पटना: परिवाद की सुनवाई और कम समय में फैसला देने की वजह से आम लोगों का रुझान मानवाधिकार आयोग की ओर बढ़ता दिख रहा है. जिस वजह से लोग अब अपने अधिकार की रक्षा के लिए खुलकर आयोग का दरवाजा खटखटा रहे हैं. पहले जहां मानवाधिकार आयोग (Bihar Human rights Commission) में प्रतिदिन 5 से 7 मामले (Police Harassment Cases) आया करते थे, वह बढ़कर डेढ़ सौ से 200 पहुंच गया है. इन मामलों में तीन चौथाई शिकायतें पुलिस के उत्पीड़न (Police Harassment) के खिलाफ आयोग को प्राप्त हुए हैं.
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मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में कुल 6828 शिकायतें मिली थीं जिसमें से आयोग के द्वारा एक साल में 6777 मामलों में फैसला दिया गया है. वहीं आयोग द्वारा मिल रही जानकारी के अनुसार इनमें से करीब 5000 मामले पुलिस के खिलाफ आई थी.
साल 2021 की बात करें तो अब तक 5087 मामले सामने आ चुके हैं. जिसमें से अब तक 3063 मामलों का निष्पादन किया गया है इनमें से करीब 1004 मामले पुलिस के द्वारा उत्पीड़न के आयोग के समक्ष आएं हैं. जिसमें से जुडिशल कस्टडी डेथ के 166 मामले दर्ज हुए हैं. इन आंकड़ों से यह समझा जा सकता है कि मानवाधिकार आयोग के समक्ष जो भी मामले आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर मामले पुलिस प्रताड़ना के हैं. इसलिए पीड़ित आयोग का सहारा ले रहे हैं.
आम लोगों में आयोग के प्रति कितना विश्वास है यह इस बात से पता चलता है कि साल 2019 में मात्र 2717 शिकायतें प्राप्त हुई थी. 75% मामले पुलिस के खिलाफ मिले थे जबकि 5% मामले जमीन और 20 मामले अन्य सरकारी महकमों के खिलाफ थे.
मानवाधिकार आयोग में आम लोग घर बैठकर ही अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं. ईमेल या फोन के माध्यम से आम लोगों को सुनवाई की तारीख मिल जाती है. मानवाधिकार आयोग द्वारा मिली जानकारी के अनुसार सबसे अधिक शिकायतें पटना जिले से 925 मिली हैं. वहीं दूसरे नंबर पर समस्तीपुर 372 और मुजफ्फरपुर में 372 मामले सामने आए. वहीं तीसरे नंबर पर भागलपुर रहा है जहां से 362 शिकायतें प्राप्त हुईं हैं.
मानवाधिकार आयोग के समक्ष आम शिकायतों के साथ-साथ पुलिस के द्वारा आम लोगों का उत्पीड़ित करना या पुलिस के द्वारा बेवजह झूठे केस में फंसा देने जैसे मामले ज्यादा आए हैं. मानवाधिकार आयोग के समक्ष किशनगंज के तत्कालीन इंस्पेक्टर अश्वनी कुमार का मामला भी आया. रेड मारने के लिए अश्वनी बंगाल गए थे. जहां वे मॉब लिचिंग का शिकार हो गए थे. वहीं घटनास्थल से उनके साथ गए अन्य पुलिसकर्मी भाग गए थे. इस मामले की शिकायत लेकर उनकी पत्नी मानवाधिकार आयोग के समक्ष पहुचीं. दिवंगत इंस्पेक्टर की पत्नी ने पुलिसकर्मियों पर जल्द कार्रवाई की मांग की है. साथ ही साथ उन्होंने अपने पति की मौत की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है.
मेरे पति इंस्पेक्टर के पद पर किशनगंज टाउन थाना में पदस्थापित थे. 9 तारीख की रात को वो रेड पर बंगाल गए थे. वहां मॉब लिंचिंग में उनकी हत्या हो गई. जो उनके साथी गए थे वो सब वापस आए किसी को एक खरोच तक नहीं आया था. हमें नहीं पता है कि वहां क्या हुआ था. मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए ताकि मेरे पति को इंसाफ मिल सके.- मीनू सिंह लता, दिवंगत पूर्व इंस्पेक्टर की पत्नी
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