पटना:बिहार विधानसभा की तारापुर (Tarapur Assembly) पर हो रहे उपचुनाव (By-Election) के लिए चुनाव प्रचार का शोर थम चुका है. तारापुर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार बुधवार शाम चार बजे समाप्त हो गया. तारापुर सीट पर जीत हासिल करने के लिए सभी पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है. इस सीट पर 30 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे.
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बिहार की तारापुर विधानसभा (Tarapur Assembly) की सीट आजादी के साथ ही बनी थी. 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में यहां से बासुकीनाथ राय चुनाव जीते थे. 1957 के आम चुनाव में भी बासुकीनाथ राय ही यहां से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जीते थे. जबकि 1962 में हुए चुनाव में जय मंगल सिंह यहां से विजयी हुए थे. 1967 के चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के बीएन प्रशांत यहां से जीते थे जबकि, 1969 में एचएसडी के तरणी प्रसाद यादव. हालांकि 1972 के चुनाव में तरणी प्रसाद ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और यहां से वह विजयी हुए थे. लेकिन, 1977 के विधानसभा चुनाव में यहां से जेएपी की कौशल्या देवी विजयी हुईं थी. 1980 के चुनाव में यहां से सीपीआई के नारायण यादव विजेता हुए थे.
1985 तारापुर के लिए ऐसे राजनीतिक बदलाव का समय रहा जब उसने शकुनी चौधरी को अपना जनप्रतिनिधि चुना. शकुनी चौधरी भले पार्टी बदलते रहे लेकिन तारापुर को उन्हें कभी नहीं बदला. 1985, 1990, 1995, 2000 और 2005 के हुए विधानसभा चुनाव और अक्टूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में शकुनी चौधरी ही तारापुर सीट से जीते थे. 2010 में इस विधानसभा सीट पर नीता चौधरी जीती थीं जो कि मेवालाल चौधरी की पत्नी थीं. 2015 में यह सीट जेडीयू ने मेवालाल चौधरी को दी और मेवालाल चौधरी यहां से विधायक चुने गए. 2020 के चुनाव में भी मेवालाल चौधरी (Mewalal Choudhary) ही चुनाव मैदान में थे. उन्होंने यह सीट फिर जीत ली लेकिन मेवालाल चौधरी की असमय मौत के बाद इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है. इस बार मेवालाल चौधरी के परिवार का कोई भी सदस्य इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ रहा है. हालांकि, जेडीयू ने इस पर अपनी मजबूत दावेदारी रखी है.
बिहार में बदले राजनीतिक हालात की बात करें तो तारापुर में मतदान का प्रतिशत हमेशा मजबूत ही रहा है. 2005 में अगर पार्टियों के अनुसार बात करें तो 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल को 41.38 फ़ीसदी वोट मिले थे. जबकि जदयू को 40.61 फ़ीसदी वोट मिले थे. 2010 की बात करें तो यह राष्ट्रीय जनता दल को 25.77 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि इस सीट पर जदयू जीती थी. जेडीयू को 37.42 फ़ीसदी वोट मिले थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में समझौते के तहत यह सीट हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के हिस्से में गई थी. जबकि HAM को 37.13 फ़ीसदी को ही वोट मिला था. वहीं जेडीयू को 42.27 फ़ीसदी वोट मिला था.
साल 2020 का उल्लेख करें तो यहां से आरजेडी को 33.09 फ़ीसदी जबकि जेडीयू को 37.26 फ़ीसदी वोट मिले थे. 2005 के बाद तारापुर विधानसभा सीट से एलजीपी कभी चुनाव नहीं लड़ी. 2010 और 2015 में एलजीपी यहां से दावेदारी नहीं पेश की थी लेकिन 2020 के चुनाव में चिराग पासवान ने यहां से उम्मीदवार दिया था और लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार को 6.51 फ़ीसदी वोट मिले थे.
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2021 में हो रहे उपचुनाव में सभी राजनीतिक दल अपने इसी वोट बैंक के आधार पर चुनावी मैदान में हैं. इस बार चुनाव में बीजेपी जेडीयू गठबंधन में यह खाता जेडीयू के खाते में गई है. वहीं आरजेडी चुनावी मैदान में है एलजेपी भी चुनावी मैदान में है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी चुनावी मैदान में आ गई है पप्पू यादव की पार्टी चुनावी मैदान में है इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा तारापुर सीट पर अपनी दावेदारी नहीं पेश की है. हालांकि 2015 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपनी दावेदारी रखी थी और 2010 में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा यहां से चुनाव लड़ा था. 2010 में झारखंड मुक्ति मोर्चा को 7.69 फ़ीसदी वोट यहां से मिले थे. जबकि 2015 में 3.42 फ़ीसदी वोट मिले थे. 2020 में हेमंत सोरेन और तेजस्वी यादव के बीच हुए समझौते में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने यहां से अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे.