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सदियों पुराना है अगमकुआं का शीतला माता मंदिर, मुराद पूरी होने पर कबूतर उड़ाने की है अनूठी परंपरा

बताया जाता है कि चौथी शताब्दी के मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक ने मंदिर परिसर में बने कुएं का निर्माण कराया था. आदिकाल से यह स्थान कष्ट कारक और सिद्धि का स्थल माना जाता है.

शीतला माता मंदिर की मूर्ति

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Published : Sep 27, 2019, 7:10 AM IST

पटना:राजधानी के अगमकुआं का शीतला माता मंदिर कई मायनों में ऐतिहासिक है. इसे मनोकामना पूर्ण मंदिर कहा जाता है. केवल नवरात्र ही नहीं बल्कि सालों भर यहां भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है. इस मंदिर को लेकर लोगों में ऐसी मान्यता है कि यहां मुराद मांगने से हर कामना पूरी होती है.

शीतला माता की खड़ी मूर्ति

शीतला माता मंदिर का इतिहास तकरीबन 2400 साल पुराना है. यहां वर्तमान में नव पिंडी है, जिसे मंदिर में स्थापित किया गया है. पुजारी के अनुसार एक समय तुलसी मंडी में कुएं की खुदाई के दौरान मां शीतला की प्रतिमा प्राप्त हुई थी. इस प्रतिमा को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया गया.

शीतला माता मंदिर

...तो इसलिए इस इलाके को कहा जाता है अगमकुआं
प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर मुख्य द्वार के पूर्व भी शीतला माता का मंदिर है. मंदिर के दरवाजे के पूर्व और दक्षिणी कोने पर शीतला माता की खड़ी मूर्ति है. शीतला माता की मूर्ति के दाहिने त्रिशूल तथा उसके दाहिने रूप में योगिनी विराजमान है. शीतला माता की मूर्ति के बाएं अंगार माता की छोटी मूर्ति है. इस मंदिर से सटे पूर्व में ही ऐतिहासिक अगमकुआं है. इसी कारण यह अगमकुआं के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

नव पिंडी

कुएं का भी है विशेष इतिहास
बताया जाता है कि चौथी शताब्दी के मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक ने इस कुएं का निर्माण कराया था. आदिकाल से यह स्थान कष्ट कारक और सिद्धि का स्थल माना जाता है. निरंतर हुए चमत्कारों और तमाम घटनाओं के कारण लोगों के बीच इस मंदिर की आस्था बढ़ती गई. ब्रिटिश काल के शासन में मौजूदा भवन का निर्माण कराया गया. खुदाई में मिली शीतला माता की मूर्ति को मंदिर के गर्भ गृह के पूर्व और दक्षिण कोने पर स्थापित किया गया है.

विशेष पैकेज

मंदिर में होते हैं शादी-विवाह
इस मंदिर में प्रत्येक साल शादी विवाह कराया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहां पर मांगी गई मनोकामना पूर्ण होने पर कबूतर उड़ाया जाता है. ब्रिटिश के शासन काल में यहां प्रथम पुजारी चंगेज भगत हुआ करते थे. आज उन्हीं के वंशज यहां के पुजारी हैं. पिछले तीन पीढ़ियों से यहां पुजारी की ओर से हर मंगलवार को विशेष पूजन किया जाता है. जिसमें महिलाओं द्वारा मां को स्नान कराया जाता है और एक विशेष श्रृंगार किया जाता है.

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