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Vashishtha Narayan Death anniversary: आइंस्टीन को चैलेंज करने वाले बिहार के वशिष्ठ बाबू, NASA से IIT कानपुर तक का ऐसा रहा सफर

Vashishtha Narayan Singh: भारत के महान मैथमेटिशियन डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह की आज पुण्यतिथ‍ि है. उनकी काबिलियत की पराकाष्ठा ही थी कि उन्होंने दुनिया के सबसे महान भौतिकविद नोबेल विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी थी. आईये आज हम बताते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्से..

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 14, 2023, 12:03 PM IST

Updated : Nov 14, 2023, 2:29 PM IST

Vashishtha Narayan Singh Death anniversary
Vashishtha Narayan Singh Death anniversary

पटनाः भारत के स्टीफन हॉकिन्स कहे जाने वाले महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह की आज चौथी पुण्यतिथ‍ि है. आज ही के दिन 2019 में लंबी बीमारी के बाद इस महान गणितज्ञ ने 77 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था. वशिष्ठ नारायण की काबिलियत की पराकाष्ठा ही थी कि उन्होंने दुनिया के सबसे महान भौतिकविद नोबेल विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत को अमेरिका में चुनौती दी थी. जिसके बाद दुनिया भर में उनकी पहचान एक महान मैथमेटिशियन के तौर पर हुई.

महान मैथमेटिशियन डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह

पुण्यतिथ‍ि पर वशिष्ठ नारायण से जुड़ी यादेंः डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने साल 1969 में कैलिफोर्निया यून‍िवर्स‍िटी से मैथ्‍स में पीएचडी की थी. वॉशिंगटन यून‍िवर्स‍िटी में एसोसिएट प्रोफेसर भी बने. वहीं रह कर उन्होंने 'चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धान्त' पर र‍िसर्च किया ज‍िसके बाद वो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुए. उन्‍होंने नासा में भी काम किया. ये देश के लिए दुर्भागय ही था कि युवावस्था में ही वशिष्ठ नारायण सिंह की मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) से पीड़ित हो गए. उनका ज्यादातर जीवन इसी बीमारी में गुजरा और और यही वजह रही कि उनके ज्ञान का लाभ भारत को बहुत हद तक नहीं मिल सका.

गलत पढ़ाने पर अपने टीचर को टोकते थे वशिष्ठः 1961 में बि‍हार के प्रतिष्ठित नेतरहाट स्कूल से हायर सेकेंडरी की परीक्षा में पूरे स्‍टेट में फर्स्‍ट पोज‍िशन के साथ पास हुए थे. इसके बाद पटना साइंस कॉलेज से उन्होंने मैथ्स ऑनर्स के साथ बीएससी किया. इसी दौरान उनकी प्रतिभा को उनके शिक्षकों ने आंक लिया था. पटना साइंस कॉलेज में एक छात्र के रूप में वह अपने गणित शिक्षक को कुछ गलत पढ़ाने पर टोकते थे. उनकी प्रत‍िभा के बारे में जब कैलिफोर्निया यून‍िवर्स‍िटी के प्रोफेसर जॉन कैली को पता चला तो वह उन्हें 1965 में अपने साथ अमेरिका ले गए.

महान मैथमेटिशियन डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह

पटना विश्वविद्यालय ने कि‍या न‍ियमों में बदलावःअमेरिका ले जाने के लिए जॉन कैली ने तत्कालीन पटना विश्वविद्यालय के कुलपति जॉर्ज जैकब से मुलाकात कर उनसे अनुरोध किया कि वह वशिष्ठ नारायण को फर्स्ट ईयर पास करने से पहले ही बीएससी थर्ड ईयर की ऑनर्स परीक्षा देने की अनुमती दें. इसके लिए पटना यून‍िवर्स‍िटी को अपने नियमों में संशोधन करना पड़ा था. वशिष्ठ नारायण ने थर्ड ईयर की परीक्षा देकर इसमें टॉप क‍िया और उसके बाद वो अमेरिका चले गए.

नासा से जुड़ा उनका रोचक किस्साः अमेरिका में वो नासा से भी जुड़े और वहां भी कई रिसर्च में हिस्सा लिया. इस दौरान का उनका एक किस्‍सा बहुत चर्च‍ित है, जब वह नासा में काम कर रहे थे, तब अपोलो की लॉन्चिंग के समय 31 कंप्यूटर एक साथ कुछ देर के लिए अचानक बंद हो गए. उस समय डॉ. वशिष्ठ भी उसी टीम के साथ थे. कंप्यूटर बंद होने के बाद भी वशिष्ठ नारायण ने अपना कैलकुलेशन जारी रखा और जब कंप्यूटर दोबारा ठीक हुआ तो उनका कैलकुलेशन और कंप्यूटर का कैलकुलेशन एक ही था. अमेरिका से भारत लौटने पर वो अपने साथ किताबों के दस बक्से लेकर आए थे.

गांव में लोगों के साथ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह

भारत लौटने के बाद का सफरः 1971 जब वो नासा से भारत लौटे तो आईआईटी कानपुर के लेक्चरर बने. उन्होंने आईआईटी बॉम्बे और भारतीय सांख्यकीय संस्थान (आईएसआई) कोलकाता में भी काम किया. 1973 में उनकी शादी वंदना रानी सिंह से हुई और एक साल बाद ही साल 1974 में उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा. इलाज के लिए 1976 में उन्हें रांची में भर्ती कराया गया था लेकिन उनकी सेहत में कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ 1987 में वशिष्ठ नारायण अपने गांव बसंतपुर लौट आए. कहा जाता है कि रांची की इलाज के बाद अगस्त 1989 को उनके भाई इलाज के लिए उनको बेंगलुरु लेकर जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही वो खंडवा स्टेशन पर उतर गए और वहां से गायब हो गए.

5 साल तक गुमनाम रहे वशिष्ठ नारायणः करीब 5 साल तक उनका कोई पता नहीं चला और एक दिन 1993 में वो सिवान में बेहद दयनीय हालत में एक पेड़ के नीचे पाए गए. इस महान गण‍ितज्ञ को उनके गांव के लोगों ने ही पहचाना और फिर उन्हें उनके घर पहुंचाया. उसके बाद से तत्कालीन बिहार सरकार और केंद्र सरकार की ओर से भी उनको कोई जरूरी सहायता आद‍ि नहीं म‍िली. फिर 1997 में मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से ग्रसित हुए तो उसके बाद कभी ठीक नहीं हुए. धीरे-धीरे उनका व्‍यवहार बदलने लगा और वो मानसिक रूप से बीमार रहने लगे.

पीएमसीएच में आखिरी वक्त की तस्वीर

साल 2019 में लंबी बीमारी के बाद निधनः सिजोफ्रेनिया बीमारी से पीड़ित होने के बाद वो छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो जाते और दि‍न भर कमरा बंद करके पढ़ते रहते और रात भर जागते थे. उनके इस व्यवहार के कारण ही पत्‍नी के साथ उनका तलाक हो गया था. उसके बाद बेंगलुरु के राष्ट्रीय मानसिक जांच और तंत्रिका विज्ञान संस्थान में मार्च 1993 से जून 1997 तक उनका इलाज चला. इसके बाद नई द‍िल्‍ली स्थित व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान में भी उन्हें भर्ती कराया गया था, एक साल तक यहां भी इलाज चला. उसके बाद वो अपने गांव में ही रहने लगे. साल 2019 में लंबी बीमारी के बाद इस महान गणितज्ञ का निधन हो गया.

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Last Updated : Nov 14, 2023, 2:29 PM IST

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