पटना:भारत-पाक बंटवारे के वक्त 1947 में लाखों की संख्या में लोग अपना घर-बार छोड़ पाकिस्तान से भारत आए थे. उस वक्त बहुत सारे लोगों ने बिहार का भी रुख किया था. जब वह बिहार आए थे तो उनके बदन पर कपड़े के अलावा उनके पास कुछ नहीं था. बंटवारे के वक्त जो दाने-दाने को मोहताज थे, आज वह सैकड़ों परिवारों के जीवन का आधार बन चुके हैं.
रोजी रोटी की तलाश में पहुंचे थे लाहौर
एक समय था जब स्वर्गीय बख्शी राम गांधी के पूर्वज गुजरात से लाहौर रोजी रोटी की तलाश में गए थे. तब से पूरा परिवार लाहौर के मुरीदके गांव में रह रहा था. मुरीदके गांव गुजरांवाला जिले का हिस्सा है. बख्शी परिवार वहां परफ्यूम बनाने का काम करते थे. गंध से जुड़े होने के चलते इनके नाम के पीछे गांधी नाम जुड़ गया. भारत-पाकिस्तान बंटवारे के वक्त बख्शी राम गांधी अपने परिवार के 35 लोगों के साथ बिहार आ गए थे.
लाहौर से पटना तक का रास्ता
24 जुलाई 1947 को जब माहौल बिगड़ रहा था तब बक्शी राम गांधी को उनके पड़ोसी ने कहा कि माहौल बिगड़ रहा है अभी यहां रहना ठीक नहीं है. उन्होंने बक्शी राम गांधी को आश्वासन दिया कि मैं आपको स्टेशन तक सुरक्षित पहुंचा दूंगा और पूरा परिवार लाहौर स्टेशन से भारत के लिए रवाना हो गया. ट्रेन सीधे ऋषिकेश में आकर रुकी. ऋषिकेश के कमली वाला धर्मशाला में इन लोगों ने शरण लिया. सब्जी बेचकर वहां कुछ दिनों तक गुजर-बसर किया, लेकिन एक पंडित ने कहा कि यहां आप कमाई नहीं कर सकते हैं तब वह गया के रास्ते पटना आ गए.