पटना: पटना हाईकोर्टमें पिछले दो दशकों से राज्य के निचली अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित आपराधिक मुकदमों के मामलें पर सुनवाई 22 सितम्बर,2023 तक टल गई है. चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ कौशिक रंजन की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है. पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार (बालसा) के सचिव को नेशनल ज्यूडिशियल ग्रिड और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के उपलब्ध आंकड़े को मूल रिकॉर्ड से जांच करने का निर्देश दिया था.
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करीब 67 हजार मामलों में पार्टियों की दिलचस्पी नहीं : याचिकाकर्ता कौशिक रंजन की अधिवक्ता शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि बड़ी संख्या में राज्य के विभिन्न अदालतों में आपराधिक मामलें लंबित पड़े हैं. उन्होंने बताया था कि लगभग 67 हजार मामले ऐसे हैं, जिनमें पार्टियां कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. कोर्ट ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार व विभिन्न जिला विधिक सेवा प्राधिकार को ऐसे मामलों को चिह्नित कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. अधिवक्ता शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि वकील सहायता के अभाव में लगभग सात लाख आपराधिक मामले लंबित हैं.
अंडरट्रायल कैदियों को मिले कानूनी सहायता : बिहार फेडरेशन ऑफ वीमेन लॉयर्स की ओर से ये कोशिश की जा रही है कि ऐसे अंडरट्रायल कैदियों को कानूनी सहायता देने के लिए वकीलों को प्रशिक्षण दें. उन्हें ऐसे कैदियों को कानूनी सहायता के लिए जरूरी जानकारी और प्रशिक्षण देने की कार्रवाई शीघ्र प्रारम्भ किये जाने की संभावना हैं. पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने इस सम्बन्ध में बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार को आंकड़े की जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में वकीलों की सहायता दिए जाने को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए.
संदर्भहीन हो चुके हैं कई मामले : अधिवक्ता शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि बहुत सारे मामले काफी पुराने हैं, जिनमें अधिकांश सन्दर्भहीन हो चुके हैं. तीस चालीस साल पुराने मामलों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि ये आंकड़े नेशनल ग्रिड और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से मिले हैं. इन्ही आंकड़ों को कोर्ट के सामने पेश किया गया.
पुराने मामलों में आरोपी और परिवादी के जीवित रहने पर संदेह : जनहित याचिका दंड प्रक्रिया कानून के तहत प्ली- बारगेनिंग के कानून को लागू करने के लिए की गई है. रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार की एक अदालत में 1965 का एक आपराधिक मामला लंबित है, जो कि नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड में साफ दिखता है. कोर्ट को यह भी बताया गया कि इतने पुराने लंबित मामले में आरोपी और परिवादी दोनों के जीवित रहने पर संदेह है. ऐसी स्थिति में या नहीं तो बेकार और कानूनी तौर पर औचित्यहीन पड़े आपराधिक मामले को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए.