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मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर HC में हुई सुनवाई, बिहार सरकार की कार्रवाई पर नाराजगी व्यक्त की - चीफ जस्टिस संजय करोल

मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा के मामले में पटना उच्च न्यायालय में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बिहार सरकार पर नाराजगी जाहिर की है और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अबतक की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने के लिए 12 दिसंबर 2022 तक का मोहलत दिया है. पढ़ें पूरी खबर..

Patna High Court News
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Published : Nov 16, 2022, 10:36 PM IST

पटनाःबिहार में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामलें पर पटना हाइकोर्ट ने सुनवाई (Hearing in Patna High Court On Mental Health Facilities In Bihar) करते हुए राज्य सरकार द्वारा की गई कार्रवाई पर नाराजगी जाहिर की. चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अबतक की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने के लिए 12 दिसंबर 2022 तक का मोहलत दिया है.

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कोर्ट ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई की।याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया,उस पर राज्य सरकार के द्वारा कोई प्रभावी और ठोस कार्रवाई अब तक नहीं किया गया है. कोर्ट ने पिछली सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को पूरी जानकारी देने को कहा था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवा में क्या क्या कमियों के सम्बन्ध में ब्यौरा देने को कहा था.


38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम में कमियांःसाथ ही कोर्ट ने इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा. याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा हैं. लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है। हर जिले में सात सात स्टाफ होने चाहिए. उन्होंने बताया कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए।साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए. लेकिन अबतक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है.

12 दिसंबर 2022 को होगी अगली सुनवाईः कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कॉलेज है।लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं,जहां मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कोई कालेज नहीं है।जबकि प्रावधानों के तहत राज्य सरकार का ये दायित्व हैं. पिछली सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले फंड में कमी आयी है,क्योंकि फंड का राज्य द्वारा पूरा उपयोग नहीं हो रहा था. पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ हैं. उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएँ नहीं के बराबर है.इस मामलें पर अगली सुनवाई 12 दिसंबर 2022 को होगी.


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