पटना:बिहार में सरकारी नौकरी की चाहत लिए हर साल सैकड़ों युवा राजधानी पटना आते हैं. बाजार समिति और नया टोला इलाके में रहकर तैयारी करते हैं. इनमें से ज्यादातर छात्र आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से होते हैं. जो अपना खर्च उठाने के लिए छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं. इसके साथ ही अपने पढ़ाई भी जारी रखते हैं. इन युवाओं के मुताबिक लंबे अरसे के बाद सेंट्रल और राज्य स्तर पर वैकेंसी आती है. जिसमें काफी कम सीट रहती है. वहीं राज्य सरकार की वैकेंसी में कई बार परीक्षा के दौरान क्वेश्चन पेपर लीक हो जाते हैं. इससे कई बार मन निराश और हताश हो जाता है.
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लॉज में रहकर पढ़ाई करते छात्र: राजधानी पटना के बाजार समिति स्थित इलाके में लॉज में रहने वाले छात्रों से मिलकर उनके बारे में जानने की कोशिश की. तभी मालूम हुआ कि एक ही छोटे से कमरे में 2 छात्र रहते हैं. दोनों अभ्यर्थियों ने बताया कि करीब छह से सात सालों से सरकारी नौकरी की तैयारी में जुटे हैं. उन्होंने बताया कि शुरुआत में घर वालों ने सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए पैसे भेजे थे. लेकिन घर की आर्थिक हालात कमजोर होने के कारण अब नहीं भेज पाते हैं. इस कारण हमलोगों को खुद के पढ़ाई के खर्च के लिए 2-2 होम ट्यूशन पढ़ाने पड़ते हैं. दोनों छात्रों की पहचान नीरज और रजनीश बताया गया है.
छह साल से तैयारी में जुटे: पूछताछ करने पर नीरज ने बताया कि उनके पिताजी किसान हैं. वह पिछले 6 साल से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा है. कई एग्जाम के कुछ पेपर निकालने में सफल हुआ है. लेकिन फाइनल में सिलेक्शन नहीं हो पाया है. उसने बताया कि पिछले साल केंद्र सरकार की सीजीएल परीक्षा में मेंस पेपर में असफल हो गया था. इस बार फिर से प्री पेपर क्वालिफाई किया है और मेंस की तैयारी में जुटा हुआ है. इसके अलावे एनटीपीसी में रिजल्ट निकला. जबकि रिजल्ट के सिर्फ 18 दिन के अंदर ही टाइपिंग टेस्ट के लिए तिथि घोषित कर दी गई. जिसमें वह असफल हो गया. नीरज का कहना था कि अगर टाइपिंग के लिए थोड़ा और समय मिलता है तो बेहतर रहता.
परीक्षा सही समय पर कराने की जताई उम्मीद: इधर दूसरे छात्र नीरज ने बताया कि करीब 8 साल के लंबे अंतराल के बाद बिहार एसएससी की वैकेंसी आई. आयोग ने कहा कि डेढ़ साल के अंदर वैकेंसी कंप्लीट करा लिया जाएगा तब इस परीक्षा से उम्मीद जागी थी. जबकि इसकी शुरुआत ही जब परीक्षा पेपर लीक के कारण कैंसिल हो गई तब फिर से इसपर ग्रहण चढ़ गया. उसने बताया कि इस वैकेंसी को भी कंप्लीट होने में पिछले वैकेंसी के जैसा ही 6 से 8 साल लग जाएंगे. उसके बाद बताया कि अगर इस स्थिति से परीक्षाओं का संचालन होगा तब फिर से अभ्यर्थी टूट जाएंगे.
खाने पीने में होती है काफी परेशानी:इसी बातचीत के दौरान नीरज ने बताया कि एक छोटे से कमरे का 3000 रुपए किराया चुकाना होता है. इसलिए दो लोग एक साथ रहकर कमरा शेयर करते हैं. इसके अलावे खाने पीने का भी अलग ही खर्च है. घर से उतने संपन्न नहीं है कि बार-बार जाकर राशन पानी लेकर आए. ट्यूशन पढ़ाते हैं उसी पैसे से रेंट भी चुकाते हैं, पढ़ाई का खर्च भी निकालते हैं और खाने-पीने का खर्च उसी से हो पाता है. खाना-पीना इतना महंगा हो गया है कि 1 किलो आटा, आधा किलो दाल, 1 किलो आलू, आधा किलो प्याज पर ही जिंदगी जीने की कोशिश करते हैे. चावल भी एक- दो किलो से अधिक नहीं खरीदा जाता. पूरे दिन में मात्र 2 बार खाना बनाकर खाते हैं. कभी दाल चावल बनाते हैं, तो कभी आलू की सब्जी और चावल बनाकर खाते हैं. ज्यादा कभी समय मिला तब सब्जी और रोटी बनाकर खाते हैं. इन खानों के अलावे कभी कोई कभी कोई तीसरा व्यंजन नहीं बन पाता है. इसका सिर्फ एक ही कारण है आर्थिक तंगी. तमाम मुसीबतों से जूझते हुए इस उम्मीद से तैयारी में लगे हुए हैं कि जब सरकारी नौकरी लगेगी तब दिन बदलेंगे लेकिन कब बदलेंगे इसका इंतजार है.