पटना: बिहार विधानसभा से एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित हो गया है. एनडीए और बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी के साथ सर्व सम्मति के साथ इस प्रस्ताव को पास कराया गया. इसके बाद जाति के आधार पर जनगणना कराने का प्रस्ताव पारित किया गया. वहीं, इस जनगणना में 2010 वाले प्रारूप की मांग की गई है.
अब सवाल ये है कि आखिर ऐसी क्या जरूरत आ गई कि आनन-फानन में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराना पड़ा ? वह भी एनडीए सरकार द्वारा? कहीं यह नीतीश कुमार की आरजेडी से बढ़ती नजदीकी तो नहीं? इस पूरे मुद्दे पर ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ प्रवीण बागी ने जेडीयू के वरिष्ठ नेता डॉ. मधुरेंदु पांडे, बीजेपी के सुबोध पासवान और जाने-माने पत्रकार प्रियरंजन भारती से खास बातचीत की. पढ़ें बातचीत का खास अंश:-
क्या है JDU नेता की राय?
ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ प्रवीण बागी ने जेडीयू नेता डॉ. मधुरेंदु पांडे से बातचीत की. उन्होंने बिहार में जातिगत जनगणना और एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया. इसपर जेडीयू नेता से उनकी राय जानी.
सवाल- आखिर एनडीए को ऐसी क्या जरूरत पड़ी जो बिहार में एनआरसी, एनपीआर और जातिगत जनगणना 2010 प्रारूप के लिए प्रस्ताव पारित किया गया?
जवाब- एनपीआर 2010 के प्रारूप पर हो, इसमें कोई अचंभित होने की बात नहीं है. इसमें किसी को किसी प्रकार का कागजात दिखाने की जरूरत नहीं है. एनपीआर मुद्दे पर जिस तरह से भ्रम फैलाया गया, उसे दूर करने के लिए किया गया.
सवाल- एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव क्यों? जब पीएम ने इसका जिक्र किया कि एनआरसी पर अभी कोई चर्चा तक नहीं हुई.
जवाब- एनआरसी पर प्रस्ताव लाने का कारण था क्याोंकि विपक्ष ने एनआरसी को ही मुद्दा बना लिया था. सीएम नीतीश कुमार ने भी पीएम मोदी के एनआरसी पर स्पष्टीकरण का हवाला दिया. लेकिन विपक्ष ने भ्रम फैलाकर लोगों में डर का माहौल बना दिया था.
सवाल- जो लोग एनआरसी के खिलाफ में हैं, उसे जोड़ने की कवायद मानी जाए?
जवाब- ऐसा बिल्कुल नहीं है. ये कोई जनता को जोड़ने की कवायद नहीं है. प्रदेश का सीएम होने के नाते फर्ज बनता है कि नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करें और जो भी भयभीत हैं, उन्हें बताए कि हमारा सही कदम क्या है.
सवाल- क्या इस प्रस्ताव के पारित होने से जेडीयू को मुस्लिम वोट बढ़ेगा या फिर आने वाले चुनाव में फायदा होगा?
जवाब- चुनाव तो बहुत दूर की बात है. सबसे पहले लोगों को सीएए के बारे में जान लेना चाहिए. साल 2003 में मनमोहन सिंह विरोधी दल के नेता थे तब ही ये तय हुआ था कि अगर इस्लामिक देशों से प्रताड़ित अल्पसंख्यक भारत में शरण लेना चाहे (सभी समुदाय सम्मलित) तब भारत को उदारता का परिचय देना पडे़गा.
सवाल- बड़ी संख्या में मुस्लिम लोग भारत आ रहे हैं. कहीं सरकार घबराकर ये कदम तो नहीं उठाया?
जवाब- ये कहना बिल्कुल गलत है. भारतीय मुसलमानों को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. सदन में प्रस्ताव पारित करने का ये मतलब नहीं कि हम लामबंद कर रहे हैं. इसका सिर्फ एक ही मतलब है कि लोगों में जो भय है उसे दूर करने का प्रयास है.
सवाल- जो भय है ही नहीं, उस भय को कैसे दूर किया जाएगा.
जवाब- विपक्ष ने पूरे देशभर में भय व्याप्त कर दिया. कुछ नहीं होने के बावजूद विपक्ष ने लोगों में कई तरह के भ्रम फैलाएं हैं, जैसे लोगों की नागरिकता छिन जाना आदि. उन सभी भ्रमों को दूर करते हुए सीएम नीतीश कुमार ने लोगों को आश्वस्त कर दिया है. जनगणना में किसी को भी कई कागजात दिखाने की जरूरत नहीं. है.
क्या है BJP नेता सुबोध पासवान की राय?
इसके बाद ईटीवी भारत ब्यूरो चीफ प्रवीण बागी ने बीजेपी नेता सुबोध पासवान से बातचीत की और उनकी राय ली.
सवाल- विधानसभा से सीएए के खिलाफ जो प्रस्ताव पारित हुआ, क्या बीजेपी नेताओं को इसकी जानकारी नहीं थी?
जवाब- ऐसा कहना बिल्कुल गलत है. सम्मलित सरकार है और जो भी निर्णय हैं वो सभी के सहमति के बाद ही सदन के पटल पर आता है.
सवाल- एनआरसी पर जब पीएम मोदी ने स्पष्ट कर दिया फिर भी बिहार विधानसभा से प्रस्ताव पारित करना पार्टी की मर्यादाओं का उल्लंघन करना नहीं हुआ?