पटनाःपूरे बिहार में होली का त्योहार धूम-धाम से मनाने की तैयारी हो रही है. लोग पहले ही होली के रंगों में डूब चुके हैं. होली में जितना महत्व रंगों का है, उतना ही महत्व होलिका दहन है. जो होली के ठीक एक दिन पहले ही होता है. राजधानी पटना के साथ-साथ तमाम जिले में इसकी तैयारी पूरी हो चुकी है.
हर जगह होलिकी दहन की धूम
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होली 10 मार्च को मनाई जाएगी. लेकिन इससे पहले हम बात करते हैं होलिका दहन की. जिसकी तैयारी हर चौक-चौराहों और मुहल्ले में हो रही है. होलिका दहन एक सामुहिक अनुष्ठान है, होली से पहले इसकी तैयारी कई दिन पहले शुरू हो जाती है. सूखी लकड़ियां और सूखे पत्ते इकट्ठा कर उन्हें एक खुली जगह पर रखा जाता है. फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है. होलिका दहन के साथ ही बुराइयों को अग्नि में जलाकर खत्म करने की कामना की जाती है
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है. होली से एक दिन पहले किए जाने वाले होलिका दहन की महत्ता बहुत है. होलिका दहन की आग में बुराई जलकर भस्म हो जाती है, और अच्छाई की जीत होती है. इस बार होलिका दहन 9 मार्च को किया जाएगा, जबकि रंगों वाली होली 10 मार्च को है. होलिका दहन को छोटी होली भी कहते हैं
जानिए होलिका दहन का मुहूर्त क्या है?
9 मार्च 2020 यानि सोमवार को पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ सुबह 3 बजकर 3 मिनट से रात 11 बजकर 17 मिनट तक है. इसी दौरान होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 26 मिनट से रात 8 बजकर 52 मिनट तक है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि ही होलिका दहन किया जाता है. यानी कि रंगों वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है.
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जानिए होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन पर लोग होलिका को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल करते हैं. हिंदू शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने होलिका को आग में जलाकर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी, इसी खुशी में होली का त्योहार मनाया जाता है. इस मान्यता के अनुसार छोटी होली के दिन लोग कुछ लकड़ियां इकठ्ठा करके उन्हें अच्छे से आग लगाकर होलिका मानते हुए जलाया जाता है. होलिका दहन के बाद से ही मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. मान्यता है कि होली से आठ दिन पहले तक भक्त प्रह्लाद को अनेक यातनाएं दी गई थीं. इस काल को होलाष्टक कहा जाता है. होलाष्टक में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. कहते हैं कि होलिका दहन के साथ ही सारी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है.
कैसे करें होलिका पूजन
होलिका पूजन घर पर या फिर सार्वजानिक स्थल पर जाकर किया जाता है. ज्यादातर लोग अपने घर पर पूजा ना करके सार्वजानिक स्थल पर ये पूजा करते हैं. सभी लोग मंदिर या चौराहे पर कंडो, गुलरी और लकड़ी से होलिका सजाते हैं.
- एक थाली में साबुत हल्दी, माला, रोली,फूल, चावल, मुंग, बताशे, कच्चा सूत, नारियल, नई फसल की बालियांऔर एक लोटा जल लेकर बैठे.
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें, सबसे पहले भगवान गणेश का समरण करें
- इसके बाद भगवान नरसिंह को याद करते हुए गोबर से बनी हुई होलिका पर हल्दी, रोली, चावल, मुंग, बताशे अर्पित करें फिर होलिका पर जल चढ़ाएं.
- इसके बाद होलिका के चारो और परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेटे, यह परिक्रमा सात बार करें.
- होलिका पर प्रह्लाद का नाम लेकर फूल अर्पित करें और फिर भगवान को याद करते हुए नए अनाज की बालियां अर्पण करें.
- अंत में अपना और अपने परिवार का नाम लेकर प्रसाद चढ़ाएं और होलिका दहन के समय होलिका की परिक्रमा करें और उन पर गुलाल डालें.
- इसके बाद अपने बड़ों के पैरों में गुलाल डाल कर उनका आशीर्वाद लें.