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एक सुर में बोले सामाजिक विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री- असम की तर्ज पर बिहार में भी लागू हो NRC

असम में केंद्र सरकारी ने एनआरसी लागू कर दिया है, जिसके बाद बिहार में भी इसे लागू किए जाने की मांग उठने लगी है. बीजेपी बिहार में एनआरसी चाहती है तो वहीं जदयू इसका विरोध कर रही है, लेकिन बिहार के सामाजिक विशेषज्ञ एनआरसी लागू करना ही बेहतर मान रहे हैं.

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Published : Sep 8, 2019, 6:19 PM IST

पटना:नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन के लेकर इन दिनों राजनीति गरम है. असम के बाद अब बिहार में भी एनआरसी लागू करने की बात शुरू हो गई है. बीजेपी जहां बिहार में एनआरसी लागू करना चाहती है, तो वहीं जदयू इसका विरोध कर रही है, लेकिन इन सबके बीच विशेषज्ञ भी मानते हैं कि बिहार में भी एनआरसी लागू हो.

असम की तरह अब बिहार में भी राष्ट्रीय नेशनल रजिस्टर तैयार करने की मांग उठने लगी है. यह मांग बीजेपी के बड़े नेता उठा रहे हैं. वहीं जदयू इस मांग का विरोध कर रही है. इन सबके बीच समाजिक विशेषज्ञ की मानें तो बिहार में भी एनआरसी लागू होनी चाहिए. सामाजिक मामलों के जानकार का मानना है कि जो देश के नागरिक हैं. उनका पहला हक सरकार द्वारा दी जाने वाली योजनाओं का है, लेकिन यह देखा जा रहा है कि उनके हक में घुसपैठिए ज्यादा सेंधमारी कर रहे हैं.

एन के चौधरी, सामाजिक विशेषज्ञ

एन के चौधरी ने क्या कहा
एनके चौधरी ने कहा कि किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार आदि जिलों में अब तो मुस्लिम समाज भी यह मांग कर रहे हैं. कि इन पर कार्रवाई की जाए. क्योंकि यह हमारा हक मार रहे हैं. एनआरसी तो हो लेकिन जो अंतर्राष्ट्रीय कानून है. इसमें मानवाधिकार का भी हनन ना हो. चौधरी ने कहा कि मैं मानता हूं कि बीजेपी और जदयू इस विषय को लेकर राजनीति कर रही है. उन्होंने कहा कि बिहार के उत्तर पूर्व क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बाहर के लोग आए हुए हैं. जिसमें सबसे ज्यादा बांग्लादेश के लोगों के साथ अन्य देशों से भी लोग आए हुए हैं.

सामाजिक विशेषज्ञ यह मानते हैं...
बीजेपी के स्टैंड पर एन के चौधरी ने कहा कि जिस पार्टी का धर्म के आधार पर ही राजनीति हो तो स्वभाविक है कि वह इस तरह की मांग उठाती रहेगी. वहीं जेडीयू के स्टैंड पर उन्होंने कहा कि जदयू एनआरसी को लेकर विरोध कर रही है तो स्वभाविक है कि वह एक राजनीति कर रहे हैं क्योंकि देश में कुछ ऐसी पार्टियां हैं जो सारे समुदाय को लेकर आगे बढ़ाना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि इन पार्टियों को अपने वोट बैंक की चिंता होती है, इसलिए वह लोग इस तरह की मांग को उठाते रहे हैं. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि संविधान के तथ्यों के आधार पर कार्रवाई करनी चाहिए और जो विदेशी लोग हैं उनके साथ दूसरे तरह का ट्रीट करना चाहिए.

संजीव कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

पत्रकारों की क्या है राय
वहीं वरिष्ठ पत्रकार संजीव कुमार ने कहा कि एनआरसी के मुद्दे को ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए, लेकिन जिस तरह से राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे को लेकर तूल दे रही हैं. तो मैं मानता हूं कि वह वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमने किशनगंज, कटिहार सीमांचल जैसे क्षेत्रों में दौरा किया है. वहां पर हमने भी देखा है कि बहुत तादाद में बांग्लादेशी बिहार में प्रवेश कर गए हैं. जिसका विरोध वहां के स्थानीय लोग ही करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इनके आने से उनके अन्य कामों में इनकी सहभागिता बढ़ती जा रही है और उनके हक हिस्सेदारी में इनकी भी मांग बढ़ती जा रही है. उन्होंने कहा कि देश में आज एनआरसी की जरूरत है. हमारे सीमित संसाधनों को बाहर के लोग कैसे उपयोग कर सकते हैं. इसलिए एक बार फिर से नीतीश कुमार को इस बारे में पुनर्विचार करना चाहिए ताकि ऐसे लोगों की पहचान कराई जा सके.

NRC पर क्या कहते हैं अर्थशास्त्री
वहीं अर्थशास्त्री अजय झा ने कहा कि हर पार्टी की अपनी अलग-अलग राय है. पश्चिम बंगाल में एनआरसी को लेकर ममता बनर्जी भी तैयार नहीं हैं. कुछ अन्य राज्य भी तैयार नहीं है और बिहार में नीतीश कुमार भी तैयार नहीं है, लेकिन ऐसी पार्टियों को एक साथ मिलजुल कर विचार करना होगा. अजय ने कहा कि इन पार्टियों को राष्ट्रहित में ध्यान रखकर जो भी फैसला ले, वह सबके लिए कारगर साबित हो. क्योंकि देश में कुछ इस तरह की भी गतिविधियां होती हैं जिस पर सब को ध्यान देना चाहिए.

अजय झा, आर्थिक विशेषज्ञ

असम में लागू हो चुका है NRC
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने असम में एनआरसी की लिस्ट जारी कर दी है. उसको लेकर अब पूरे देश में भी बीजेपी मांग कर रही है कि एनआरसी लागू होनी चाहिए, लेकिन कुछ क्षेत्रीय पार्टियां इस तरह के कानून का विरोध कर रही हैं. लेकिन समाजिक विशेषज्ञ वरिष्ठ पत्रकार भी मानते हैं कि देश में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन लागू हो ताकि यह पता चल सके कि किन राज्यों में कितने विदेशी रहे हैं.

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