पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी है. देश कोरोना काल से गुजर रहा है. चुनावी तौर तरीकों में भी बदलाव आया है. वर्चुअल माध्यम से चुनाव प्रचार किया जा रहा है. इन सबके बीच जो सवाल है वह है चुनावी रणनीतिकार की भूमिका. लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर राजनीति करने वाले चुनावी रणनीतिकार को हायर करते थे. ताकि उनके बनाए चुनावी रणनीति से परचम लहराया जा सके. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है.
कोरोना काल में बिहार विधानसभा का चुनाव हो रहा है. और इस बार के चुनाव में चुनावी रणनीतिकार हाशिए पर हैं. किसी दल में कोई रणनीतिकार नहीं दिख रहा है. सियासत के दिग्गजों का कहना है कि पार्टी के दिग्गज लीडर खुद ही सबसे बड़े चुनावी रणनीतिकार हैं. फिर ऐसे में सवाल कि इससे पहले ऐसा क्यों नहीं हुआ. क्यों लाखों-करोड़ों रुपये रणनीतिकार पर खर्च किए गए.
पीके को पहचाने से भी इनकार
प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार के साथ-साथ जेडीयू के उपाध्यक्ष रहे. लेकिन एक समय में सबकी जुबान पर रहने वाले पीके आज पार्टी के नेताओं के ही जुबान से गायब हैं. हालात तो यह है कि जेडीयू के नेता ही पीके को पहचाने से इनकार कर रहे हैं. जेडीयू के विधान पार्षद खालिद अनवर का कहना है कि प्रशांत किशोर कौन हैं हम नहीं जानते हैं. हमें किसी प्रशांत किशोर की जरूरत नहीं है. हमारे नेता यानी नीतीश कुमार ही सबसे बड़े रणनीतिकार हैं. और उनकी बदौलत हम चुनाव में जीत हासिल करेंगे.
चुनावी रणनीतिकार से हाय तौबा
चुनावी रणनीतिकार को लेकर बात सिर्फ जेडीयू नेता खालिद अनवर की नहीं है. बीजेपी के प्रवक्ता संजय टाइगर का कहना है कि बीजेपी में कई बड़े नेता हैं. पार्टी ठीक से चल भी रही है. और चुनाव जीतकर सरकार भी बना रहे हैं. हमें किसी रणनीतिकार की जरूरत नहींं है. मतलब बीजेपी में पीएम मोदी, अमित शाह, बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी सहित अन्य दिग्गज इस बार के चुनाव में चुनावी रणनीतिकार बने हुए हैंं.
संजय टाइगर, बीजेपी प्रवक्ता 'तेजस्वी से बड़ा रणनीतिकार कोई नहीं'
इस बार के विधानसभा चुनाव में कोई नेता यह नहीं कह रहा है कि हमें किसी चुनावी रणनीतिकार की जरूरत है. पिछले चुनाव में लालू यादव ने प्रशांत किशोर की जमकर तारीफ की थी. आज आरजेडी प्रवक्ता अशोक भारद्वाज का कहना है कि हमारे पार्टी के शीर्ष नेता ही बड़े रणनीतिकार हैं. तेजस्वी यादव युवा नेता हैं और हमारे लिए उससे बड़ा कोई रणनीतिकार नहीं हो सकता.
अशोक भारद्वाज, आरजेडी प्रवक्ता क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?
राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि चुनावी रणनीतिकारों की भूमिका कम होने वाला नहीं है. बदली परिस्थितियों में चुनावी रणनीतिकार रास्ता दिखाते हैं. मुद्दों को कैसे उछाला जाए. यह भी वही तय करते हैं. इसलिए ना तो अभी और ना ही भविष्य में चुनावी रणनीतिकारों की भूमिका कम होगी.
संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक पीके को क्यों जानते हैं लोग?
प्रशांत किशोर I-PAC यानी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी नाम से एक संस्था चलाते हैं. यह संस्था ही किसी पार्टी के प्रचार अभियान का काम देखती है. जानकार बताते हैं कि प्रशांत किशोर की इस संस्था में करीब 250 लोग काम करते हैं. 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी हो या फिर जेडीयू या फिर आरजेडी सभी नेता अपने नेता को चुनावी रणनीतिकार बता रहे हैं. और चुनाव में जीत का दावा कर रहे हैं. इससे पहले के किसी भी चुनाव को उठाकर देख लें तो सभी पार्टियों ने चुनावी रणनीतिकार का ही सहारा लिया. 2014 लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 दिल्ली विधानसभा चुनाव तक राजनीतिक पार्टियों में पीके की चर्चा होती थी. और ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीतिक पार्टियों ने लाखों रुपये खर्च कर प्रशांत किशोर से चुनाव में सलाह ली. और पार्टी को जीत मिली.
प्रशांत किशोर, चुनावी रणनीतिकार 2014 में बीजेपी को दिलाई थी जीत
2014 के लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की चर्चा तब हुई थी. जब बीजेपी की जीत हुई थी. बीजेपी के लिए पीके ने पूरी टीम के साथ काम किया था. कहा जाता है कि प्रशांत किशोर की टीम ने जनता के बीच जाकर लोगों की परेशानियों को समझा और उसी के आधार पर उन्होंने एक रणनीति बनाई. महंगाई को मुद्दा बनाया और गुजरात मॉडल को पेश कर बीजेपी को जीत दिलाई. इसके बदले बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए पीके को बहुत बड़ी रकम दी थी. रकम कितनी थी यह बातें तो सामने नहीं आई थी लेकिन लोकसभा चुनाव के वक्त जब प्रशांत किशोर ने सिटिजन्स फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस नाम का एक ग्रुप बनाया था. तो उसमें 50 से 60 लोग काम करते थे. और ज्यातार लोगों का वेतन 50 हजार से 1 लाख रुपये तक था.
2014 में बीजेपी को दिलाई जीत 2015 में नीतीश के लिए लिया काम
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाने के बाद 2015 में नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर से बातचीत की. 2015 के चुनाव में प्रशांत किशोर ने बड़ी भूमिका निभाई थी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे. प्रशांत किशोर को उस वक्त तक किंग मेकर कहा जाने लगा था. चुनाव जीतने के बाद प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने पार्टी उपाध्यक्ष बना दिया. इस बीच अन्य पार्टियों के लिए प्रशांत किशोर रणनीति बनाते रहे और जेडीयू में नेता भी बने रहे.
2015 में नीतीश के लिए काम क्यों पीके की हो रही अनदेखी?
जेडीयू में नेता बनने के बाद पीके कुछ दिनों तक तो शांत रहे लेकिन प्रशांत किशोर ने CAA-NRC को लेकर नीतीश कुमार की नीयत पर ही सवाल उठा दिया. बाद में जेडीयू नेताओं ने उन्हें बुरा भला कहा लेकिन नीतीश कुमार ने मीडिया के सवालों के जवाब में सिर्फ इतना ही कहा कि प्रशांत किशोर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं. एनडीए में प्रशांत किशोर पहले नेता थे जिन्होंने संसद में जेडीयू के बिल के समर्थन के बावजूद लगातार आवाज उठाते रहे. हालांकि नीतीश से मुलाकात के बाद सीएए पर उनके तेवर नर्म पड़ गए. लेकिन उन्होंने एनआरसी का विरोध करना जारी रखा. इस बार के चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए के साथ हैं.