पटना:सावन महीने के पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले पर्व रक्षाबंधन(Raksha Bandhan) का इंतजार भाई-बहनों को पूरे साल रहता है. इस दिन बहन भाई की कलाई पर राखी बांधकर भगवान से उनकी रक्षा की प्रार्थना करती हैं. भाई भी बहन की रक्षा करने का वचन देता है.
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यह पर्व सदियों से मनाया जा रहा है. इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं. भविष्य पुराण के अनुसार असुरों के राजा बलि के साथ इंद्र देव की लड़ाई हुई थी. पति की रक्षा के लिए इंद्र की पत्नी सची भगवान विष्णु के पास गईं थीं. विष्णु जी ने सची को एक धागा दिया था और उसे इंद्र की कलाई पर बांधने को कहा था. सची ने ऐसा ही किया और इंद्र देव को युद्ध में विजय मिली. प्राचीन काल में जंग के मैदान में जाते समय राजा और सैनिकों को पत्नियां और बहनें रक्षा सूत्र बांधती थीं ताकि वे सकुशल लौटें.
रक्षाबंधन की एक कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है. असुरों का राजा बलि दानवीर था. वह अपने दरबार से किसी को खाली हाथ नहीं लौटने देता था. वामन अवतार में भगवान विष्णु उसके दरबार में गए. जब बलि ने दान मांगने को कहा तो भगवान विष्णु ने तीन पग (कदम) भूमि का दान मांगा. बलि इसके लिए तैयार हो गया.
वामन ने एक पग से पृथ्वी और दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया. तीसरे पग के लिए बलि ने अपना मस्तक आगे कर दिया. सब कुछ गंवा चुके बलि को अपने वचन से न फिरते देख वामन प्रसन्न हो गए. उन्होंने बलि से वरदान मांगने को कहा. असुर राज बलि ने वरदान में उनसे अपने द्वार पर खड़े रहने का वर मांग लिया. इस प्रकार भगवान विष्णु अपने ही वरदान में फंस गए. माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह पर असुर राज बलि को राखी बांधा और उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया.
रक्षाबंधन की एक कथा महाभारत काल की है. महाभारत की लड़ाई से पहले भगवान कृष्ण ने राजा शिशुपाल के खिलाफ सुदर्शन चक्र उठाया था. इसी दौरान उनके हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा तभी द्रोपदी ने अपनी साड़ी में से टुकड़ा फाड़कर कृष्ण के हाथ पर बांध दिया था. बदले में भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को भविष्य में आने वाली हर मुसीबत से रक्षा करने का वचन दिया था. कृष्ण जी ने चीर हरण के समय द्रोपदी की रक्षा की थी.
राखी के वजन के चलते ही सिकंदर को जीवनदान मिला था. बात ईसा पूर्व 326 की है. सिकंदर ने भारत पर हमला किया था. उसका सामना पंजाब के महाराज पोरस यानी पुरु से हुआ था. सिकंदर और पोरस की सेना के बीच कई दिनों तक घमासान युद्ध हुआ था. दोनों ओर से अनेक योद्धा मारे गए थे. सिकंदर के साथ उसकी प्रेमिका भी आई थी. वह इस बात से डरी हुई थी कि कहीं जंग में सिकंदर की मौत न हो जाए. रक्षाबंधन के दिन वह महाराज पुरु के पास गई थी और उन्हें राखी बांधा था. इसके बदले उन्होंने लड़ाई में सिकंदर को जीवनदान दिया था.
रक्षाबंधन की एक कहानी रानी कर्णावती और हुमायूं की है. मार्च 1534 में गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चितौड़ पर हमला किया था. चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी थी और मदद के लिए प्रार्थना की थी. उन दिनों हुमायूं का पड़ाव ग्वालियर में था. उसके पास राखी देर से पहुंची. जब तक वे फौज लेकर चित्तौड़ पहुंचे बहादुरशाह की जीत और रानी कर्णावती का जौहर हो चुका था. जब यह खबर हुमायूं को मिली तो वह बहुत दुखी हुए. उन्होंने हमला किया और बहादुरशाह को हराकर रानी कर्णावती के बेटे विक्रमजीत सिंह को सत्ता सौंप दी.
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