पटना: क्या कभी आपने सुना है... जोंक से इलाज हो सकता है. जी हां, संभव भी है और इसे किया भी जा रहा है. जोंक से फंगल बीमारियों का इलाज किया जाता है. इसे जलौका विधि कहते हैं. विधि के बारे में आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य का मानना है कि ब्लैक फंगस भी फंगल बीमारियों में है. निसंदेह ब्लैक फंगस का इलाज जलौका विधि से हो सकता है.
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शुरू की गई है विशेष तैयारी
प्रदेश में ब्लैक फंगस का मामला काफी तेजी से बढ़ रहा है. अब तक 56 मामले सामने आ चुके हैं. कोरोना से ठीक होने वालों में यह फंगस का मामला काफी देखने को मिल रहा है. ब्लैक फंगस सबसे पहले आंखों को नुकसान पहुंचा रहा है. आंखों के बाद जब संक्रमण दिमाग के हिस्से में पहुंच रहा है. तब यह जानलेवा हो जा रहा है. ऐसे में पटना के कदमकुआं स्थित राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय में फंगस के इलाज को लेकर विशेष तैयारी शुरू की गई है. जलौका विधि से फंगस वाली बीमारियों का इलाज किया जा रहा है.
फंगल बीमारियों का जलौका विधि से इलाज
राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. दिनेश्वर प्रसाद ने बताया कि आयुर्वेद में फंगल बीमारियों के इलाज के लिए जलौका विधि से इलाज की पद्धति है. यह विधि काफी प्राचीन और प्रचलित है. महर्षि सुश्रुत, जिन्हें सर्जरी का जनक माना जाता है. उनके द्वारा जलौका विधि से इलाज के काफी फायदे बताए गए हैं. वे फंगल बीमारियों का इलाज इसी विधि से किया करते थे.
सुश्रुत संहिता में है विस्तृत वर्णन
सुश्रुत संहिता में जलौका विधि का विस्तृत रूप से वर्णन है. आंखों में सूजन, इंफेक्शन आदि को ठीक करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है. ग्लूकोमा बीमारी जिसमें आंखों का प्रेशर काफी बढ़ जाता है, इसके उपचार में भी जलौका विधि का प्रयोग किया जाता है. उन्होंने कहा कि चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों और सरकार को इस पद्धति के प्रचार-प्रसार को लेकर सार्थक प्रयास करना चाहिए. क्योंकि यह काफी किफायती और लाभदायक है.
जोंक का किया जाता है इस्तेमाल
प्राचार्य डॉ. दिनेश्वर प्रसाद ने बताया कि जलौका पद्धति में जोंक का इस्तेमाल किया जाता है. यह फंगल बीमारियों के इलाज में काफी कारगर है. जोंक की खासियत यह है कि यह शरीर से गंदा खून चूस कर डेड सेल को नष्ट कर देता है. ऐसे में शरीर में कहीं भी स्किन खराब होने और रक्त संचार बंद होने की स्थिति आती है तो वहां डेड सेल को एक्टिव करने में जोंक काफी मददगार साबित होता है.