पटना:बिहार में बाढ़ और सुखाड़ तो आम बात है. झारखंड से अलग होने के बाद बिहार में ग्रीन कवर महज 11 फीसदी रह गया था. पिछले कुछ सालों में प्रकृति ने बिहार से ऐसा मुंह मोड़ा कि दरभंगा और मधुबनी जैसे जिलों में भी पीने का पानी का संकट होने लगा है. बिहार में पिछले कुछ सालों से लगातार बारिश की अनिश्चितता ने स्थिति को और गंभीर बना दिया. इसे देखते हुए कुछ साल पहले बिहार सरकार ने राज्य के ग्रीन कवर को बढ़ाने की कोशिश के तहत जल जीवन हरियाली योजना की शुरुआत की.
जल जीवन हरियाली योजना
जल जीवन हरियाली योजना के तहत 3 साल में 24 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं. जिसके तहत ना सिर्फ पौधारोपण बल्कि वेटलैंड और प्राकृतिक आहार आदि को पुनर्जीवित करना और कुआं तालाब पोखर का जीर्णोद्धार करना भी शामिल है. इसके अलावा पूरे बिहार में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का काम भी जोर शोर से चल रहा है. इसके तहत सभी सरकारी बिल्डिंग में वर्षा जल संचयन की पुख्ता व्यवस्था की जा रही है. ताकि बारिश का पानी बर्बाद ना हो.
2020 में लगाए 3.91 करोड़ पौधे
बिहार में वर्ष 2020 में विशेष कार्यक्रम के तहत 2.51 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया और लॉकडाउन के बावजूद वन पर्यावरण विभाग ने कई अन्य सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों की मदद से करीब 3 करोड़ 91 लाख पौधे लगा दिए. वन पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह ने बताया कि इस वर्ष हम पांच करोड़ पौधे लगाने जा रहे हैं और इतने पौधे हमारे पौधशाला और नर्सरी में उपलब्ध भी हैं.
''अगस्त महीने तक इतने पौधे पूरे बिहार में लगाए जाएंगे ताकि बिहार का ग्रीन कवर बढ़ सके. ये 15 प्रतिशत तक पहुंच चुका है और इसे आने वाले समय में 17 फीसदी तक पहुंचाना है. ताकि बिहार की जलवायु बेहतर हो सके''- दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, वन पर्यावरण विभाग