पटना:तारापुर और कुशेश्वरस्थान उपचुनाव (Tarapur and Kusheshwarsthan By-elections) दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है. एक तरफ जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार(Nitish Kumar) दोनों सीट जीतने के लिए अपनी सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं और पूरी ताकत लगा दी है. वहीं दूसरी तरफ आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव(Lalu Prasad Yadav) भी बिहार पहुंच चुके हैं और वे उपचुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहे हैं.
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ये दोनों सीट जेडीयू विधायकों के निधन के कारण खाली हुई है, इसलिए आरजेडी के पास फिलहाल खोने को कुछ नहीं है और लालू प्रसाद यादव के लिए यह सबसे प्लस पॉइंट है. तेजस्वी लगातार फील्डिंग कर रहे हैं, लेकिन चर्चा यह जरूर शुरू है कि लालू और नीतीश फिर से आमने-सामने हैं और कौन किस पर भारी पड़ता है.
वैसे पिछले 15 सालों की बात करें तो नीतीश हमेशा लालू पर 20 रहे हैं, लेकिन पिछले चुनाव में तेजस्वी यादव बिना लालू के बेहतर प्रदर्शन करके दिखाया था. नतीजा ये हुआ कि जेडीयू को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया था. अब तेजस्वी के साथ लालू भी खड़े हैं तो लालू इस बार क्या नीतीश कुमार पर भारी पड़ेंगे.
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि लालू यादव भीड़ जुटाने में माहिर हैं. पहले भी लोगों के आकर्षण के केंद्र रहे हैं. नीतीश कुमार अपने विकास कार्य को लेकर जाने जाते रहे हैं. ऐसे में लालू इस बार भीड़ को वोट में कितना बदल पाते हैं, सब कुछ इसी पर निर्भर करेगा.
"इसमें कोई दो राय नहीं कि लालू यादव भीड़ जुटाने में माहिर हैं. वे पहले भी आकर्षण के केंद्र रहे हैं. वहीं नीतीश कुमार अपने विकास कार्य को लेकर जाने जाते हैं. ऐसे में लालू भीड़ को वोट में कितना बदल पाते हैं, यह अहम होगा"- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ प्रेम कुमार मणि का कहना है ये तो सच है कि आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव आज भी दलितों, गरीबों और शोषितों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है. ऐसे में उपचुनाव जेडीयू के लिए आसान नहीं होगा.
"आर्थिक मोर्चे पर भले ही लालू यादव बहुत सफल नहीं रहे हैं, लेकिन वे आज भी दलितों, गरीबों और शोषितों के बीच काफी लोकप्रिय हैं और उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है"- प्रेम कुमार मणि, राजनीतिक विशेषज्ञ
उधर, राजनीतिक विशेषज्ञ अजय झा भी मानते हैं कि साढ़े तीन साल बाद आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव बिहार लौटे हैं. जनता में उनका क्रेज तो है, इसमें कोई संदेह नहीं है. जनता में जिज्ञासा है उन्हें देखने की और उन्हें सुनने की. ऐसे में नीतीश और लालू में से कौन किस पर भारी पड़ेगा, यह तो जनता ही तय करेगी.
"लालू प्रसाद यादव लंबे अंतराल के बाद लौटे हैं तो जनता में जिज्ञासा है उन्हें देखने और सुनने की. उपचुनाव के नतीजे वाकई तय करेगा कि नीतीश और लालू में कौन किस पर भारी हैं"- प्रो. अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ
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वहीं, जेडीयू प्रवक्ता निखिल मंडल का कहना है कि लालू प्रसाद यादव भीड़ जुटाने में पहले भी कामयाब होते रहे हैं. वे अपनी शैली में बात बनाकर लोगों को हसाएंगे और ताली भी बजाएंगे, लेकिन जब भी विकास की बात होगी तो नीतीश कुमार का ही नाम आ आएगा.
"ठीक है लालू जी आएंगे और अपनी बातों से लोगों को हंसाएंगे और उनका मन बहलाएंगे, लेकिन इससे आरजेडी को वोट नहीं मिल जाएगा. बिहार की जनता विकास के नाम पर नीतीश कुमार के साथ है"- निखिल मंडल, प्रवक्ता, जेडीयू
जेडीयू के दावे पर पलटवार करते हुए आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद कहते हैं कि नीतीश कुमार को जनता ने 2020 में ही खारिज कर दिया है. जबकि लालू प्रसाद यादव आज भी अपने स्टैंड पर कायम हैं. गरीबों और दलितों के बीच उनकी आज भी लोकप्रियता उसी तरह बनी हुई है. राजनीति में उन्हें जगह दी है, लेकिन नीतीश कुमार ने हमेशा उन्हें इस्तेमाल किया है. सत्ता के लिए पलटी भी मारी है.
"नीतीश कुमार को तो बिहार की जनता ने 2020 के चुनाव में ही खारिज कर दिया है. जबकि लालू प्रसाद यादव आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय है. गरीबों और दलितों को राजनीति में लालू जी ने ही जगह दी, लेकिन नीतीश कुमार ने सत्ता के लिए उनका इस्तेमाल किया है"- एजाज अहमद, प्रवक्ता, आरजेडी
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वैसे उपचुनावों में आरजेडी का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत बेहतर रहा है. लालू प्रसाद यादव 3 साल के लंबे अंतराल के बाद बिहार लौटे हैं, जिस वजह से उनके समर्थकों में जबर्दस्त उत्साह है. वहीं, नीतीश कुमार 16 साल से सत्ता में हैं तो जाहिर है कि एंटी इनकंबेंसी भी है. दोनों तरफ से पूरी ताकत उपचुनाव में लगाई गई है. दोनों सीट जेडीयू की है और उसके साथ बीजेपी और एनडीए की सभी सहयोगी खड़ी है. ऐसे में देखना होगा कि जनता किसे पसंद करती है. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव में कौन किस पर भारी पड़ते हैं, यह देखना भी दिलचस्प होगा.