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Independence Day 2023: 'आंखों के सामने शहीद हो गये थे कई साथी...' स्वतंत्रता सेनानी की जुबानी उनकी कहानी - स्वतंत्रता दिवस 2023

आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) के उपलक्ष्य पर इस बार पूरा देश 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. ऐसे में आज उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को को याद करने का दिन है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में योगदान दिया.बिहार की राजधानी पटना से सटे मसौढ़ी में रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत से संघर्ष की अपनी यादों को ईटीवी भारत के साथ साझा किया है.

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Published : Aug 14, 2023, 4:26 PM IST

रामचंद्र सिंह, स्वतंत्रता सेनानी.

पटना: देश 77 वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने की तैयारी कर रहा है. आजादी के दीवानों को याद करने का दिन है. देश भर में आजादी का जश्न मनाया जा रहा है. ऐसे में आज आजादी की लड़ाई के जीवित बचे सिपाहियों की जुबानी उनकी कहानी सुनने का अवसर मिलना गर्व की बात होगी. मसौढ़ी में वैसे तो 23 स्वतंत्रता सेनानी हुए. इनमें मसौढ़ी प्रखंड के घोरहुआं गांव के रहने वाले रामचंद्र सिंह आज भी जिंदा हैं. इस वक्त करीब 95 साल उनकी उम्र हो चुकी है. लेकिन आज भी उनमें वही जोश और जुनून देखने को मिल रहा है.

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"अंग्रेजी शासन के खिलाफ क्रांतिकारियों में जोश भरते थे. उनके लिए मैसेंजर का काम करते थे, कई बार जेल की यातनाएं भी सहनी पड़ी थी. बावजूद हार नहीं माने. अपने देश की आजादी की लड़ाई में जुटे रहे. हमारे कई साथी अंग्रेजों की गोलियों के शिकार हो गए. हमारे सामने कई स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गये, इसके बाद भी हमलोगों का मनोबल नहीं टूटा. बल्कि, हौसला और भी बढ़ता गया."-रामचंद्र सिंह, स्वतंत्रता सेनानी

मसौढ़ी अनुमंडल में कुल 23 स्वतंत्रता सेनानी हुएः आज 77 वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राम चंद्र सिंह आज के दौर के युवाओं को एक संदेश देते नजर आ रहे हैं कि पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ अपने समाज और देश के प्रति जोश और जुनून और देशभक्ति को बरकरार रखें. देश सर्वोपरि है. बता दें कि मसौढ़ी अनुमंडल में कुल 23 स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं, जिन्होंने देश को आजाद करने में बहुमूल्य योगदान दिया.

छोटी उम्र में ही स्वतंत्र आंदोलन में कूद पड़े थेः स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र सिंह का संघर्ष इतिहास के पन्नों में दर्ज है. वह महज 15 साल की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे. रामचंद्र सिंह का जीवन भारत छोड़ो आंदोलन ने बदल कर रख दिया. भारत छोड़ो आंदोलन साल 1942 को शुरू हुआ तब रामचंद्र जी की उम्र महज 15 साल की थी.

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