पटना:आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह अपनी साफ-सुथरी छवि और बेबाकी से बोलने के लिए जाने जाते हैं. वो लालू प्रसाद के बेहद करीबी और विश्वसनीय भी माने जाते हैं. उन्हें पार्टी की कमान वैसे वक्त में दी गई है, जब लालू प्रसाद का परिवार आंतरिक कलह से जूझ रहा है और प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनकी चुनौतियों और चुनाव की तैयारियों के बारे में ईटीवी भारत बिहार के ब्यूरो चीफ प्रवीण बागी ने खास बातचीत की. पेश है प्रमुख अंश:
सवाल: आरजेडी ने जाति की राजनीति की शुरुआत की?
जवाब:लालू प्रसाद ने कभी भी जाति की राजनीति नहीं की. उनकी सरकार में 10-12 मंत्री सवर्ण जाति के लोग होते थे. लेकिन कुर्मी चेतना रैली के नाम पर जातिवाद चलाकर नीतीश कुमार ने पिछड़ों के आंदोलन को खत्म किया. जबकि लालू जी अपनी सभाओं में कहते थे कि मैं कर्पूरी ठाकुर का उत्तराधिकारी हूं. लालू जी ने जातिवाद नहीं समाजवाद की बात की. एक समूह यहां था, जिसे लालू प्रसाद पंसद नहीं करते था. जरा गंभीरता से समझिए, इस राज्य में श्रीबाबू, विनोदानंद झा, कृष्णवल्लभ सहाय मुख्यमंत्री हुए तो सभी ने सम्मान से नाम लिया, लेकिन जब लालू प्रसाद कुर्सी पर बैठता है तो वो ललुआ बन गया, जरा उस पीड़ा को समझिए. उस प्रतीक को घृणा के शब्दों में अभिव्यक्त किया गया.
सवाल: जनता ने लालू यादव को कुर्सी पर बिठाया, 15 सालों तक बिहार में बेताज बादशाह रहे, लेकिन आज वे जेल में हैं?
जवाब:इतना बड़ा सृजन घोटाला हुआ. सुशील मोदी के खाते तक में पैसे गए. इतनी बड़ी गड़बड़ी हुई. जनता सब समझ रही है. हम लगातार मुद्दे उठा रहे हैं. आने वाले दिनों में आंदोलन करेंगे.
सवाल: जनता का विश्वास फिर से पाने के लिए आप लोग क्या करेंगे?
जवाब: जनता का विश्वास हम पर पहले भी था. इनके द्वारा पैदा किया गया अविश्वास अब खत्म हो रहा है. ये 15 साल बनाम 15 साल की बात कर रहे हैं. जनता देख रही है कि इनका 15 साल की राज में गरीबों, वंचितों, शोषितों, दलिता और अल्पसंख्यक हाशिए पर हैं. ये प्रीविलेज क्लास की सरकार है. कहते हैं कि सड़कों पर आज महिलाएं सुरक्षित हैं, लेकिन नीतीश कुमार की सरकार द्वारा पोषित और संचालित मुजफ्फरपुर बालिका गृह में बच्चियां सुरक्षित नहीं है तो फिर क्या कहना. एक बात जान लीजिए गरीब बलात्कारी नहीं होते, हां वे इसका प्रतिरोध जरूर करते हैं. गरीब लोगों के प्रतिरोध को जब लालू जी ने आवाज दी, हिम्मत दी तो कुछ लोगों को ये बात पसंद नहीं आई.