सरायकेला/पटना: जिले में स्थित भारत सरकार के एमएसएमई ने संचालित इंडो डेनिस टूल रूम ने महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से यहां इंटरपेन्योरशिप स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत की है. इस प्रोग्राम के दौरान मिथिला पेंटिंग, कशीदाकारी प्रशिक्षण, प्रथम चरण का शुभारंभ एमएसएमई सेंटर भवन में किया है. इस कार्यक्रम के शुरुआती दौर में महिलाओं और महिला फैकल्टीज को जोड़ने के लिए इंडियन वेलफेयर सोसायटी की भी मदद ली गई है.
पर्यावरण संरक्षण अभियान के तहत महिलायें जुट का झोला बनाती है साथ ही उस पर मिथिला पेंटिंग बनाकर उसे और आकर्षक बना देती है, जिससे उसे खरीदने वालों की मांग दिन प्रति दिन बढती जा रही है.
7वीं-8वीं सदी में मिथिला पेंटिंग की हुई शुरुआत
वहीं, फैकल्टीज और महिलाओं ने बताया कि मधुबनी पेंटिंग यानी मिथिला पेंटिंग की शुरुआत सातवीं-आठवीं सदी में हुई. तिब्बत के थंका आर्ट से प्रभावित चित्रकारी की यह लोककला विकसित हुई. फिर 13वीं सदी में पत्थरों पर मिथिला पेंटिंग होने लगी. धीरे-धीरे आमजनों में मधुबनी पेंटिंग लोकप्रिय होने लगी. मिथिलांचल की यह लोककला आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. देश और दुनियाभर में इसके कद्रदान हैं पर मधुबनी पेंटिंग के बारे में कई ऐसे ऐतिहासिक तथ्य हैं, जिससे लोग अनजान हैं.