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मछलियों के उत्पादन पर गहराया संकट, प्रदेश में मछलियों को ऑक्सीजन की कमी - OXYGEN CRISIS IN FISHES

कोरोना संक्रमण में इंसानों के साथ मछलियों के लिए भी ऑक्सीजन संकट गहरा गया है. मछली कारोबार से जुड़े राज्य में लोगों की संख्या करीब 40 लाख है और सामान्य तौर पर राज्य में हर रोज औसतन 40 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार होता था. मगर अब 20 करोड़ रुपए से भी कम की मछलियां बिक रहीं हैं.

PATNA
मछलियों के उत्पादन पर गहराया संकट

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Published : May 20, 2021, 6:33 AM IST

पटना:प्रदेश में कोरोना संक्रमणके कारण इंसानों के साथ साथ मछलियों पर भी ऑक्सीजन का संकट गहरा गया है. ऑक्सीजन की कमीके कारण प्रदेश में मछली उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुई है.

मछलियों के लिए ऑक्सीजन की जरूरत क्यों ?
बिहार में 150 हैचरी है और हर हैचरी में 15 से 20 करोड़ जीरा है. जीरा मछलियों के बीज को कहा जाता है. हैचरी से मछलियों के जीरा को ट्रांजिट कर तालाबों तक ले जाया जाता है. मछलियों के जीरा को ट्रांजिट कर तालाबों तक के लिए आने के लिए जिस प्लास्टिक के पैकेट में जीरा को पैक कर लाया जाता है उसमें ऑक्सीजन भरा जाता है. मगर ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियों के जीरा बर्बाद हो रहे हैं.

मछलियों के उत्पादन पर गहराया संकट,

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क्या कहता है अधिकारी
बिहार राज्य मत्स्य जीवी सहकारी संघ लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप ने बताया कि मत्स्य बीज स्पॉन हेचडी से निकलता है और इसे तालाबों तक ले जाने के लिए प्लास्टिक का एयर बैग आता है और उसमें स्पॉन को पानी के साथ डालकर ऑक्सीजन डाली जाती है. इसके बाद ही हैचरी से कैरी कर तालाबों तक ले जाया जाता है. बिहार में डेढ़ सौ हैचरी के लिए 450 बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर भी है. लेकिन महामारी के समय में सभी ऑक्सीजन सिलेंडर अस्पतालों के लिए प्रशासन ने ले लिए हैं.

मछलियों के लिए होना पड़ सकता है दूसरे राज्यों पर निर्भर
ऋषिकेश कश्यप ने बताया कि ऐसे में मत्स्य उत्पादन पर गहरा संकट खड़ा हो गया है और उम्मीद है कि इस बार लक्ष्य का 50% भी मछलियों का उत्पादन प्रदेश में नहीं हो पाएगा. मछलियों के उत्पादन के लिए अभी का ही महीना सबसे बेहतर माना जाता है. मगर अब तक प्रदेश में पैदावार शुरू नहीं हुए हैं. प्रदेश में 8 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है जबकि 6.14 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन प्रदेश में शुरू होता है. मगर डेढ़ महीना भी चुका है और उत्पादन अभी तक शुरू नहीं हुआ है. ऐसे में आने वाले समय में बिहार में मछलियों के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर होना पड़ सकता है.

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हैचरीज में ऑक्सीजन संकट
ऋषिकेश कश्यप ने बताया कि मछलियों के बीज 3 तरह के होते हैं और इनमें सबसे छोटा स्पॉन होता है, जब वह 14 दिन का हो जाता है तब फ्राई हो जाता है और जब वह भी 1 महीने का हो जाता है तो फिंगर लिंग हो जाता है. मछली उत्पादन में स्पॉन का ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. मछलियों के बीज को जब हम ऑक्सीजन बैग में रखते हैं तो इस दौरान बीज जीवित भी रहते हैं और उनका साइज भी नहीं बढ़ता. हर हैचरी में अगर कम से कम 15 करोड़ जीरा माने तो प्रदेश के डेढ़ सौ हैचरी में लगभग 2250 करोड़ मछलियों के जीरा को ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से उनकी जान पर संकट आ गया है.


'कोरोना काल में मछली के कारोबार में प्रदेश में 50% से भी ज्यादा गिरावट आई है और लगभग 10 लाख से ज्यादा मछुआरे बेरोजगार हो गए हैं. मछली कारोबार से जुड़े राज्य में लोगों की संख्या करीब 40 लाख है और सामान्य तौर पर राज्य में हर रोज औसतन 40 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार होता था मगर अब 20 करोड़ रुपए से भी कम की मछलियां बिक रही है'.- ऋषिकेश कश्यप, मत्स्य जीवी सहकारी संघ के अध्यक्ष

प्रदेश के हैचरी में ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहे हैं. इस वजह से उत्पादन नहीं हो पा रहा है. ऐसे में आने वाले दिनों में मछलियों के उत्पादन में कमी आने से मछलियों के लिए बिहार को बंगाल, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे दूसरे राज्यों पर निर्भर होना पड़ेगा. ऐसे में बिहार को मछलियों की आपूर्ति के लिए दूसरे राज्यों को पैसा देना होगा और प्रदेश में उत्पादन जब कम हो जाएगा तो आने वाले दिनों में बिहार में कतला, रेहू, नैनी, ग्रास, सिल्वर और कॉमन डिमांड की मछलियों के दाम महंगे होंगे और मछली खाने के शौकीन लोगों को अधिक पैसे खर्च करने होंगे.

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