बिहार

bihar

ETV Bharat / state

पटना: सुशासन के दावों के बीच अपराधियों के निशाने पर हैं सियासी दिग्गज - Activities of criminals in Bihar

बिहार में पंचायत, नगर निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है. पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक हत्या की घटनाओं में जबरदस्त इजाफा हुआ है. एक बार फिर से अचानक बिहार की धरती पर एके-47 की गूंज सुनाई देने लगी है. सत्ता संरक्षित अपराधी आपराधिक घटना को अंजाम देने में जुट गए हैं.

पटना
पटना

By

Published : Jun 6, 2020, 5:16 PM IST

पटना:बिहार राजनीति के लिए उर्वर भूमि मानी जाती है. बाहुबली और धन बली राजनीति में किस्मत आजमाते हैं. जिस कारण कई बार प्रतिद्वंद्वियों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक हत्याओं के मामलों में काफी इजाफा हुआ है. वहीं, अक्टूबर-नवंबर महीने में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में बिहार सरकार और पुलिस प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती स्वरूप में है कि राजनीतिक हत्या की घटनाओं पर लगाम कैसे लगाया जाए.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार
सरकार बदलने के साथ ही बढ़ जाती हैं अपराधियों की सक्रियता
बिहार में पंचायत, नगर निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है. हालिया कुछ वर्षों में राजनीतिक हत्या की घटनाओं में जबरदस्त इजाफा हुआ है. एक बार फिर से अचानक बिहार की धरती पर एके-47 की गूंज सुनाई देने लगी है. सत्ता संरक्षित अपराधी आपराधिक घटना को अंजाम देने में जुट गए हैं.
पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास

2015 बिहार विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में हुए राजनीतिक हत्याओं पर एक नजर...

  • 12 फरवरी 2016 को शाहाबाद के भाजपा नेता विशेश्वर ओझा की गोली मारकर हत्या.
  • 10 मार्च 2016 को लोजपा नेता और रामविलास पासवान के करीबी बृजनाथी सिंह की राघोपुर दियारा इलाके में एके-47 से गोली मारकर हत्या.
  • 6 अगस्त 2015 को सरेआम भाजपा नेता अविनाश सिंह की राजधानी पटना में गोली मारकर हत्या.
  • मई 2016 को सिवान के तत्कालीन सांसद ओम प्रकाश यादव के प्रेस प्रवक्ता श्रीकांत भारती की गोली मारकर हत्या.

वहीं, लोकसभा चुनाव से पहले हुए राजनीतिक रंजिश में हत्याएं इस प्रकार है...

  • मुजफ्फरपुर मेयर समीर कुमार की 24 सितंबर 2018 को गोली मारकर हत्या.
  • 12 मई 2018 को राजद नेता दीनानाथ साहनी की गोली मारकर हत्या.
  • 15 मई को करणी सेना के जिलाध्यक्ष सुशील सिंह की वैशाली में गोली मारकर हत्या.
  • 16 जुलाई को नवादा में राजद नेता कैलाश पासवान की गोली मारकर हत्या. कर दी गई
  • 16 जुलाई को सिवान में रालोसपा नेता संजय शाह की गोली मारकर हत्या.
  • 13 अगस्त को वैशाली में रालोसपा नेता मनीष साहनी की गोली मारकर हत्या.
  • 27 अगस्त को भोजपुर में माले नेता रामाकांत राम की गोली मारकर हत्या.
  • 14 सितंबर को गोपालगंज के जेडीयू नेता उपेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या.
  • 30 नवंबर को पूर्वी चंपारण के रालोसपा नेता प्रमोद कुशवाहा की गोली मारकर हत्या.
  • 30 जून को गोपालगंज में 2019 को भाजपा नेता कृष्णा साहित्य हत्या.
  • 1 सितंबर 2019 को सिवान में लोजपा के पूर्व महासचिव कल्याण दत्त पांडे की गोली मारकर हत्या.
  • 2 सितंबर 2019 को जदयू नेता संत कुमार की गोली मारकर हत्या.
  • 23 अक्टूबर 2019 को वैशाली में जदयू नेता मुकेश सिंह की गोली मारकर हत्या.
  • 28 दिसंबर 2019 को वैशाली में कांग्रेस के पूर्व महासचिव राकेश यादव की गोली मारकर हत्या.
  • 2 जनवरी 2020 को वैशाली में पैक्स अध्यक्ष मनीष सिंह की गोली मारकर हत्या.
  • 8 अप्रैल 2020 को सिवान में अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंघ के जिलाध्यक्ष शेषनाथ द्विवेदी की गोली मारकर हत्या.
  • वहीं, मई के अंतिम सप्ताह में गोपालगंज ट्रिपल मर्डर केस ने बिहार की राजनीति में एक बार फिर बवाल खड़ा कर दिया है. कुचायकोट से जेडीयू विधायक पप्पू पांडे को लेकर बिहार में विपक्षी दलों ने सरकार पर हमला बोल दिया है.
    वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय



राजनीतिक हत्याओं के लिए जनता भी है जिम्मेदार
पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास का मानना है कि बिहार में जाति ग्रस्त समाज है. साथ ही लोग जाति के आधार पर ही वोट भी करते हैं. अपराधी उनके आइकॉन होते हैं. मामले में अमिताभ कुमार दास ने कहा कि बिहार की जनता भी इसके लिए जिम्मेदार है. वह उम्मीदवारों को गुण और दोष के आधार पर वोट नहीं देती, जातिगत आधार पर वोट देती है. भ्रष्ट राजनेता, भ्रष्ट नौकरशाह और अपराधियों का गठजोड़ बन जाता है. जो आगे चलकर अपराधिक घटनाओं को अंजाम देता है.

ईटीवी भारत की खबर

सरकार और पुलिस प्रशासन भी जिम्मेदार
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि सरकार बदलने के साथ ही अपराधियों की निष्ठा बदल जाती है. अपराधी सत्ता के संरक्षण में अपराध करने लगते हैं. जिसमें सरकार के विरोधियों को निशाना बनाया जाता है. वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय ने बताया कि सरकार की मजबूत इच्छा शक्ति होने पर अपराधी अपराध नहीं कर पाते हैं. 2005 से 2010 के बीच राजनीतिक हत्या की घटना कम हुई. इसके पीछे कारण यह था कि उन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त नहीं था. लेकिन बाद के दिनों में राजनीतिक अपराध की घटनाएं बढ़ीं. इसके लिए बहुत हद तक सरकार और पुलिस प्रशासन भी जिम्मेदार है.

  • गौरतलब है कि अक्टूबर-नवंबर महीने में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में बिहार सरकार और पुलिस प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती स्वरूप में है कि राजनीतिक हत्या की घटनाओं पर लगाम कैसे लगाया जाए.

ABOUT THE AUTHOR

...view details