माना जा रहा है.

पढ़ें- Bihar Politics: इस्तीफा के बाद संतोष सुमन का आगे का प्लान, बोले- 'तीसरा किनारा बनेगा'

बीजेपी से मांझी की डील?: महागठबंधन से अलग होने के बाद हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के बीजेपी में जाने की खबरें आ रही हैं. सूत्रों के अनुसार जीतन राम मांझी बीजेपी से राज्यपाल का पद और बिहार में एमएलसी की सीट चाहते हैं. इसके साथ ही लोकसभा की एक या दो सीटें भी स्वीकार की जाएगी.

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पिता राज्यपाल तो बेटे को लोकसभा की सीट का ऑफर!: बता दें कि मांझी ने अपनी विरासत अपने बेटे संतोष सुमन मांझी को पहले ही सौंप दी है. मांझी 78 साल के हो गए हैं, इसलिए वह अपने लिए सम्मानजनक विदाई और बेटे को राजनीति में आगे बढ़ता देखना चाहते हैं. यहीं कारण है कि पहले जहां मांझी लोकसभा की 5 सीटों की मांग कर रहे थे,अब एक या दो सीट पर भी सहमत होते दिख रहे हैं.

सूत्र बताते हैं कि मांझी ने डील में लोकसभा चुनाव 2024 में बेटे संतोष सुमन को गया से लोकसभा का टिकट दिए जाने की मांग रखी है. साथ ही चुनाव जीतने के बाद मांझी को किसी राज्य का राज्यपाल बनाने की बात भी सामने आ रही है.

मांझी की बीजेपी से डील पर बयानबाजी जारी:जीतन राम मांझी की बीजेपी से डील पर बयान बाजी जारी है. बीजेपी इसको लेकर महागठबंधन पर हमलावर है और विपक्षी एकता पर तंज कस रही है. वहीं महागठबंधन का कहना है कि हमें पहले सी पता था कि मांझी इधर-ऊधर होते रहते हैं इसलिए विपक्षी दलों की बैठक में भी आमंत्रित नहीं किया गया था.

"नीतीश कुमार दलित सियासत के साथ लगातार छल कर रहे हैं. दलित महादलित की राजनीति करने वाले नीतीश कुमार हैं. दलितों की पार्टी को कई बार तोड़ा है, इसके कई उदाहरण सामने हैं. आने वाले दिनों में दलित और महादलित नीतीश कुमार को सबक सिखाने का काम करेंगे."- निखिल आनंद,भाजपा प्रवक्ता

"जीतन राम मांझी भाजपा के एजेंडे पर चल रहे थे और भाजपा अंबेडकर के सिद्धांतों के विरुद्ध काम कर रही थी. ऐसे में जीतन राम मांझी के साथ लंबी दूरी तक चलना मुमकिन नहीं था. जीतन राम मांझी को भविष्य में इसका खामियाजा सहना पड़ेगा."-एजाज अहमद,राजद प्रवक्ता

"जीतन राम मांझी की कद्दावर दलित नेता के रूप में पहचान है. जीतन राम मांझी के जाने से दलित महादलित सियासत के नजरिए से महागठबंधन को नुकसान हो सकता है. इसके अलावा विपक्षी एकता की मुहिम को भी झटका लगा है."- डॉ संजय कुमार,राजनीतिक विश्लेषक

लालू नीतीश का कितना नुकसान ?:बिहार में दलित महादलित को मिलाकर करीब 16 फीसदी वोटर हैं. इसमें से मुसहर मांझी जिस मुसहर समाज से आते हैं उनका वोट प्रतिशत लगभग 5.5 फीसदी है. मांझी से अलग होने का महागठबंधन को नुकसान होता दिख रहा है. करीब 5 फीसदी का वोटों का नुकसान का आंकलन है.

वहीं महादलित कैटगरी से आने वाले मांझी के चेहरे पर मिलने वाला वोट भी महागठबंधन से छिटक सकता है.दलित और महादलित को मिलाकर करीब 16 फीसदी वोटर में से करीब 6 फीसदी पासवान वोटर चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस के पास हैं.

बिहार की राजनीति में दलितों का प्रभाव: बिहार में चुनाव जाति आधारित होती है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में तमाम पार्टियों की नजर जाति आधारित वोट बैंक पर होती है. प्रदेश में दलितों के प्रभाव को समझने के लिए कुल आबादी में दलितों की आबादी को जानना होगा.

मुसहर वोट पर मांझी की मजबूत पकड़: राज्य की कुल आबादी में लगभग 16 प्रतिशत दलित हैं. बिहार में दलित वोट काफी अहम हैं. इस समुदाय के वोट की जरूरत लोकसभा चुनाव में सभी पार्टियों को होती है. इस वोट बैंक पर जीतन राम मांझी के साथ चिराग पासवान की नजर रहती है. जमुई सांसद व रामविलास के बेटे चिराग पासवान वोट की दावेदारी करते हैं वहीं मांझी मुसहर वोट की.

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हर लोकसभा क्षेत्र में दलित मतदाताओं की संख्या: इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि हर लोकसभा क्षेत्र में दलित मतदाताओं की संख्या 40 से 50 हजार है. ऐसे में दलित मतदाता जीत और हार में अहम रोल निभाते हैं. दलितों में सर्वाधिक संख्या रविदास, मुसहर और पासवान जाति की है.

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