पटना: बिहार की शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करना एक बड़ा विषय है. चुनाव में बिहार की लचर शिक्षा व्यवस्था एक ज्वलंत मुद्दा मानी जाती है. विपक्षी पार्टियां इस साल चुनाव में शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक रही है. महागठबंधन का सहयोगी दल रालोसपा ने शिक्षा सुधार सप्ताह का आह्वान भी कर दिया है. तो वहीं, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव लगातार शिक्षा व्यवस्था को लेकर तीर छोड़ते नजर आते हैं. ऐसे में शिक्षकों की बहाली और विद्यालयों को लेकर चर्चा जोरों पर है.
बिहार में इन दिनों '15 साल बनाम 15 साल' पर सियासत ज्यादा देखने को मिल रही है. पिछले 30 सालों में बिहार की शिक्षा व्यवस्था चरवाहा विद्यालय से गुजरते हुए अब शिक्षकों की कमी पर आकर खड़ी हो गई है. ये सिर्फ आरोप का दौर चुनावी साल में देखने को मिल रहा है.
शिक्षक नियोजन पर हंगामा
बिहार में शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया शुरू करवायी, जो अभी तक पूरी नहीं हो सकी है. मामले को कोर्ट में पेंडिंग बताते हुए, नियोजन के लिए जिस तरह के दावे किये गये थे. उन्हें अंजाम नहीं दिया गया. इसको लेकर अभ्यर्थी लगातार, आवाज उठा रहे हैं.
- बिहार में नियोजित शिक्षकों का आंदोलन किसी से छिपा नहीं है. बाद में सरकार ने सेवा शर्त तो लागू कर दिया है. लेकिन उसका पूर्ण लाभ अगले वित्तीय वर्ष में मिलने से शिक्षक नाराज नजर आ रहे हैं.
- केंद्रीय विद्यालयों के लिए जमीन की मांग विपक्ष में बैठे पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव से करते आ रहे हैं. इस बार विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने इसको लेकर ही आह्वान किया है और कई मांगे रखी हैं.
- नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सरकार से 10 सवाल पूछते हुए, शिक्षा व्यवस्था को लेकर भी निशाना साधा. तेजस्वी ने कहा, 'बिहार में 2 लाख शिक्षक पद खाली पड़े हैं. उसपर बहाली क्यों नहीं की गई.'
- वहीं, शिक्षा मंत्री ने दावा किया है कि वर्तमान सरकार ने प्रदेश में 3.5 लाख शिक्षकों की भर्ती की. स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड, पोशाक योजना, साइकिल योजना जैसी तमाम योजनाएं चलाईं. जो शिक्षा व्यवस्था को मजूबत करती हैं.
एक नजर, इस रिपोर्ट पर
- एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के ज्यादातर जिलों में पहली और दूसरी कक्षा में नामांकित बच्चों की संख्या 8वीं के कुल नामाकंन से बीस फीसदी से भी कम है.
- बिहार में साल दर साल नामांकन दर में कमी देखने को मिल रही है. छात्र बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं. लिहाजा, स्कूल छोड़ने की दर बढ़ रही है.
- बिहार में सरकारी लाभ लेने के लिए स्कूलों में दाखिला ज्यादा होता है. अभिभावक प्राइवेट स्कूल और ट्यूशन की ओर ज्यादा रुख कर रहे हैं.
- रिपोर्ट के मुताबित प्रदेश के तकरीबन 94.5 फीसदी स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात ठीक नहीं है. मानें शिक्षकों की घोर कमी है.
- 52.3 फीसदी स्कूलों में शिक्षक-कक्षा का अनुपात ठीक नहीं है. मानें, क्लास रूम हैं, तो शिक्षक नहीं है. शिक्षक हैं, तो क्लास रूम नहीं है.
- 40 फीसदी विद्यालयों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है.
सरकार को देना पड़ेगा जवाब- शिक्षाविद्
बिहार की शिक्षा व्यवस्था को लेकर ईटीवी भारत ने शिक्षाविद् प्रोफेसर डीएम दिवाकर से बात की. उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यवस्था की तुलना पिछली सरकार से नहीं करनी चाहिए. शिक्षा पर खर्च बढ़ा है, बजट का आकार भी बढ़ा है. शिक्षकों की कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है. ड्रॉपआउट भी कम हुआ है लेकिन गुणवत्ता सवालों के घेरे में है. प्रोफेसर दिवाकर ने कहा कि अगर कॉलेजों में शिक्षकों की कमी है, स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात कम है, तो जाहिर तौर पर वर्तमान सरकार को जवाब देना पड़ेगा.
लालू यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल में चरवाहा विद्यालय शुरुआत हुई, ताकि अत्यंत गरीब तबका काम करते हुए पढ़ाई कर सके. हालांकि, यह कांसेप्ट अच्छा होने के बावजूद परवान नहीं चढ़ सका. चरवाहा विद्यालय सिर्फ किताबों में सिमट कर रह गया. इसे लेकर राष्ट्रीय जनता दल के नेता सवाल खड़े करते हैं. उनका कहना है कि गरीबों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए लालू ने सबसे अच्छा प्रयास किया, जिसे बाद में नीतीश कुमार की सरकार ने खत्म कर दिया.
'जांच का विषय है खर्च होने वाली राशि'
वहीं, उच्च शिक्षा को लेकर पूर्व मंत्री श्याम रजक सवाल खड़े कर रहे हैं. उनका कहना है कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के 5000 से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. ऐसे में पढ़ाई कैसे होगी. यही नहीं, जो शिक्षा पर खर्च दिखाया जा रहा है. वह शिक्षा मद में साइकिल पोशाक आदि वस्तुओं पर हो रहा है, जो खुद जांच का विषय है क्योंकि जब स्कूलों में इतने बच्चे ही नहीं है, तो फिर साइकिल पोशाक और किताब आदि पर इतना खर्च कैसे हो रहा है.